विश्व व्यापार संगठन और तीसरी दुनिया
रॉबर्टो बिस्सियो
विश्व व्यापार संगठन के निदेशक पास्कल लामी अपने तर्को के समर्थन में जिन प्रतीकों को सहारा ले रहे हैं वे कहीं इस संगठन की वास्तविकता को ही समाने ला रहे हैं । भारत सहित तीसरी दुनिया के अधिकांश देश विश्व व्यापार संगठन की जोर जबरदस्ती नीतियों से त्रस्त हो चुके हैं । वैसे भी इस संगठन के अस्तित्व में आने के बाद अधिकांश देशोंमें सामाजिक व आर्थिक खाईयों में वृद्धि ही हुई है ।
वैश्विक व्यापार को स्वतंत्र करने हेतु वर्षो से वार्ताआें के दौर चल रहे हैं । उरूग्वे दौर जिसमें विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की स्थापना की गई थी एवं बौद्यिक सम्पदा, सेवाआें और निवेश को इस प्रक्रिया में समाविष्ट किया था, सन् १९८६ से १९९४ तक यानि ८ वर्ष तक चला । वर्तमान का दोहा दौर जो कि सन् २००१ में प्रारंभ हुआ और जिसे विकास के दौर भी कहा जाता है, में सीमांत राष्ट्रों की रूचि के विषयों को भी समाहित किया गया था, अब ठहर सा गया लगता है ।
उकताहट से बचने एवं प्रेस को इच्छुक बनाए रखने हेतु कुछ समझौताकर्ताआें ने पत्रकारों की क्षुधापूर्ति हेतु चतुर लाक्षणिक स्थितियों की खोज कर उन्हें आंकड़ों के वास्तविक विश्लेषण और दस्तावेजों के पढ़े जाने से भी बचा लिया । उरूग्वे दौर के परिशिष्ट करीब बीस हजार पृष्ठों में संकलित है, उदाहरण के लिए यह तर्क कि व्यापारिक उदारीकरण एक स्थायी प्रक्रिया है और इसे गंभीर जोखिम लिए बिना रोका ही नहीं जा सकता, को हमेशा सायकल के प्रतीक के रूप में दिखाया जाता है । यानि कि जो भी यदि सतत चलता नहीं है वह गिर जाता है ।
अंतत: एक दिन अपने देश के व्यापार को बगैर तैयारी के तेजी से खोलने को लेकर बनाए जा रहे निरन्तर व अनावश्यक दबाव से नाराज होकर जेनेवा में तत्कालीन भारतीय राजपूत बी.के. जुत्शी ने उत्तरी अमेरिका के समझौताकार को व्यंग्य से जवाब देते हुए कहा, अपने देश में हम लोग भी सायकलों के बारे में थोड़ा बहुत जानते हैं और मैं आपको विश्वास दिलाता हॅूं कि जब ट्रेफिक लाइट लाल हो जाती है तो सभी सायकलें रूक जाती हैं और कोई भी गिरता नहीं है । यदि आप चाहें तो मैं आपको यह बता सकता हॅू कि हम ऐसा कैसे कर पाते हैं ।
७ अप्रैल २०११ को विश्व व्यापार संगठन के निदेशक पास्कल लामी ने मीडिया से चर्चा करते हुए उनके संगठन द्वारा हाल ही प्रकाशित आंकड़ों को और भी बेहतर बताने का प्रयत्न किया । डब्ल्यूटीओ ने बताया कि सन् २०१० में व्यापार में रिकार्ड १५ प्रतिशत के करीब का वृद्धि हुई है, लेकिन सन् २०११ के लिए निराशाजनक ६ प्रतिशत की वृद्धि की ही भविष्यवाणी की है । इतना ही नहीं जापान में आए भूकंप और परमाणु आपातकाल की वजह से यह आंकड़ा और भी नीचे जा सकता है । वैश्विक राजनीतिक माहौल के दौर अधिक व्यापारिक उदारीकरण के पक्ष में न होने से मामला अधिक बिगड़ गया है और दोहा दौर, गैर कृषि उत्पादों की बाजार तक पहुंच के मामलों में लगे रोड़ों को हटाने में भी असफल सिद्ध हुआ है ।
श्री लामी ने स्वीकार किया है कि यह बहुत ही कठिन समय है लेकिन विश्व व्यापार संगठन एक खच्च्र की तरह विश्वसनीय और दृढ़ है । उनका कहना है कि व्यापारिक आंकड़े खच्च्र की तरह हैं, जो कि पीछे नहीं जाते । खच्च्र के साथ समस्या यह है कि कई बार वह रूक जाता है और आगे नहीं बढ़ता और वापस भी नहीं आता है । लेकिन आगे बढ़ने से भी इंकार कर देता है । उनका कहना है कि विश्व व्यापार प्रणाली में वर्तमान में यही हो रहा है ।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सन् २००९ में १२ प्रतिशत गिरा परन्तु सन् २०१० में यह उभर गया और सन् १९५० जबकि पहली बार आंकड़े तैयार किये गये थे, के बाद पहली बार एक वर्ष में इतना ज्यादा बढ़ा । वैसे सन् २०१० में विश्व का कुल उत्पादन ३.६ प्रतिशत बढ़ा, जिसका कि अर्थ है कि व्यापार में वास्तविक उत्पादन में चार गुना अधिक की वृद्धि हुई । विश्व व्यापार संगठन का कहना है, इस वृद्धि का कारण भी वही है जिस कारण से वर्ष २००९ में इसमें गिरावट आई थी । यानि वैश्विक उत्पादन श्रृखंला का अर्थ है निर्माण प्रक्रिया के दौरान वस्तुआें का अनेक बार राष्ट्रीय सीमाआें के आर-पार परिवहन ।
वस्तुआें के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सबसे गंभीर रूप से चोट पहुंचाने वाली समस्याएं है, औद्योगिक मशीनें और उपभोक्ता वस्तुएं जिसमें अंतिम उत्पादन के अनेक हिस्से बड़े अनुपात में होते हैं । इससे सन् २००९ में आई तीव्र गिरावट और पिछले वर्ष संभलने में दोनों ही बातें स्पष्ट हो जाती है ।
इसे समझाते हुए श्री लामी फायनेंशल टाइम्स के अपने स्तंम्भ में लिखते है तीस वर्ष पूर्व एक देश में उसी के संसाधनों का इकट्ठा कर उत्पाद तैयार किए जाते थे । इस व्यापार को मापना आसान था । परन्तु आज निर्माण कार्य वैश्विक श्रृंखला के माध्यम से होता है और कहा जा सकता है कि अधिकांश वस्तुएं वैश्विक तौर पर निर्मित होती हैं न कि चीन निर्मित । और यह अकादमिक भिन्नता भर नहीं हैं । व्यापार असंतुलन से राजनीतिक द्वेष पैदा हो सकत है । अतएव जिस तरह से हम व्यापार को मापते हैं उससे वैश्विक राजनीतिक तनाव में वृद्धि भी हो सकती हैं ।
वरिष्ठ पत्रकार चक्रवर्ती राघवन जो कि पिछले ३० वर्षो से जेनेवा में हो रहे व्यापारिक समझौतों पर निगाह रखे हुए है, श्री लामी के इस आकलन से असहमत हैं कि यह एक नई धारणा है। अपनी आलोचना की पुष्टि हेतु उन्होनें सन् १७५० से लगातार प्रकाशित होने वाले एक पंचाग के सन् १७८५ के वार्षिक रजिस्टर की प्रति प्रस्तुत की है । इसमें लिखा है, फ्रांसीसियों को अंग्रेजी वाहन बहुत पंसद है । इस हेतु पहियों और शाक एर्ब्जवर के ८०० सेट फ्रांस भेजे गए जिनका इस्तेमाल वहां वाहन बनाने (अलामोड डी एंग्लोइस) के लिए किया जाएगा । यदि उत्पादन श्रृंखला इतनी पुरानी धारणा है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि चीन जो निर्यात कर रहा है उसमें ६० प्रतिशत हिस्सा आयातित है या उससे भी अधिक । वास्तविक बात यह है कि वैश्विक व्यापार को संगठित करने की प्रक्रिया में चीन उस वस्तु पर कितना लाभ ले रहा है ।
श्री राघवन ने इस संबंध में पुर्तगाल और इंग्लैंड के मध्य के व्यापारिक रिश्तों का उदाहरण भी दिया जिनका अध्ययन एडम् स्मिथ और रिकॉर्डो जैसे पारम्परिक अर्थशास्त्रियों ने दो सौ वर्षो से भी पहले किया था । पुर्तगाली किसान अंगूर उपजाते थे, उनके रस में खमीर उठाते थे और नाल (पीर्पो) में भर कर ब्रिस्टोल के व्यापारियों को बेच देते थे और वे इसे बोतलों में भरकर ब्रिटिश जहाजों द्वारा ब्रिटेन भेज देते थे । इसका अर्थ यह हुआ कि पुर्तगाली निर्यात का लाभ ब्रिटिश व्यापारियों को मिलता था । पुर्तगाली अर्थव्यवस्था आज भी विकासशील है जबकि ब्रिटेन २० वीं शताब्दी के मध्य तक विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत बना रहा ।
किसी भी कीमत पर खुले व्यापार की वकालत करने वालों को प्रतीक चुनने में सावधानी रखना चाहिए और यह बात भी ध्यान में रखना चाहिए कि खच्च्र गधे और घोड़े की संकर संतान है और वह नंपुसक भी है ।
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