शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

वानिकी जगत
पौधें करते है सूखे से बचने के उपाय
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

पौधों के पास कम से कम पांच तरीके है जिससे वे आवश्यक गुण विकसित कर सूखे से बच सकते हैं । जीव विज्ञानियों के लिए यह अध्ययन का प्रमुख क्षेत्र है । 
साल दर साल हम देख रहे है कि भारत के कई क्षेत्र सूखे से प्रभावित हो रहे हैंजिसकी वजह से खाघान्न उत्पादन प्रभावित हो रहा है और किसान परेशानियों से घिर रहे  हैं । हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया है । पौधे कैसे इस सूखे के तनाव से निपटते हैं ? यह बहुत ही दिलचस्प और सक्रिय शोध का क्षेत्र है और हम इसके कुछ पहलुआें को समझ पाए हैं । 
हर स्कूली बच्च जानता है कि पौधे सूरज की रोशनी से ऊर्जा प्राप्त् करते है, वातावरण से कार्बन डाईऑक्साईड लेते हैं, मिट्टी से पानी लेते हैं और इन सबका इस्तेमाल हमारे लिए भोजन बनाने में करते    हैं । यह सरल सी रासायनिक क्रिया, जिसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं, केवल कार्बोहाइड्रेट्स ही नहीं बनाती बल्कि ऑक्सीजन भी उपत्न्न करती है जिसे ऑक्सीजन का इस्तेमाल हम श्वसन में करते है और यह हमारी शारीरिक क्रियाआें में मदद करती है और इससे हमें ऊर्जा प्राप्त् होती है । इस प्रकार पौधों को बहुत साधारण चीजों की जरूरत होती है - धूप, हवा से कार्बन डाईऑक्साइड और जमीन से पानी । इन तीनों में से किसी एक की भी कमी होती है तो पौधों का उत्पादन घटता है । 
संयोगवश दिन के समय धूप तो नियमित और भरपूर मात्रा में मिलती रहती है । कार्बन डाईऑक्साइड भी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है । वास्तव में यह अधिकता में है और कोयला, पेट्रोल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईधनों के दहन की वजह से साल दर साल इसमें वृद्धि हो रही है । लेकिन पानी की कमी दुनिया के कई हिस्सों में अकाल की स्थिति तक पहुंच गई    है । इस अकाल की स्थिति में पौधे कैसे प्रतिक्रिया देते हैं । क्या उनके अंदर पानी के अभाव से पैदा होने वाले तनाव से निपटने के लिए कोई तंत्र है और कैसे वे सूखे का सामना करते हैं ? यह वनस्पति वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है ।   हाल ही में प्रकाशित दो पर्चो ने इन पहलुआें पर प्रकाश डाला है कि सूखे के तनाव से पौधे कैसे निपटते हैं । पहला पर्चा यूएस स्थित अर्कान्सास विश्वविद्यालय के डॉ. एंडी परेरा का है । इन्होंने अपने अध्ययन के लिए धान का इस्तेमाल किया । वासु, रामगौड़ा, कुमार और परेरा का यह शोध पत्र इंटरनेट पर उपलब्ध    है ।
इस पर्चे में बताया है कि पौधे अनुकूलन के लिए विभिन्न रणनीतियां अपनाते हैं । एक रणनीति है सूखा प्रतिरोध जो पौधों को सूखे के प्रति सुरक्षा, बचाव और तनाव सहने के योग्य बनाता है । सूखे से पलायन की रणनीति मेंपौधे सूखे से पहले ही अपना जीवन चक्र पूरा करने की कोशिश करते हैं । इसमें पौधे सूखे की स्थिति शुरू होने से पहले ही किसी संकेत से उसे भांपकर समय पर अपने आपको तैयार कर लेते हैं । सूखे को टालने की रणनीति में पौधों की यह क्षमता काम आती है कि मिट्टी में पानी के अभाव के बावजूद वह अपने ऊतकों में पानी की उच्च् मात्रा बनाए रखता है । सूखा सहनशीलता की रणनीति में पौधे विभिन्न अनुकूलीय लक्षणों के जरिए अपने ऊतकों में पानी की कम मात्रा को झेल जाते हैं । 
पौधे सूखे की स्थिति में इन सभी लक्षणों को कैसे प्रदर्शित करते हैं ? इसके बारे में अपने पर्चे में लेखकों ने कहा है कि पौधे कम से कम विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं । 
सबसे पहला है पत्तियों का क्षेत्रफल घटाकर (जैसे पत्तियां बंद कर लेना) प्रकाश संश्लेषण के स्तर को कम करना और प्रकाश संश्लेषण की दर को धीमा करना । 
दूसरा, पौधों में हार्मोन्स, विशेष रूप से एब्सिसिक एसिड की क्रिया का नियमन करके । सूखे के तनाव के दौरान एब्सिसिक एसिड जड़ों से पत्तियो की तरफ बहता है और स्टोमेटा को बंद करने में मदद करता है । स्टेमेटा पत्तियों पर सूक्ष्म छिद्र होते है जिनके जरिए कार्बन डाईऑक्साईड, ऑक्सीजन, जलवाष्प की आवाजाही होती है और स्टोमैटा बंद रहें तो पौधों की वृद्धि कम होती है । इसमें एक अन्य संदेशवाहक अणु सायटोकिनिन की भी भूमिका होती  है । 
तीसरा है, वाष्पोत्सर्जन को काबू करके । स्टोमेटा को बंद करने स पानी का ह्ास कम हो जाता है और साथ ही कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषण भी कम हो जाता है । चौथा तरीका है जड़ों से निकलने वाली शाखाआें की वृद्धि, लम्बाई, आकार में परिवर्तन करके । पांचवा है, परासरण समायोजन । इसमें कोशिका के आकार को दृढ़ बनाए रखने के लिए कोशिका की दीवार या झिल्ली पर पर्याप्त् दबाव बनाया जाता है ताकि वह पिचके नहीं । 
साफ तौर पर ये पांचों प्रक्रियाएं जीन्स द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए जो ऐसे प्रोटीन और अन्य अणुआें का उत्पादन करते हैं जो तनाव के विरूद्ध प्रतिक्रिया को अंजाम देते हैं । इस प्रक्रिया के नियमन का अध्ययन यूएसए के आयोवा स्टेट विश्वविघालय के डॉ. यानहाई यिन और उनके समूह      ने किया है । हाल ही में प्रकाशित शोध पत्र में उन्होंने बीईएस२ और आरडी२६ नामक दो अणुआें की भूमिका के बारे में बताया है, जो सूखे की स्थिति में पौधें की वृद्धि के नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । ये दोनों सम्बन्धित प्रोटीन   बनाने वाले जीन्स का नियमन करते हैं । 
ये दोनों अणु विपरित मकसद से काम करते दिखते हैं, लेकिन   इन दोनों का काम परस्पर जुड़ा हुआ है ।

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