शनिवार, 16 सितंबर 2017

प्रसंगवश
नागरिकों की स्वतंत्रता का विस्तार
पिछले दिनों सर्वोच्च् न्यायालय ने नागरिकों के निजता के हक को उनका मौलिक अधिकार मानते हुए एक तर्कपूर्ण फैसला दिया है । इससे नागरिकों की स्वतंत्रता का विस्तार हुआ है । 
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय नागरिकों को संविधान से मिली स्वतंत्रताआें का दायरा और बढ़ा दिया है । इस ताजा निर्णय से निजता नागरिकों का मौलिक अधिकार बन गई है । कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद-२१ का हिस्सा बना दिया है । इस अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत तय प्रक्रियाआें का पालन किए बिना उसके जीवन या निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता । 
निजता के अधिकार का सवाल सात दशकों में कई बार सर्वोच्च् न्यायालय के सामने आया । दो मौकों पर अदालत की संविधान पीठ ने उस पर विचार किया । सन् १९५४ में बहुचर्चित एमपी शर्मा केस में आठ सदस्यीय और १९६२ के खड़क सिह मामले में छह जजों की पीठ इन नतीजे पर पहुंची कि भारतीय संविधान में निजता के अधिकार की व्यवस्था नहीं है । लेकिन अब नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा है कि निजता का अधिकार स्वाभाविक रूप से जीवन और स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है । 
हर्ष की बात है कि केन्द्र सरकार ने इस निर्णय का स्वागत किया है । इसके साथ ही कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने उन कदमों का उल्लेख किया, जो एनडीए सरकार ने नागरिकों की निजता की रक्षा के लिए उठाए हैं । उन्होंने आधार अधिनियम के सिलसिले में दिए गए वित्त मंत्री अरूण जेटली के बयान की याद दिलाई । तब जेटली ने कहा था कि ये कानून मानकर चलता है कि निजता का हक मौलिक अधिकार है । साथ ही सरकार ने डेटा संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए एक उच्च्स्तरीय समिति बनाई है । फिर यह   भी गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने निजता के हक को असीमित नहींमाना, बल्कि कहा कि हर अधिकार की तरह इस पर विवेकपूर्ण सीमाएं लागू रहेंगी । 

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