शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

हमारा आसपास 
भेड़ियों ने सुधार दिया पर्यावरण
डॉ. अरविन्द गुप्त्े

पिछले दिनों एक शोधकार्य के बारे में समाचार प्रकाशित हुआ था जिसके अनुसार दो बाघों को बचाने से ५२० करोड़ रूपए का फायदा होता है । सह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह फायदा किस प्रकार होता     है ? क्या सरकारी खजाने में यह राशि जमा हो जाती है ?
बात यह है कि हर पर्यावरणीय परिस्थिति में, चाहे वह जंगल हो या नदी या तालाब या रेगिस्तान, जीवों का एक संतुलन बना रहता है । किसी भी भोजन श्रृंखला की शुरूआत पेड़-पौधों से होती है । पेड़-पौधों को छोटे-बड़े जंतु खाते हैं जिन्हें शाकाहारी कहते हैं । इन शाकाहारी जंतुआें को छोटे-बड़े मांसाहारी जंतु खाते हैं और श्रृंखला में सबसे ऊपर बाघ, तेंदुए, भेड़िए आदि शिकारी जंतु होते है जो अन्य सब जंतुआें को खाते हैं । 
यदि इस भोजन श्रृंखला के किसी एक घटक को भी हटा दिया जाए तो इसका असर पूरी श्रृंखला पर पड़ता है । इसके फलस्वरूप उस स्थान का पूरा पर्यावरण बिगड़ जाता है । अत: जंगल में बाघों का रहना उतना ही जरूरी होता है जितना पेड़-पौधों    का । बाघों के रहने से पर्यावरण को जो फायदा होता है उसकी गणना रूपयों में की गई थी जिसके फलस्वरूप ऊपर दिए गए आंकड़े प्राप्त् हुए । 
शिकारी जंतुआें के महत्व को एक सच्ची घटना से समझा जा सकता है, किंतु घटना का विवरण देने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि यह घटना कहां घटी । संयुक्त राज्य अमेरिका के तीन उत्तर-पश्चिमी राज्यों व्योमिंग, मोन्टाना और आयडाहो के नौ हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में एक विशाल जंगल फैला हुआ है । अन्य सभी जंगलों के समान किसी समय इस क्षेत्र की जैव विविधता बहुत समृद्ध  थी । इसमें केवल अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन कबीले रहते थे और वे, अन्य सभी आदिवासियों के समान, प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखते थे । किंतु जैसे-जैसे इसके आसपास गोरे लोगों की बसाहट बढ़ने लगी, जंगल का विनाश शुरू हो गया । अंधाधुंध तरीके से पेड़ों की कटाई और जानवरों का शिकार किया जाने लगा । 
इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यह एक जीवित ज्वालामुखी के ऊपर स्थित है और यहां प्रति दिन सैकड़ों छोटे-छोटे भूकम्प आते रहते हैं । जमीन के नीचे खदबदाने वाले ज्वालामुखी की गर्मी के कारण यहां  के लगभग तेरह सौ स्त्रोतों से समय-समय पर उबलते पानी और भाप के फव्वारे निकलते रहते हैं । यहां की कई झीलों का पानी बहुत अधिक गर्म रहता है, वहीं ठंडे और साफ पानी की झीलें भी है । जंगल के उत्तर में स्थित पहाड़ बर्फ से ढंके रहते है । इस क्षेत्र की अनोखी सुन्दरता को देखने प्रति वर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते है । 
सन १८७२ में अमेरिकी सरकार ने इस जंगल को राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया था और इसका नाम यलोस्टोन नेशनल पार्क रखा गया था । यहां के मूल आदिवासी निवासियों को निकाल कर बाहर कर दिया गया किन्तु यहां अन्य लोगों को शिकार करने की छूट दी गई । परिणाम यह हुआ कि भालू और भेड़िए आदि शिकारी जन्तु बड़ी संख्या में मारे गए और एल्क नामक बड़े हिरनों की संख्या बढ़ती गई । इन और अन्य शाकाहारी जन्तुआें ने पेड़ पौधों को खाना शुरू कर दिया और जंगल पर विपरीत असर होने लगा । 
चूंकि इस भोजन श्रृंखला में भेडिए सबसे ऊपर थे, यह निर्णय लिया गया कि हिरनों को बचाने के लिए क्षेत्र के सभी भेड़ियों को मार दिया जाए और १९२६ में आखरी भेडिए को मार दिया गया । इसका परिणाम यह हुआ कि हिरनों की संख्या में बेइंतहा बढ़ोतरी हो गई । इन हिरनों ने न केवलछोटे पौधों को अपितु बढ़ते हुए बड़े पौधों को भी खा  कर जंगल को भारी क्षति पहुंचाई । इससे मिट्टी का कटाव होने लगा और  नदियों के किनारे कटने के कारण नदियों के बहाव की दिशाएं बदलने लगी । जंगल का विनाश होने के कारण छोटे जन्तु और पक्षी वहां से गायब हो गए । 
सन १९९५ और १९९६ में ३१ भेड़ियों को बाहर से लाकर यलोस्टोन में छोड़ा गया । भेड़ियों ने आते ही हिरनों का शिकार करना शुरू कर दिया । तब हिरन उस क्षेत्र से दूर चले गए जहां भेड़ियों के झंुड रहते थे । हिरन मुक्त इलाकों में पेड़-पौधे बढ़ने लगे । इन पर लगने वाले फूलों और फलों के कारण पक्षी और कीट आने लगे । फूलों के पराग और कीटों को खाने वाले पक्षियों की संख्या भी बढ़ी । भेडियों द्वारा मारे गए हिरनों के मांस के अवशेष खाने के लिए कौए और गरूड़ आने लगे । भेड़ियों ने कोयोटी (एक प्रकार का छोटा भेड़िया) की संख्या को भी नियंत्रित किया । 
नतीजा यह हुआ कि जलीय ऊदबिलाव (ऑटर) और बीवर जैसे उन छोटे स्तनधारियों को पनपने का मौका मिला जिनका शिकार कोयोटी करते थे । पर्यावरण में बीवर की विशेष भूमिका होती है । खरगोश के आकार के ये स्तनधारी छोटे तालाबों में रहते हैं जिनका निर्माण वे स्वयं करते है । अपने तेज दांतों से किसी बड़े पेड़ के तने को काट कर बीवर उसे छोटी नदी या नाले पर गिरा देते हैं, फिर छोटी टहनियों, पत्थरों और जलीय पौधों की सहायता से वे गिरे हुए पेड़ पर एक मजबूत बांध बना कर तालाब का निर्माण करते हैं और उसमें रहने लगते हैं । 
ये जन्तु पूरी तरह शाकाहारी होते है और पेड़ों की टहनियां और पत्तियां खाते है । बीवरों की संख्या बढ़ने के कारण यलोस्टोन में जगह-जगह छोटे-छोटे तालाब बन गए । इनके कारण जमीन में पानी रिसने लगा और भूजल का भंडार बढ़ने लगा । इस प्रकार भेडियों के कारण यलोस्टोन के न केवल पर्यावरण   में सुधार हुआ, नदियों के स्थिर होने से क्षेत्र के भूगोल पर भी असर  पड़ा । 

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