शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

४ तेल प्रदूषण









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पेट्रोलियम उत्पाद और जीवन का

संकट


प्रमोद भार्गव


पेट्रोलियम पदार्थोंा, कोयले और प्राकृतिक गैसों के लगातार बढ़ते उपयोग से पैदा हो रहा प्रदूषण पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा साबित हो रहा है । एक अनुमान के अनुसार इससे भारत को लगभग २०० अरब रूपयों की वार्षिक होनी उठानी पड़ रही है । यही नहीं वायु में घुलनशील हो जाने वाले इस प्रदूषण से सांस, फेफड़ो, कैंसर हृदय व त्वचा रोग संंबंधी बीमारियों में इजाफा हो रहा है । पेट्रोलियम पदार्थोंा का समुद्री जल में रिसाव होने से जल प्रदूषण का भी सामना करना पड़ रहा है । पेट्रोलियम पदार्थ मिट्टी पानी और हवा को दूषित करते हुए मानव जीवन के लिए अभिशाप साबित हो रहे हैं । दुनियाभर के समुद्री तटों पर पेट्रोलियम पदार्थोंा और औद्योगिक कचरे से भयावह पर्यावरणीय संकट पैदा हो रहे हैं । तेल के रिसाव, तेल टेंकों के टूटने व उनकी सफाई से समुद्र का पर्यावरणीय परिस्थितिक तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है । राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट पर गौर करें तो केरल के तटीय क्षेत्रों में तेल से उत्पन्न प्रदूषण के कारण झींगा और चिंगट मछलियों का उत्पादन २५ फीसदी कम हो गया है । हाल ही में डेनमार्क के बाल्टिक बंदरगाह पर १९०० टन तेल के फैलाव के कारण प्रदूषण संबंधी एक बढ़ी चुनौती उत्पन्न हुई थी । इक्वाडोर के गैलापेगोस द्वीप समूह के पास समुद्र के पानी में लगभग साढ़े छह लाख लीटर डीजल और भारी तेल के रिसाव से मिट्टी समुद्री जीव और पक्षी खतरें में पड़ गए थे । गुजरात में आए भूकम्प के बाद कांडला बंदरगाह पर भांरण टेंक से लगभग २००० मीट्रिक टन हानिकारक रसायन इकोनाइटिल एसीएन फैल जाने से क्षेत्रवासियों का जीवन ही संकट में पड़ गया था । इसके ठीक पहले कांडला बंदरगाह पर ही समुद्र में फैले लगभग तीन लाख लीटर तेल के जामनगर के पास कच्छ की खाड़ी के उथले पानी में स्थित समुद्री राष्ट्रीय उद्यान में दुर्लभ जीव जंतुआें की कई प्रजातियां मारी गई थीं । जापान के टोक्यो के पश्चिमी तट पर ३१७ किमी की पट्टी पर तेल के फैलाव से जापान के तटवर्ती शहरों में हाहाकर मच गया था । रूस में बेलाय नदी के किनारे बिछी तेल पाइप लाइन से १५० मीट्रिक टन के रिसाव ने यूराल पर्वत पर बसे ग्रामवासियों के सामने पेयजल का संकट खड़ा कर दिया था । सैनजुआन जहाज के कोरल चट्टानी से टकरा जाने के कारण अटलांटिक तट पर करीब तीस लाख लीटर तेल का रिसाव होने से समुद्री जीव प्रभावित हुए थे । मुंबई हाई से लगभग १६०० मीट्रिक टन तेल का रिसाव हुआ । इसी तरह बंगाल की खाड़ी में क्षतिग्रस्त टैंकर से फैले तेल ने निकोबार द्वीप समूह में तबाही मचाई, जिससे यहां रहने वाली जनजातियों और समुद्री जीवन को भारी हानि हुई । साइबेरिया के एक टेंकर से रिसे ८५००० मीट्रिक टन तेल ने स्कॉटलेण्ड में पक्षी समूहों को नुकसान पहुंचाया । सबसे भयंकर तेल रिसाव अमेरिका के अलास्का में हुआ था । यह रिसाव प्रिंस विलियम साउण्ड टेंकर से हुआ था । इस तेल के फैलाव का असर छह माह तक रहा । इस अवधि में इस क्षेत्र में ३५००० पक्षी, १०००० ओस्टर शेलफिश और १५ व्हेल मछली मृत पाई गई थीं । परंतु यह रिसाव ईराक में खाड़ी युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन द्वारा समुद्र में छोड़े तेल से कम था । यह तेल इसलिए समुद्र में ढोल दिया गया था कि कहीं अमेरिका के हाथ न लग जाए । अमेरिका द्वारा इराकी तेल टेंकरों पर की गई बमबारी से भी लाखों टन तेल समुद्री सतह पर फैला । एक अनुमान में मुताबिक इस कच्च्े तेल की मात्रा ११० लाख बैरल थी । इस तेल के रिसाव ने फारस की खाड़ी में जीव जगत को भारी हानि पहुंचाई । इस प्रदूषण का असर मिट्टी, पानी और हवा तीनों पर रहा । जानकारों का मानना है कि इराक युद्ध का पर्यावरण पर पड़ा दुष्प्रभाव हिरोशिमा - नागासाकी पर हुए परमाणु हमले, भोपाल गैस त्रासदी और चेरनोबिल दुर्घटना से भी ज्यादा था । इसी कारण इराक का एक क्षेत्र जहरीले रेगिस्तान में तब्दील हो गया और वहां महामारी का प्रकोप भी अर्से तक रहा । भारतीय विज्ञान कांग्रेस में गैर परम्परागत इंर्धन पर डॉ.एस.के चौपाड़ा ने चौकाने वाली जानकारी दी है । उनके मुताबिक २०० अरब रूपयों का है । इंर्धन उपयोग के क्षेत्र में विश्व में भारत का पांचवा स्थान है और इसकी खपत में सालाना ६ प्रतिशत की वृद्धि हो रही है । पेट्रोलियम पदार्थोंा से होने वाली पर्यावरणीय हानि इन्हें आयात करने में खर्च होने वाली करोड़ों डालर की विदेशी मुद्रा के अतिरिक्त है । गौरतलब है कि भारत अपनी कुल पेट्रोलियम जरूरतों की आपूर्ति का ७० प्रतिशत तेल आयात करता है । दुनिया में करीब ६३ करोड़ वाहन सड़कों पर गतिशील हैं । जिनमें प्रयुक्त हो रहा डीजल व पेट्रोल प्रदूषण का मुख्य कारण है । प्रदूषण रोकने के तमाम उपायों के बावजूद १५० लाख टन कार्बन मोनोआक्साइड, १० लाख टन नाइट्रोजन आक्साइड और १५ लाख टन हाइड्रोकार्बन प्रति साल वायुमण्डल में बढ़े जाते है । जीवाश्म इंर्धन के प्रयोग से सालाना करोड़ों टन कार्बन डाईआक्साइड भी पैदा होती है । विकसित देश वायुमण्डल प्रदूषण के लिए ७० फीसदी दोषी हैं जबकि विकासशील देश ३० फीसदी । पेट्रोलियम पदार्थोंा के जलने से मानव स्वास्थ्य और जीव-जंतुआें पर गंभीर असर हो रहा है । कैंसर के मरीजों की संख्या में से ८० फीसदी रोगी वायुमण्डल में फैले विषैले रसायनों के कारण ही इसका शिकार होते हैं । दिल्ली में फेफड़ों के मरीजों की संख्या कुल आबादी की ३० प्रतिशत है । दिल्ली में अन्य इलाकों की तुलना में सांस और गले की बीमारियों के रोगियों की संख्या १२ गुना अधिक है । इन बीमारियों से निजात पाने के लिए भारत के प्रत्येक नगरीय व्यक्ति को १५०० रूपये प्रतिवर्ष खर्चने होते हैं । विश्व बैंक ने जल प्रदूषण के कारण समुद्र तट पर रहने वाले व्यक्तियों स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के कीमत ११० रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष आंकी है । दूषित जल से ओस्टर शेल मछली कैंसर भी असर पड़ता है । अनजाने में मांसाहारी लोग इन्हीं रोगग्रस्त जीवों को आहार भी बना लेते हैं । इस कारण मांसाहारियों में त्वचा संबंधी रोग व अन्य लाइलाज बीमारियां घर कर जाती हैं । बहरहाल पेट्रोलियम पदार्थोंा की लगातार बढ़ती खपत वायुमण्डल और मानव जीवन को संकट में डालने वाली साबित हो रही है । ***

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