मुम्बई सबसे बड़ा शहर, रहते हैं ५ करोड़
देश की ७९ प्रतिशत आबादी अभी भी गाँव में बसती है । आजादी के बाद यह पहला मौका है, जब आबादी की बढ़त दर में खासी गिरावट हुई । भारतीय १२१ करोड़ हैं । इनमें से ८३.३ करोड़ लोग गाँव में बसे हैं । ३७.७ प्रतिशत शहरों में रह रहे हैं । साथ ही यह पहला मौका है, जब शहरों की आबादी दर गाँवों की अपेक्षा ज्यादा बढ़ी है । देश में लिंगानुपात बढ़ा है । आबादी के लिहाज से मुम्बई सबसे बड़ा शहर और उत्तरप्रदेश सबसे बड़ा राज्य है ।आजादी के बाद से यह पहला मौका है कि जब शहरी क्षेत्रों में आबादी गाँवो की तुलना में ज्यादा बढ़ी है । जनगणना आयुक्त और भारत के रजिस्ट्रार जनरल सी. चंद्रमौली ने बताया कि ग्रामीण शहरी वितरण क्रमश: ६८.८४ और ३१.१६ प्रतिशत है । शहरीकरण का स्तर २००१ के २७.८१ प्रतिशत से बढ़कर २०११ में ३१.१६ प्रतिशत हो गया है । ग्रामीण आबादी का अनुपात ७२.१९ प्रतिशत से घटकर ६८.८४ प्रतिशत रह गया है । चूँकि ग्रामीण इलाके में आबादी की बढ़त दर घटी है, इसीलिए कुल वृद्धि दर गिरी है। फिर भी ग्रामीण इलाकों में पिछले दशक के मुकाबले ९ करोड़ ज्यादा है ।
शहरों में सबसे ज्यादा आबादी के मामलों में मुम्बई सबसे आगे है और राज्यों में उत्तरप्रदेश । आँकड़े बताते है कि मुम्बई की आबादी ५ करोड़ है । साथ ही उत्तरप्रदेश में देश की १८.६२ प्रतिशत आबादी रहती है, जबकि महाराष्ट्र में देश की १३.४८ प्रतिशत शहरी आबादी रहती है ।
शिशु लिंगानुपात में गिरावट आई है । ग्रामीण क्षेत्रों में ८९ लाख बच्च्े कम हुए, जबकि शहरी क्षेत्रों में ३९ लाख बच्च्े बड़े । आँकड़े बताते है कि देश में लिंगानुपात बढ़ा है । २००१ में यह प्रति हजार ९३३ था, २०११ में यह ९४० हो गया । ग्रामीण इलाकों में यह दस साल पहले के ९४६ से ९४७ से हो गया, जब कि शहरों में ९०० से ९२६ हो गया है।
समुद्र की दुर्गंध के कारणों पर वैज्ञानिकों की पहल
कुछ वैज्ञानिको का कहना है कि नदियो से मीठा पानी और अन्य स्त्रोतों का बहता पानी आने की वजह से समुद्र में लवणता कम हो गई है जिससे खारे पानी में पाई जाने वाली शैवाल खत्म हो गई और दुर्गन्ध निकलती है । अन्य अनुसंधानकर्ता इससे सहमत नही है । इनमे से कुछ की राय है कि भू-गर्भीय हलचल दुर्गध की वजह है ।
केरल विवि के अनुसंधानकर्ता के एक दल ने इस विचित्र घटना का कोल्लम और तिरूअंनतपुरम के तटों पर अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि शैवाल में तीव्र वृद्धि के कारण बैक्टीरिया का क्षरण हुआ जिससे यह दुर्गध निकलती है ।
वैज्ञानिकों का कहना है कि केरल के कुछ भागों में पिछले दिनों से समुद्र से आ रही दुर्गध से भयभीत होने की जरूरत नहीं है । बहरहाल इसके कारणों के बारे में वैज्ञानिक एकमत नहीं है । केरलविवि के जलीय जीव विज्ञान और मत्स्यिकी विभाग के अनुसंधानकर्ता ने ए.बीजू कुमार की अगुवाई में सिफारिश की कि सरकार शैवाल में तीव्र वृद्धि की पहचान करने के लिए तटीय जल की गहन जांच करे क्योंकि ऐसा होने पर विषैले तत्व उत्पन्न हो सकते है ।
इन अनुसंधानकर्ता ने कहा कि समुद्री पानी के रंग, लवणता, तापमान, पीएच पोषक तत्वों, प्लैकटन, सूक्षम जीवाणुआें और मछलियों के मरने की दर जैसे विभिन्न मानकों का अध्ययन करने के बाद उन्होनें यह निष्कर्ष निकाला है । प्लैकटन उन सूक्ष्म जीवों और वनस्पतियों को कहा जाता है जिनकी खारे पानी में बहुतायत होती है और जिन्हें मछलियां खाती है । कोल्लम स्थित एसएन कॉलेज में प्राणीशास्त्र विभाग में सहायक प्राध्यापक डॉ. सैनुदीन पत्ताझी कहते है कि इस दुर्गध का कारण भूगर्भीय हलचल जैसे हाल ही में केरलतथा अन्य राज्यों में आए मामूली तीव्रता के भूकंप के झटके आदि है ।
अब तंबाकू से भी बन सकेगी सेहत
तंबाकू का नाम आते ही सिगरेट, खैनी, गुटखा की चिन्ताजनक तस्वीर उभरती है, लेकिन जल्द ही इसका इस्तेमाल सुंदरता बढ़ाने, बुढ़ापे को दूर भगाने के लिए भारत में भी होने लगेगा । और तो और अगर देश में चल रहा कृषि अनुसंधान रंग लाया तो तम्बाकू के तेल को खाद्य तेल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा ।
सुन्दरता के लिए तंबाकू के इस औषधीय उपयोग की तकनीक का पेटेंट तो आंध्रप्रदेश के राजामुंदी के केन्द्रीय तंबाकू अनुसंधान संस्थान ने हासिल कर लिया है । अब इसके उद्यमियों को व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए हस्तांतरित करने की प्रक्रिया बाकी है ।
तम्बाकू की मौजूदा किस्म का सिगरेट, खैनी या गुटखे के लिए इस्तेमाल होने का खतरा होता है, इसीलिए अब एक नई किस्म तैयार हो रही है जिसका उपयोग सिर्फ औषधीय या तेल के लिए हो सकेगा । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत काम करने वाले इस संस्थान के निदेशक वैज्ञानिक डॉ. वी.कृष्णमूर्ति ने बताया - इससे किसी भी रूप में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ नहीं बनाया जा सकेगा । तंबाकू की पत्तियों से निकाले जाने वाले सोलनसेल का इस्तेमाल टीबी के उपचार, घावों के भरने के लिए लिपिड तत्वों की कमी को दूर करने और सुन्दरता बढ़ाने के लिए एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में हो सकता है ।
सन् २०३० तक गैर-संंक्रामक रोगोंसे होगी ४० लाख मौतें
भारत जैसे देश में टीबी, मलेरिया या चिकनगुनिया जैसी बीमारियों की बजाए गैर-संक्रामक बीमारियां सबसे बड़ी चुनौती बनने जा रही है । एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार २०३० तक देश में गैर-संक्रामक रोगों (डायबिटीज, केंसर, दिल की बीमारी और ब्लड प्रेशर की बीमारी) से मरने वाले लोगों की संख्या ४० लाख होगी । २००५ में गैर-संक्रामक रोगों से मरने वाले लोगों की संख्या ५३ प्रतिशत थी, जबकि २०३० तक यह आंकड़ा ६७ फीसदी ज्यादा होगा । पब्लिक हेल्थ फाउडेंशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) संस्थान द्वारा जारी किए गए इस रिपोर्ट के अनुसार गैर-संक्रामक रोगों से मरने वालों में दिमागी समस्याआ के कारण मरने वालों की तादाद भी काफी होगी।
पीएचएफआई प्रमुख डॉ. श्रीनाथ रेड्डी द्वारा हाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौपी गयी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि गैर-संक्रामक रोगों में सबसे बड़ा कारण ब्लड प्रेशर की परेशानी बनने वाली है । वर्ष २००० हाइपरटेंशन के १.१८ करोड़ मामले थे जो २०२५ तक २.१३ करोड़ हो जाएंगे । देश में मौत का दूसरा बड़ा कारण डायबिटीज को बताया गया है । रिपोर्ट बताती है कि २०२५ तक करीब ८७ मिलीयन लोग डायबिटीज के मरीज होगें । युवाआें और वयस्कों के अलावा बच्चें में बढ़ते तंबाकू का इस्तेमाल को एक बड़ी समस्या बताया गया है ।
रिपोर्ट तैयार करने वाले और पीएचएफआई संस्थान प्रमुख डॉ. श्रीनाथ रेड्डी का कहना है कि विकसित देशों के मुकाबले देश के युवाआेंऔर गरीबों में बढ़ते गैर-संक्रामक रोग चिंता का विषय है । सरकार को गैर-संक्रामक रोगों से निबटने के लिए एक सुनियोजित रणनीति तैयार करने की जरूरत है ।
बांधवगढ़ में होगी टाइगर सफारी
मध्यप्रदेश में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में बढ़ते पर्यटकों के दबाव को कम करने के उद्देश्य से प्रबंधन ने टाइगर रिजर्व की सीमा के भीतर टाइगर सफारी कराने का निर्णय लिया है । टाइगर सफारी अर्थात् कंफर्म टाइगर रिजर्व इसके तहत बाड़े के भीतर से पर्यटकों को बाघ दर्शन कराया जाता है । प्रबंधन के मुताबिक जो भी पर्यटक महज टाइगर देखने के लिए देश-विदेश से बांधवगढ़ पहुंचते है । उनके लिए टाइगर सफारी उपयुक्त रहेगा ।प्रबंधन के उच्च् सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार टाइगर सफारी कराने के लिए प्रधान मुख्य वन सरंक्षक द्वारा टाइगर रिजर्व के अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए गए है एवं साथ ही शासन से आवश्यक अनुमति के लिए प्रस्तावना तैयार की जा रही है ।
प्रबंधन के मुताबिक बढ़ती पर्यटकों की संख्या से टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में पर्यटकों का दबाव दिनों दिन बढ़ रहा है । इससे कोर एरिया के रहवासी प्रबंधन से नाखुश नजर आने लगे थे । पीछे की कई घटनाआें पर नजर डाले तो प्रबंधन व ग्रामवासियों के बीच हुई तीखी झड़प व मारपीट इसी दबाव का परिणाम कही जा सकती है ।
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