२००८ : सर्वाधिक दस गर्म वर्षोंा में शामिल
विश्व मौसम संगठन द्वारा वर्ष २००८ के सौ साल के सर्वाधिक दस गर्म वर्षोंा की सूची में शुमार होने की आशंका जताई जा रही है । ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ दूसरी बार अपने स्तर से काफी नीचे चली गई है । वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि दुनिया ग्रीन हाउस नैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार अपनी कारगुजारियों पर लगाम कसे । जलवायु परिवर्तन का दौर शुरू हो चुका है । बाजी हाथ से निकली जा रही है । पिछले सौ सालों में धरती के औसत सतही तापमान में दशमलव ७४ डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है, जो शताब्दी के अंत तक डेढ़ से साढ़े चार डिग्री तक पहुँचेगा । यह स्पाष्ट हो चुका है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिग ६० प्रश जिम्मेदार कार्बन डॉयआक्साइड है, जिसकी सांद्रता २९० प्रति दस लाख भग (पीपीएम) से बढ़कर ३७०-८० पीपीएम जा पहुँची है । यह आंकड़ा २०१० तक ३९७-४१६ तक पहुँच जाएगा । २५ करोड़ लोग पानी के लिए तरस जाएँगे और ३० प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्त् हो जाएँगीं । कार्बन डॉय आक्साइड छोड़ने वाले देशों में अमेरिका, चीन, इंडोनेशिया तथा भारत सबसे ऊपर हैं । भारत कें ७५ हजार वर्ग किमी के तटवर्तीय क्षेत्र में आबादी की सघनता ज्यादा है, अर्थात् ४५५ व्यक्ति प्रति वर्ग किमी । इनका जीवनयापन ही समुद्र पर निर्भर है । जलवायु बदलने से जब समुद्र का जलस्तर ऊँचा होगा, तब यही पर कहर बरपेगा । बांगलादेश का तो नामो निशान नहीं रहेगा । जलवायु बदलने से निपटने के लिए शहरों को मुस्तैद कर रहे है । सरकारों को खतरों से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा है । विश्व बैंक मदद देगा । शहरों को ग्रीन सिटी बनाने की कवायद शुरू हो गई है । भारत में सकल घरेलू उत्पाद में २७ प्रतिशत का योगदान देने वाले कृषि क्षेत्र पर सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । खाद्यान्न सुरक्षा व स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा । तापमान में दशमलव ५ डिग्री सेल्सियस का इजाफा गेहूँ के उत्पादन को १० प्रश घटा देगा तापमान बढ़ने से फसलों की अवधि घट जाएगी । संपूर्ण दक्षिण एशिया में खरीफ में वर्षा दस प्रतिशत ज्यादा और रबी में कम या अनिश्चितता लिए रहेगी । इसका असर अभी से दिखाई देने लगा है ।
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में हम पीछे है विश्व भर में हो रहे पर्यावरण के साथ खिलवाड़ से प्रकृति में विनाशकारी बदलाव आ रहे हैं । नतीजन दूर तक फैले हरे-भरे पहाड़ों व मैदानों का रेगिस्तान में बदल जाने का ग्राफ भी ऊपर जा रहा है । वह चौतरफा अप्राकृतिक बदलाव मानव जाति की भावी पीढ़ी के लिए एक भयानक खतरा बन सकता है । दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने की दिशा में हो रहे प्रयासों का जिक्र करें तो भारत परिस्थिकीय संतुलन को बनाए रखने में अभी काफी पीछे है । देश में पर्यावरण को बचाने में काफी पीछे है । देश में पर्यावरण को एक तरफ कर महज आर्थिक विकास की गति का प्राथमिकता दी जा रही है । संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के हर भाग में शुष्क भूमि के हिस्से का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है । कुल भूमि का करीब ४० प्रतिशत हिस्सा शुष्क भूमि में तब्दील हो चुकाहै । सेंटर फॉर एनवायरमेंटल ला एंड पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण और परिस्थितिकी के संरक्षण से जुड़े प्रयासों में भारत का प्रदर्शन अपेक्षा से कहीं कम है । पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ई.पी.आई) में १३३ देशों के बीच भारत ११८ वें स्थान पर है जबकि चीन ९४ वें, श्रीलंका ६७ वें व पाकिस्तान १२३ वें स्थान पर है । रिपोर्ट के अनुसार न्यूजीलैंड, स्वीडन, फिनलैंड, चेक गणराज्य, ब्रिटेन व ऑस्टेलिया इस सूची मे शीर्ष पर आने वाले देशों में शमिल है । अमेरिका का स्थान २८ वां है । रिपोर्ट में सेंटर के निदेशक डॉ. डेनियल सी.एस्टी ने कहा है कि भारत पर्यावरण पर ध्यान दिए बिना आर्थिक विकास को तरजीह दे रहा है । उधर, वन विभाग के महानिदेशक जे.सी.काला का दावा है कि देश के वन क्षेत्र में कुछ वृद्धि हुई है । उन्होने देश में वनों के समुचित विकास के लिए वर्तमान में निर्धारित १६०० करोड़ रूपए का निवेश बढ़ाकर ८००० करोड़ करने की जरूरत बताई है ।
घटते जंगल और बढ़ती चिंताएं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल धरती पर से एक प्रतिशत जंगल का सफाया किया जा रहा है जो पिछले दशक से पचास प्रतिशत ज्यादा है । शहरीकरण के दबाव, बढ़ती जनसंख्या और तीव्र विकास की लालसा ने हमें हरियाली से वंचित कर दिया है । घर के चौबारे में आम - नीम के पेड़ होना गुजरे वक्त की बात हो गई है । छोटे से फ्लैट में बोनसाई का एक पौधा लगाकर हम हरियाली को महसूस करने का भ्रम पालने लगे हैं । ऐसे समय में जब हमारे वैज्ञानिक हमें बार- बार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चेता रहे हैं ..... भयावह भविष्य का चेहरा दिखा रहे हैं ... यह आंंकड़ा दिल दहला देने के लिए काफी है । रूस, इंडोनेशिया, अफ्रीका, चीन, भारत के कई अनछुए माने वाले जंगल भी कटाई का शिकार हो चुके हैं । ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच को शुरू करने वाले डर्क ब्राएंट के अनुसार सिर्फ बीस सालों के अंदर दुनिया भर के ४० प्रतिशत जंगल काट दिए जाएंगें । दुनिया के सबसे बड़े जंगल के रूप में पहचाने जाने वाले ओकी- फिनोकी के जंगल भी इनसे जुदा नहीं । जितनी तेजी से जंगल कट रहे हैं उतनी ही तेजी से जीव-जंतुआें की कई प्रजातियां भी दुनिया से विलुप्त् होती जा रही हे । जंगलों के कटने से एक तरफ वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ रही है वही दूसरी ओर मिट्टी का कटाव भी तेजी से हो रहा है । भारतीय परिप्रेक्ष्य में बात करें तो तीसरी दुनिया से पहली दुनिया के देशोंमें शुमार होने को लालायित हमारे देश में जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है । हिमालय पर्वत पर हो रही तेजी से कटाई के कारण भू-क्षरण तेजी से हो रहा है । एक शोध के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में भूक्षरण की दर प्रतिवर्ष सात मिमि तक पहुंच गई है । नतीजा कई बार ५०० से १००० प्रतिशत तक गाद घाटियों और झीलों में भर जाती है । जिसके कारण नदियों में जलभराव कम हो रहा है । भारत की जीवनरेखा कही जाने वाली कई नदियां गर्मियों में सूख जाती हैं , वहीं बारिश में इनमें बाढ़ आ जाती हैं । वनों की बेरहमी से हो रही कटाई कारण एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर प्रकृति का संतुलन भी बिगड़ रहा है । कई जीव हमारी धरती से लुप्त् हो चुके हैं। सही तरह से आंका जाए तो प्रलय का वक्त नजदीक आता नजर आ रहा है । इस प्रलय से बचने के लिए हमें तेजी से प्रयास करने होंगें । अब हर व्यक्ति को एक दो नहीं कम से कम दस पेड़ लगाने का वादा नहीं, बल्कि पक्का इरादा करना होगा । चिपको आंदोलन को दिल से अपनाना होगा, तभी हम वक्त से पहले आने वाले इस प्रलय से बच सकते हैं ।
राष्ट्रपति भवन के प्रकृति पथ का उद्घाटन राष्ट्रपति भवन को जनता के करीब लाने के मकसद से पिछले दिनों जनता के लिए प्रकृति पथ सैर करने के लिए खोल दिया गया । ढाई किलोमीटर लंबा यह पथ तीन सौ एकड़ के विशाल भूभाग में फैला है । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस प्रकृति पथ का उद्घाटन किया और भरोसा जताया कि आम जनता इस पथ पर सैर करके प्रकृति से रूबरू हो सकेगी। इससे पहले श्रीमती पाटिल ने हर शनिवार को चेंज ऑफ गार्ड के लिए होने वाले समरोेह को जनता के दर्शनार्थ खेलने का आदेश दिया था । वैसे तो राष्ट्रपति भवन का प्रसिद्ध मुगल गार्डन हर साल फरवरी में कुछ दिनों के लिए जनता के लिए खुलता है जिसकी खूबसूरती जनता का मन मोहने के साथ अखबारों की सुर्खी बनती रही है । अब सामान्यजन पूरे साल हर शनिवार को प्रकृति पथ पर चलकर राष्ट्रपति भवन के पीछे फैले वन क्षेत्र में बटर फ्लाई पार्क का आनंद उठा सकेगें जहाँ कई सौ तरह की तितलियाँ देखने को मिलेगी। इस पथ से गुजरते हुए आप पीकॉक प्वाइंर्ट, ग्रेपवाईन यार्ड, अमरूद और संतरे के बगीचे, कटहल के पेड़ सहित जैव विविधता को दर्शाने वाले प्राकृतिक माहौल से रूबरू हो सकते हैं । राष्ट्रपति भवन की प्रवक्ता अर्चना दत्ता के अनुसार राष्ट्रपति चाहती हैं कि राष्ट्रपति भवन को आम जनता के करीब लाया जाए । उनके ही प्रयासों से दिल्ली सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग की मदद से प्रकृति पथ तैयार कराया गया है । उनके अनुसार प्रसीडेंट एस्टेट को एक हरित क्षेत्र, ऊर्जा की बचत और बिना कचरे वाले टाउनशिप के रूप में विकसित किया जा रहा है । ***
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में हम पीछे है विश्व भर में हो रहे पर्यावरण के साथ खिलवाड़ से प्रकृति में विनाशकारी बदलाव आ रहे हैं । नतीजन दूर तक फैले हरे-भरे पहाड़ों व मैदानों का रेगिस्तान में बदल जाने का ग्राफ भी ऊपर जा रहा है । वह चौतरफा अप्राकृतिक बदलाव मानव जाति की भावी पीढ़ी के लिए एक भयानक खतरा बन सकता है । दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने की दिशा में हो रहे प्रयासों का जिक्र करें तो भारत परिस्थिकीय संतुलन को बनाए रखने में अभी काफी पीछे है । देश में पर्यावरण को बचाने में काफी पीछे है । देश में पर्यावरण को एक तरफ कर महज आर्थिक विकास की गति का प्राथमिकता दी जा रही है । संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के हर भाग में शुष्क भूमि के हिस्से का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है । कुल भूमि का करीब ४० प्रतिशत हिस्सा शुष्क भूमि में तब्दील हो चुकाहै । सेंटर फॉर एनवायरमेंटल ला एंड पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण और परिस्थितिकी के संरक्षण से जुड़े प्रयासों में भारत का प्रदर्शन अपेक्षा से कहीं कम है । पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ई.पी.आई) में १३३ देशों के बीच भारत ११८ वें स्थान पर है जबकि चीन ९४ वें, श्रीलंका ६७ वें व पाकिस्तान १२३ वें स्थान पर है । रिपोर्ट के अनुसार न्यूजीलैंड, स्वीडन, फिनलैंड, चेक गणराज्य, ब्रिटेन व ऑस्टेलिया इस सूची मे शीर्ष पर आने वाले देशों में शमिल है । अमेरिका का स्थान २८ वां है । रिपोर्ट में सेंटर के निदेशक डॉ. डेनियल सी.एस्टी ने कहा है कि भारत पर्यावरण पर ध्यान दिए बिना आर्थिक विकास को तरजीह दे रहा है । उधर, वन विभाग के महानिदेशक जे.सी.काला का दावा है कि देश के वन क्षेत्र में कुछ वृद्धि हुई है । उन्होने देश में वनों के समुचित विकास के लिए वर्तमान में निर्धारित १६०० करोड़ रूपए का निवेश बढ़ाकर ८००० करोड़ करने की जरूरत बताई है ।
घटते जंगल और बढ़ती चिंताएं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल धरती पर से एक प्रतिशत जंगल का सफाया किया जा रहा है जो पिछले दशक से पचास प्रतिशत ज्यादा है । शहरीकरण के दबाव, बढ़ती जनसंख्या और तीव्र विकास की लालसा ने हमें हरियाली से वंचित कर दिया है । घर के चौबारे में आम - नीम के पेड़ होना गुजरे वक्त की बात हो गई है । छोटे से फ्लैट में बोनसाई का एक पौधा लगाकर हम हरियाली को महसूस करने का भ्रम पालने लगे हैं । ऐसे समय में जब हमारे वैज्ञानिक हमें बार- बार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चेता रहे हैं ..... भयावह भविष्य का चेहरा दिखा रहे हैं ... यह आंंकड़ा दिल दहला देने के लिए काफी है । रूस, इंडोनेशिया, अफ्रीका, चीन, भारत के कई अनछुए माने वाले जंगल भी कटाई का शिकार हो चुके हैं । ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच को शुरू करने वाले डर्क ब्राएंट के अनुसार सिर्फ बीस सालों के अंदर दुनिया भर के ४० प्रतिशत जंगल काट दिए जाएंगें । दुनिया के सबसे बड़े जंगल के रूप में पहचाने जाने वाले ओकी- फिनोकी के जंगल भी इनसे जुदा नहीं । जितनी तेजी से जंगल कट रहे हैं उतनी ही तेजी से जीव-जंतुआें की कई प्रजातियां भी दुनिया से विलुप्त् होती जा रही हे । जंगलों के कटने से एक तरफ वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ रही है वही दूसरी ओर मिट्टी का कटाव भी तेजी से हो रहा है । भारतीय परिप्रेक्ष्य में बात करें तो तीसरी दुनिया से पहली दुनिया के देशोंमें शुमार होने को लालायित हमारे देश में जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है । हिमालय पर्वत पर हो रही तेजी से कटाई के कारण भू-क्षरण तेजी से हो रहा है । एक शोध के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में भूक्षरण की दर प्रतिवर्ष सात मिमि तक पहुंच गई है । नतीजा कई बार ५०० से १००० प्रतिशत तक गाद घाटियों और झीलों में भर जाती है । जिसके कारण नदियों में जलभराव कम हो रहा है । भारत की जीवनरेखा कही जाने वाली कई नदियां गर्मियों में सूख जाती हैं , वहीं बारिश में इनमें बाढ़ आ जाती हैं । वनों की बेरहमी से हो रही कटाई कारण एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर प्रकृति का संतुलन भी बिगड़ रहा है । कई जीव हमारी धरती से लुप्त् हो चुके हैं। सही तरह से आंका जाए तो प्रलय का वक्त नजदीक आता नजर आ रहा है । इस प्रलय से बचने के लिए हमें तेजी से प्रयास करने होंगें । अब हर व्यक्ति को एक दो नहीं कम से कम दस पेड़ लगाने का वादा नहीं, बल्कि पक्का इरादा करना होगा । चिपको आंदोलन को दिल से अपनाना होगा, तभी हम वक्त से पहले आने वाले इस प्रलय से बच सकते हैं ।
राष्ट्रपति भवन के प्रकृति पथ का उद्घाटन राष्ट्रपति भवन को जनता के करीब लाने के मकसद से पिछले दिनों जनता के लिए प्रकृति पथ सैर करने के लिए खोल दिया गया । ढाई किलोमीटर लंबा यह पथ तीन सौ एकड़ के विशाल भूभाग में फैला है । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस प्रकृति पथ का उद्घाटन किया और भरोसा जताया कि आम जनता इस पथ पर सैर करके प्रकृति से रूबरू हो सकेगी। इससे पहले श्रीमती पाटिल ने हर शनिवार को चेंज ऑफ गार्ड के लिए होने वाले समरोेह को जनता के दर्शनार्थ खेलने का आदेश दिया था । वैसे तो राष्ट्रपति भवन का प्रसिद्ध मुगल गार्डन हर साल फरवरी में कुछ दिनों के लिए जनता के लिए खुलता है जिसकी खूबसूरती जनता का मन मोहने के साथ अखबारों की सुर्खी बनती रही है । अब सामान्यजन पूरे साल हर शनिवार को प्रकृति पथ पर चलकर राष्ट्रपति भवन के पीछे फैले वन क्षेत्र में बटर फ्लाई पार्क का आनंद उठा सकेगें जहाँ कई सौ तरह की तितलियाँ देखने को मिलेगी। इस पथ से गुजरते हुए आप पीकॉक प्वाइंर्ट, ग्रेपवाईन यार्ड, अमरूद और संतरे के बगीचे, कटहल के पेड़ सहित जैव विविधता को दर्शाने वाले प्राकृतिक माहौल से रूबरू हो सकते हैं । राष्ट्रपति भवन की प्रवक्ता अर्चना दत्ता के अनुसार राष्ट्रपति चाहती हैं कि राष्ट्रपति भवन को आम जनता के करीब लाया जाए । उनके ही प्रयासों से दिल्ली सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग की मदद से प्रकृति पथ तैयार कराया गया है । उनके अनुसार प्रसीडेंट एस्टेट को एक हरित क्षेत्र, ऊर्जा की बचत और बिना कचरे वाले टाउनशिप के रूप में विकसित किया जा रहा है । ***
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