रविवार, 15 मार्च 2015

पर्यावरण परिक्रमा
कई गुफाआें वाली होगी न्यूट्रिनो वेधशाला
ब्रह्मांड की उत्पत्ति में अहम माने जाने वाले न्यूट्रिनो कणों की खोज और अध्ययन के लिए तमिलनाडु में केरलसीमा के पास बनाई जा रही भूमिगत वेधशाला चट्टान से १२०० मीटर गहराई पर होगी तथा इसमें कई गुफाएं होगी । 
तमिलनाडु के थेनी जिले की बोडी पहाड़ियों में कई संस्थाआें के सहयोग से इस वेधशाला की स्थापना की जा रही है । केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इस वर्ष जनवरी में करीब १५०० करोड़ की इस परियोजना को हरी झण्डी दी थी । इसके तहत लगभग १२०० मीटर ऊंचे चट्टानी पहाड़ों के नीचे विश्व स्तरीय प्रयोगशाला बनाई जाएंगी जिसमें १३२ मीटर गुणा २६ मीटर गुणा २० मीटर आकार की एक बड़ी गुफा और कई अन्य छोटी-छोटी गुफाएं होगी जहां १९०० मीटर लंबी और साढ़े सात मीटर चौड़ी सुरंग से पहुंचा जा सकेगा । 
इस परियोजना में परमाणु ऊर्जा विभाग और विज्ञान तथा प्रौघोगिकी विभाग मिलकर सहयोग दे रहे है जबकि परमाणु ऊर्जा विभाग केन्द्रीय एजेंसी के तौर पर काम करेगा । परियोजना का उद्देश्य न्यूट्रिनों पर मूलभूत अनुसंधान करना है । देश के २१ अनुसंधान संस्थान, विश्वविघालय और आईआईटी इस परियोजना में शामिल है । माना जा रहा है कि न्यूट्रिनो कण से अंतरिक्ष से संबंधित कई जानकारियां प्राप्त् की जा सकती है । इसी कारण वैज्ञानिकों को इनके अध्ययन में विशेष रूचि है ।
फोटोन के बाद न्यूट्रिनो प्रचुर मात्रा में ब्रह्मांड में विद्यमान है । प्रत्येक एक घन सेंटीमीटर में लगभग ३०० न्यूट्रिनो होते है । ये कण सूर्य जैसे तारों में रेडियोधर्मी क्षय और वायुमण्डल से कास्मिक विकिरणों की आपसी क्रिया से उत्पन्न होते हैं । साथ ही इन्हें नाभिकीय संयंत्रों में भी निर्मित किया जा सकता है । 
वैज्ञानिकों का मानना है कि १५ अरब वर्ष पहले ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बाद जो न्यूट्रिनो पैदा हुए थे वे आज भी सक्रिय है । सूर्य के केन्द्र में परमाणु संलयन की वजह से जो न्यूट्रिनो उत्पन्न हुए वे पृथ्वी के ऊपर घूमते रहते हैं । मानव शरीर से भी न्यूट्रिनो उत्सर्जित होते है । मानव शरीर में मौजूद रेडियोधर्मी पदार्थ पोटेशियम ४० लगातार न्यूट्रिनोे का उत्सर्जन करता है । प्रति सेकण्ड लगभग १०० खरब न्यूट्रिनो सूर्य और अन्य आकाशीय पिंडों से उत्सर्जित होकर हमारे शरीर से टकराते है लेकिन इससे हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचता । 
सन १९३० में जाने-माने भौतिकविद् पाउली को प्रयोगों से पता चला कि जब कोई अस्थिर आणविक नाभिक एक इलेक्ट्रान को छोड़ता है तो उसकी नई ऊर्जा और गति उम्मीद के मुताबिक नहीं होती थी । इस समीकरण को संतुलित करने और ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत को कायम रखने के लिए पाउली ने एक सैद्धांतिक कण की अवधारणा प्रस्तुत की । 

एक व्हाइट हाउस जिसमें रहते है कबूतर
एक व्हाइट हाउस अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में है । दुनियाभर के सैलानी इसे देखने आते है । दुनिया का सबसे ताकतवर समझे जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति, यहां रहते हैं । लेकिन अपने आप में कुछ ऐसा ही अनूठा एक और व्हाइट हाउस राजस्थान में बाड़मेर के आजाद चौक पर है । लोग यहां भी आते हैंपर व्हाइट हाउस देखने नहीं, दाना-चुग्गा डालने को । इस व्हाइट हाउस में करीब १०,००० कबूतर रहते है ।   बिल्कुल, इस तीन मंजिला व्हाइट हाउस के मालिक कबूतर ही  हैं । इस इमारत की कीमत करीब एक करोड़ रूपए है । इसमें नौ फ्लेट हैं । इनसे २०,००० रूपए महीने का किराया अलग से आता है । व्हाइट हाउस ही नहीं, आजाद चौक पर ही बनी १० दुकानों के मालिक भी कबूतर है । इन दुकानों की कीमत करीब सवा करोड़ रूपए है । हर दुकान से दो हजार रूपए महीने किराया आता है, वह अलग । कबूतरों का अपना बैंक बैलेंस भी है । इसमें पांच-सात लाख रूपये जमा हैं । इतना पढने के बाद आपको लगेगा कि कोई करोड़पति अपनी संपत्ति और बैंक बैलेंस कबूतरों के नाम कर गया होगा । लेकिन ऐसा नहीं है । यह संपत्ति खालिस तौर पर कबूतरों की है । यह बाड़मेर के कबूतर धर्मार्थ ट्रस्ट की देखरेख में साल दर साल फल-फूल रही है । 
बाड़मेर के लोगों की धर्म व दान के प्रति रूचि की वजह से उनके शहर के कबूतर करोड़पति हो पाए । ट्रस्ट के अध्यक्ष मदन सिंघल बताते है कि इस सिलसिले की शुरूआत १९६० से हुई थी । तब आजाद चौक पर लोगों ने मिलकर कबूतरों के लिए एक चबूतरा बनाया था । फिर ट्रस्ट बना । दुकानें बनी । और अभी सात-आठ साल पहले सुमेर गोशाला के पास दान की जमीन पर व्हाइट  हाउस । पूरी संपत्ति और उससे होने वाली आमदनी ट्रस्ट के मार्फत कबूतरों के लिए और उन्हींकी मानी जाती है । 
लोग रोज दाना-चुग्गा डालते है । करीब ५० किलो दाना इकट्ठा हो जाता है । कबूतर चार-पांच किलो ही खा पाते है । बाकी को बोरियो में भरकर बाजार में बेच दिया जाता     है । इससे जो पैसा मिलता है, वह ट्रस्ट के खाते में जमा कर दिया जाता है । 

राज्यों को मालामाल करेगा काला सोना
कोयला ब्लॉकों की नीलामी जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे साबित होता जा रहा है कि सरकार का यह फैसला राज्यों को मालामाल करने जा रहा है । साथ ही तीन वर्ष पहले कोयला ब्लॉक आवंटन पर नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भारी गड़बड़ी की आशंका वाली बात भी सही साबित हो रही है । 
पिछले दिनों १६ कोयला ब्लॉक नीलाम हुए है । इनसे एक लाख करोड़ रूपये का राजस्व हासिल होने की उम्मीद है । यह सारी रकम राज्यों के खाते में जाएगी । कोयला सचिव अनिल स्वरूप का कहना है कि कंपनियां जिस तरह से ब्लॉक खरीदने के लिए उत्साह दिखा रही हैं, उससे अभी तक गरीब समझे जाने वाले लेकिन खनिज संपदा से भरपूर राज्यों का कायाकल्प हो सकता है । साथ ही बिजली क्षेत्र के लिए रिवर्स बिडिंग (अधिकतम बोली लगाकर उससे सबसे कम बोली लगाने की प्रक्रिया) का सरकार का फैसला भी सही साबित हो रहा है । 
तय फार्मूले के मुताबिक बिजली प्लांट को आवंटित होने वाले कोल ब्लॉकोंके लिए कोयले की एक उच्च्तम कीमत सरकार ने तय की   है । इसे उस इलाके में बिजली और कोयले की लागत के आधार पर तय किया गया है । मान लीजिए एक ब्लॉक के प्रति कोयले की कीमत १,००० रूपये प्रति टन तय की गई है । कंपनियों को इससे कम बोली लगानी होगी । अगर किसी कंपनी ने ८०० रूपये प्रति टन की बोली लगाकर इसे हासिल किया, तो २०० रूपये प्रति टन का फायदा उसे बिजली की दर घटाकर आम जनता को देना होगा । राज्यों को मिलने राशि का अनुमान इस प्रकार है - म.प्र. ३९,९००, छ.ग.२६,४३५, झारखण्ड १४,४९८, पं. बंगाल १३,२१०, महाराष्ट्र १,८१९ और उड़ीसा को ६०७ करोड़ रूपये मिलने की संभावना है । 

 बंदर को ७० लाख का मकान और २० लाख नगद
चुनमुन को ७० लाख रूपये कीमत वाला एक घर मिलने जा रहा है, और लगभग २० लाख रूपये का बैंक बैलेंस भी, लेकिन चुनमुन बैंक के लिए चेक पर दस्तखत करना भी नहीं जानता है । 
दरअसल, चुनमुन एक बंदर है, जो उत्तरप्रदेश के रायबरेली शहर में बने एक घर के भीतर एयरकंडीशन्ड कमरे में रहता है, जिसके मालिक सविस्ता और ब्रजेश हैंऔर इन्हीं लोगों ने अपना सबकुछ चुनमुन के नाम वसीयत में लिख दिया है, सविस्ता का कहना है कि चुनमुन की मां ने उसे जन्म देते हुए दम तोड़ दिया था, और चूंकि सविस्ता ब्रजेश की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वे नवजात बन्दर को अपने साथ अपने घर ले आए थे । उसके बाद से वे चुनमुन को अपनी संतान की तरह ही पाल रहे है और यहां तक कि उन्होनें अपने घर का नाम भी चुनमुन हाउस रखा हुआ है । 
चुनमुन के मानव माता-पिता ने अब तय किया है कि बंदरों की भलाई के कामों के लिए चुनमुन के नाम से एक ट्रस्ट की स्थापना की जाए । सविस्ता के पति ने बताया, जब हम नहीं रहेंगे, हम चाहेंगे कि यह ट्रस्ट उन बंदरों के लिए मचानों का निर्माण करे, जो मनुष्यों के साथ दोस्ताना तालुकात रखते हैं और पेड़ों की लगातार हो रही कटाई के कारण तकलीफ में हैं । मनुष्यों की गलतियों के कारण किसी बंदर को कष्ट नहीं होना चाहिए । जहां तक चुनमुन का सवाल है, वह हमारे लिए हमारे बेटे जैसा है । 
सविस्ता और ब्रजेश स्थानीय लोगों में फैले उस अंधविश्वास को भी नकारते हैं, जिसके मुताबिक बंदर को पालना शुभ नहीं होता । उनका दावा है कि चुनमुन के आने से उनके जीवन में सौभाग्य और खुशहाली आई है । खैर, कोई माने या न माने, छोटा सा ही सही, रायबेरली के एक मकान का मालिक अब बंदर ही   होगा । 

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