देश में एड्स के विरूद्ध लड़ाई में तेजी
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
संयुक्तराष्ट्र की संस्था यूएन-एड्स ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि जानलेवा बीमारी एड्स के खिलाफ लड़ाई में भारत ने पिछले एक दशक में काफी सफलता हांसिल की है । पिछले दिनों जिनेवा में जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एड्स के शिकार होने वाले लोगोंमें पिछले दस सालों में ५० प्रतिशत की कमी आई है ।
यूएन-एड्स के कार्यकारी निदेशक माइकल सिडिबे ने कहा कि भारत ने सस्ती दवा बनाकर अफ्रीका मेंभी इसके खिलाफ लड़ाई मे काफी मदद की है । एक अनुमान के मुताबिक भारत में पिछले साल तक २४ लाख लोग एचआईवी वायरस से संक्रमित थे । जबकि २००१ में ये संख्या २५ लाख थी । भारत में इस समय एड्स वायरस से पीड़ित छ: लाख ऐसे लोग हैं, जिनका इलाज नहीं हो पा रहा है ।
रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर मेंएचआईवी संक्रमण के शिकार होने वाले और एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है । ऐसे साफ संकेत मिल रहे हैं कि इस बीमारी में कमी आ रही है ।
अभी भी इससे पीड़ित लोगों के प्रति भेदभाव बरते जाने और समाज में इस बीमारी के शिकार लोगों की दिक्कतें कम नहीं हो
रही । इस वक्त दुनियाभर में तीन करोड़ ३० लाख लोग एचआईवी एड्स के शिकार हैं पिछले साल २६ लाख लोग इस संक्रमण के शिकार हुए थे ।
सन् १९९९ के मुकाबले मेंजब ये बीमारी अपने चरम सीमा पर थीं, इसमें २० प्रतिशत की कमी आई है । साल २००९ में एड्स से जुड़ी बीमारियों के कारण १८ लाख लोगों की मौत हुुई थी । जबकि साल २००४ में २१ लाख लोग एड्स की वजह से मौत के आगोश में चले गए थे ।
उपचार के लिए एंटीरेट्रोवायरल दवाआें का इस्तेमाल बढ़ा है । सन् २००४ में जहाँ सात लाख लोग इसका प्रयोग करते थे, २००९ में पाँच लाख लोगों ने एंटीरेट्रोवायरल दवाआें का इस्तेमाल किया । यूएन-एड्स ने चेतावनी दी है कि अफ्रीका अभी भी इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला क्षेत्र बना हुआ है । इस संक्रमण के शिकार होने वाले नए लोगों में लगभग ७०प्रतिशत लोग अफ्रीकी देशों से आते हैं । लेकिन दक्षिण अफ्रीका, जाम्बिया, जिम्बाब्वे और यूथोपिया में संक्रमण की दर घट रही है ।
दुनिया के दूसरे भागोंमें भी इसी तरह की मिली जुली खबरें आ रही हैं । पूर्वी योरप और मध्य एशिया में एड्स तेजी से फै ल रहा है और इनसे मरने वालोंकी संख्या में इजाफा हो रहा है । दक्षिण एशिया में एड्स के शिकार होने वाले बच्चें और इससे मरने वालों की तादाद में कमी आ रही है । एशिया में कई देशों में अलग-अलग कारणों से ये बीमारी फैल रही है ।
वैश्विक आर्थिक संकट के कारण पिछले दो साल मेंएड्स की रोकथाम के लिए किए जा रहे खर्च में कमी आई है । योरप के अमीर देशों ने एड्स के लिए दी जाने वाली सहायता राशि में लगभग ६० करोड़ डॉलर की कमी कर दी है जिसके कारण छोटे और गरीब देशों को खुद ही पैसे का इंतजाम करना पड़ा है । भारत ने एड्स की रोकथाम के लिए पिछले साल कुल एक अरब ४० करोड़ डॉलर खर्च किए । जबकि, २००८ में उसने एक अरब ५० करोड़ डॉलर खर्च किए थे । एशिया में एड्स मे ज्यादातर देशों में समलैंगिकता और वैश्यावृति एक अपराध है और नशीली दवा लेने वालों के लिए कानून बहुत सख्त है जिस कारण उन लोगों तक पहुँचना बहुत मुश्किल हो जाता है ।
अनुमान है कि एड्स की रोकथाम के लिए जितना खर्च किया जा रहा है उसके बेतहर नतीजे मिल रहे हैं। लेकिन चुनौती इस बात की है कि इसमें और अधिक और अधिक सफलता पाने के लिए हम सभी लोग एक साथ मिलकर कैसे काम करें, जो समाज के लिये स्थायी फलदायी हो ।
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