सोमवार, 19 सितंबर 2016

पर्यावरण परिक्रमा
एक नए शोध के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग की शुुरूआत आज नहीं, बल्कि आज से २०० पहले शुरू हो गई थी, ग्लोबल वार्मिंग आज एक वैश्विक समस्या के रूप में उभर कर सामने आई है । 
आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक औघोगिकीकरण की शुरूआत में ही ग्लोबल वार्मिंग की शुरूआत हो गई थी । मुख्य शोधकर्ता नेरीली अबराम ने बताया कि औघोगिकीकरण की शुरूआत में जब इंसान ने छापाखाना और भाप या कोयले से चलने वाले जहाजों तथा ट्रेनों का इस्तेमाल शुरू किया तब से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या शुरू हो गई । 
श्री अबराम ने एक बयान में कहा कि यह अद्भुत खोज है, यह ऐसी बात है जहां विज्ञान हमें हैरान करता है लेकिन नतीजे स्पष्ट है, हम जिस ग्लोबल वार्मिंग का सामना कर रहे है वह करीब १८० साल पहले शुरू हुई थी । डॉ. हेलेन मैकग्रेर ने कहा कि निश्चित रूप से १८ वीं शताब्दी के दौरान ही मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों का स्तर बढ़ना शुरू हुआ था । 
श्री अबराम ने कहा कि इससे पहले वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के लिए आज के दौर को जिम्मेदार माना जाता रहा है, लेकिन उनकी टीम ने इसका पता लगाया है कि छोटे स्तर पर मानवीय गतिविधियों के कारण वातावरण में आया बदलाव ही इस वृद्धि के लिए जिम्मेदार है । डॉ. हेलेन ने कहा कि पूर्व के कई अध्ययनों में १९०० से पहले के आंकड़ों का अध्ययन नहीं किया गया इसलिए उनकी टीम ने ५०० वर्ष पुराने आंकड़ों का विश्लेषण करना शुरू किया । 

इन्दौर में वाइल्ड लाइफ पर बनेगी लायब्रेरी
इन्दौर के चिड़ियाघर में प्रदेश की पहली वाइल्ड लाइफ लायब्रेरी खोले जाने की तैयारियां शुरू हो गई है । इसमें वन्य जीवन पर आधारित हर तरह की पुस्तकों के साथ प्रोजेक्टर के माध्यम से डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी दिखाई जाएगी । जू क्यूरेटर एजुकेशन ऑफिसर निहार पारूलकर के मुताबिक इसमें एक हजार से ज्यादा पुस्तकें होगी । चिड़ियाघर में बनाए जा रहे नए भवन के कमरे में जहां पुस्तकों का संग्रह होगा, वहीं हॉल में सौ लोगों की बैठक व्यवस्था होगी । इसकी शुरूआत एजुकेशन प्रोजेक्ट के अन्तर्गत अक्टूबर में वाइल्ड लाइफ वीक के दौरान होगी । शुरूआत के बाद लायब्रेरी को लेकर लोगों के रूझान की मॉनीटरिंग भी की  जाएगी । लायब्रेरी की सुविधा जूलॉजी और वेटरनरी के विद्यार्थियों के साथ ही वन्यप्रेमी भी उठा सकेंगे । अभी एजुकेशन वैन तैयार की जा रही है । इसमें सभी जानवरों की डमी रखी जाएगी । यह वैन स्कूलों में पहुंचेगी, जहां विशेषज्ञ बच्चें को जंगली जानवरों की जानकारी देंगे । इसके साथ ही साइन बोर्ड से भी चिड़ियाघर आने वाले दर्शकों की जानकारी दी जा रही है । 
पूर्वोत्तर की ओर खिसक रही है भारत की धरती
हम हर साल भूकंप की विनाशीलता को हम देखते और सहते हैं । अब नया खुलासा हुआ है कि भारत की धरती धीरे-धीरे खिसक रही है । इससे भविष्य में भूकंप आने का खतरा पैदा हो सकता है । यह सवाल पिछले दिनों संसद में उठा था, लेकिन राजनीतिक शोर में आपके जीवन से जुड़ी यह बात दब गई    थी । भारत सरकार ने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह माना है कि भारतीय प्लेट हर साल ५ सेंटीमीटर की दर से पूर्वोत्तर की ओर खिसक रही है । भारतीय प्लेट के आगे खिसकने की इस प्रक्रिया का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस के माध्यम से सरकार अध्ययन करवा रही है । 
सरकार ने यह जवाब महाराष्ट्र से भाजपा सांसद नाना पटोले के सवाल पर दिया है । उन्होंने यह पूछा था कि सरकार ने भारतीय भूमि के उत्तर और झुकने संबंधी आंकड़ों तथा पहाड़ों की प्लेटों की अंदरूनी हलचलों का अध्ययन किया है   क्या । दूसरा सवाल पूछा था कि क्या इन हलचलों से देश में भूकंप आने का खतरा है । केन्द्र सरकार ने दूसरे सवाल का जवाब हां में दिया है । कहा है कि भारतीय प्लेट यूरेशियाई प्लेट से टकराती है । इन दोनों के बीच होने वाले परस्पर झुकाव से हिमालय क्षेत्र में भूकम्प आते हैं । सरकार ने कहा है कि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी, गृह मंत्रालय एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भूकंप के सामान्य पहलुआें, उनके प्रभावों और होने वाली हानि को कम करने के उपायों की जानकारी स्कूलीबच्चें को देना शुरू कर किया है । 

म.प्र. में ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर तैयार होगा 
एमपी पॉवर ट्रांसमिशन कंपनी द्वारा ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर की कार्ययोजना तैयार की गई है । इस कार्ययोजना की अनुमानित लागत चार हजार ७०० करोड़ रूपए है, जिसमें ट्रांसमिशन सिस्टम के सुदृढ़ीकरण के कार्य तीन हजार ५७५ करोड़ रूपए एवं नवकरणीय विद्युत परियोजनाआें की प्रदेश की ट्रांसमिशन सिस्टम से जुड़े कार्य १ हजार १२५ करोड़ रूपये की अनुमानित लागत से करवाए    जाएंगे । योजना के तहत मंदसौर, सागर, उज्जैन, सेंधवा, जावरा, कानवन, रतनगढ़, सुसनेर व सैलाना में सब स्टेशन बनेंगे । 
प्रदेश में पांच वर्षो में पांच हजार ८४७ मेगावाट की नवकरणीय विद्युत परियोजनाएं स्थापित होने वाली है । इन परियोजनाआें में सोलर विद्युत परियोजना के अन्तर्गत २५८८ मेगावॉट, पवन (विंड) विद्युत परियोजना के अन्तर्गत २७०४ मेगावाट, लघु सुक्ष्म (मिनी माइक्रो) जल विद्युत परियोजना के अन्तर्गत २८२ मेगावाट एवं जैव इंर्धन (बॉयोमास) के अन्तर्गत २७१ मेगावाट बिजली उत्पादन की संभावना है । 
मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड के प्रबंध संचालक रवि सेठी ने जानकारी दी कि मध्यप्रदेश में ट्रांसमिशन सिस्ट्म सुदृढ़ीकरण के काय्र दो चरणोंमें करने की योजना बनाई गई है । प्रथम चरण की अनुमानित लागत २१०० करोड़ एवं द्वितीय चरण की लागत १४७५ करोड़ रूपये रहेगी । 
प्रथम चरण को तीन वर्षो में पूर्ण किया जाना प्रस्तावित है । प्रथम चरण में प्रदेश की संबंद्ध नवकरणीय विघुत परियोजनाआें की क्षमता लगभग ४१०० मेगावॉट हो जाएगी । प्रथम चरण की कार्य योजना वर्ष २०१९-२० तक पूर्ण होने की संभावना है । 
प्रथम चरण में ४०० केवी के तीन सब स्टेशन मंदसौर, सागर व उज्जैन में बनेगे । ४०० केवी की ६९० सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनों का नेटवर्क तैयार होगा । कार्ययोजना में २२० केवी के सात सब स्टेशन सेंधवा, जावरा, कानवन, रतनगढ़, सुसनेर व सैलाना में   बनेगे । २२० केवी की १ हजार १९६ सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइन का नेटवर्क तैयार किया  जाएगा । १३२ केवी की ९५६ सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनोंके नए नेटवर्क के साथ १३२ केवी के दो अतिरिक्त ट्रांसफार्मर लगेंगे । 
प्रथम चरण के लिए जर्मनी का केएफडब्यू डेवलपमेंट बैंक परियोजना की अनुमानित लागत का ४० प्रतिशत अंश सॉफ्ट लोन के रूप में ८४० करोड़ रूपए देगा । वहीं मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी को राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि (एनसीईएफ नेशनल क्लीन एनर्जी फंड) से ४० प्रतिशत अंश के रूप में ८४० करोड़ रूपए का अनुदान प्राप्त् होगा । प्रथम चरण के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा २० प्रतिशत अंश के रूप में ४२० करोड़ रूपये की राशि प्रदान की जाएगी । सेठी ने जानकारी दी कि केएफडब्यू डेव्लूपमेंट बैंक एवं भारत शासन के आर्थिक मामलों के विभाग के बीच ऋण अनुबंध इस वर्ष ३० जून को हस्ताक्षरित किया गया है । 

म.प्र. में १८ करोड़ पौधे रोपे फिर भी घट गया जंगल
मध्यप्रदेश में वन विभाग ने तीन साल में १८ करोड़ ९ लाख से ज्यादा पौधों का रोपण किया है । इन पौधों को लगाने में ४४ करोड़ से भी ज्यादा की राशि खर्च की गई है, लेकिन इसके सकारात्मक परिणाम आने की बजाय जंगल ही घट गया । 
वन विभाग ने वित्तीय वर्ष १३-१४ से १५-१६ तक तीन साल में २० सूत्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रोंमें १८ करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए है । केन्द्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम (जीआईएम) के तहत तीन साल में ४४ करोड़ १२ लाख रूपए की राशि जारी की गई । 
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्यरत भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष २०१३ के मुकाबले वर्ष २०१५ में मध्यप्रदेश में वनक्षेत्र ६० वर्ग कि.मी. घट गया है । राष्ट्रीय वन नीति १९८८ के अनुसार भू-क्षेत्र का कम से कम एक तिहाई यानी ३३ प्रतिशत वन आच्छादित रखने का राष्ट्रीय लक्ष्य हैं, परन्तु प्रदेश में केवल२५ प्रतिशत क्षेत्र ही वनाच्छादित रह गया है । पर्यावरण प्रेमियों ने केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, प्रमुख सचिव पर्यावरण विभाग भोपाल को पत्र लिखकर पर्यावरण की रक्षा की मांग की है । 

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