गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

जनजीवन
कोयला घोटाले का लेखा जोखा
जयन्त वर्मा

    सर्वोच्च् न्यायालय द्वारा कोयला घोटाले को लेकर दिया गया निर्णय इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि इसने एक बार पुन: प्राकृतिक संसाधनों को राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में स्थापित करने का सफल प्रयास किया है । पिछले दो दशकों से जारी कोयले की दलाली में सभी ने हंसी खुशी से अपने हाथ ही नहीं मुंह भी काले किए हैं ।
    सर्वोच्च् न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूति कुरियन जोसेफ की त्रिसदस्यीय पीठ  ने अपने एक अहम फैसले में भारत के विभिन्न राज्यों में पिछली केन्द्र सरकारों द्वारा वर्ष १९९३ से २०१० के दौरान निजी कम्पनियों को केप्टिव उपयोग हेतु आबंटित २१८ में से २१४ कोल ब्लाक्स के आबंटन को आधारहीन पाते हुए रद्द कर दिया है । स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड को आबंटित तासरा कोल ब्लाक, एन.टी.पी.सी. को आबंटित पाकरी बरवाडीह तथा सिंगरौली के अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट सासन पॉवर लिमिटेड को आबंटित दो कोयला खदानों का आबंटन कायम रखा गया है । आदेश में कहा गया है कि न्यायालय की देख-रेख में चल रही कोयला खान आबंटन घोटाले की सी.बी.आई. जांच चलती रहेगी । कई कम्पनियों द्वारा खदान से कोयला उत्पादन शुरू  नहीं किए जाने की वजह से सरकार को हुई २९५ रु. प्रति टन की दर से राजस्व हानि की भरपाई भी करने का न्यायालय ने आदेश दिया है । जिन ४६ खदानों ने उत्पादन शुरू कर दिया है, उनमें से ४२ को अपना कारोबार समेटने के लिए ६ माह का समय दिया गया है ।
    प्रभावित कोयला ब्लाक में २९ मध्यप्रदेश के हैं, जो रिलायंस, हिन्डाल्को, बिरला कार्पोरेशन, एस्सार, जेपी एसोसिएट्स, बीएलए स्टील एवं जिन्दल स्टील आदि को आबंटित किए गए थे । रिलांयस ने सिंगरौली जिले में (प्रत्येक) ३९६० मेगावाट क्षमता के दो ताप विद्युत संयंत्र स्थापित किए थे, जिनको कोयला आबंटन जारी रहेगा । इनमें से सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट, सिंगरौली में उत्पादन प्रारंभ हो चुका है, जिसे मुहेर, मुहेर अमरौली एक्सटेंशन ब्लाक से कोयला उपलब्ध किया जा रहा है । फैसले से सिंगरौली के महान कोल ब्लाक का आबंटन निरस्त हो गया है, जो एस्सार एम.पी. पावर लिमिटेड और हिंडाल्को को संयुक्त रूप से आबंटित था ।
    कोयला खदानों की बंदरबांट का खेल १९९२ से प्रारंभ हुआ था। प्राय: सभी राजनीतिक दलों की धन्नासेठों और बड़े कार्पोरेट घरानों से सांठगांठ के चलते यह घोटाला निर्बाध गति से चलता रहा । नरसिंहराव से लेकर मनमोहन सिंह के कार्यकाल तक अलग-अलग सरकारों ने ये आबंटन किए थे। अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने भी अपने कार्यकाल में ३३ कोयला खदानों का आबंटन किया   था । मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में यह घोटाला तब उजागर हुआ, जब मार्च २०१२ में नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की ड्राट रिपोर्ट सामने आई । मई २०१२ में प्रमुख सतर्कता आयुक्त ने सीबीआई से आबंटन की जांच करने को कहा। १७ अगस्त, २०१२ को कैग की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत हुई, जिसके अनुसार कोयला ब्लाक की बंदरबांट से सरकार को १ लाख ८६ हजार करोड़ रूपए का घाटा हुआ । सितम्बर २०१२ में सुप्रीम कोर्ट ने कोयला ब्लाक आबंटन की सीबीआई जांच की निगरानी का फैसला लिया । अप्रैल २०१३ में संसदीय समिति ने वर्ष १९९३ से २००८ तक के आबंटनों को अवैध हराया । सीबीआई की सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट में मनमोहन सरकार के विधिमंत्री अश्विनी कुमार ने २० प्रतिशत बदलाव किए तो न्यायालय ने सीबीआई को सरकारी '''पिंजरे का तोता`` कहा । अंतत: अश्विनी कुमार को त्यागपत्र देना पड़ा । प्रधानमंत्री कार्यालय से कोयला ब्लाक आबंटन संबंधी फाइलों के गायब होने से दाल में काला होने का संदेह पुख्ता हुआ था ।
    कैग की रिपोर्ट के अनुसार कोयला खदानों की बंदरबांट से कम्पनियों को १७० खरब रूपयों का फायदा हुआ । वर्ष २००६ में कोयला ब्लाक आबंटन के वक्त केप्टिव प्लांटों के लिए खदान की नीलामी का विकल्प मौजूद था, जिसकी अनदेखी कर चुनिंदा निजी कम्पनियों को मुनाफा पहुंचाया गया । सन् १९९३ से २००५ के बीच लगभग ७०; २००६ में ५३; २००७ में ५२; २००८ में २४; २००९ में १६ तथा २०१० में एक कोयला ब्लाक आबंटित हुए थे । राज्य सरकारों की सिफारिश पर केन्द्र सरकार ने इन कोयला ब्लॉक का आबंटन किया था । आबंटित कोयला ब्लॉक महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा, झारखण्ड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के हैंं, अत: इन राज्यों की सरकारें भी अवैध आबंटन में सहयोगी रही हैं । कोयला ब्लाक घोटाले के पूर्व कैग की रिपोर्ट से ही २जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया, इनके आबंटन को भी उच्च्तम न्यायालय ने निरस्त किया था । इन घोटालों के दौर में राडिया टेप उजागर हुए, जिनसे सिद्ध हुआ कि कार्पोरेट घरानों के हाथ में सरकार की लगाम होती है । प्राय: सभी पार्टियां ऐसे गोरखधंधोंे को प्रोत्साहित करती हैं ।
    प्राय: सभी राजनीतिक दलों में इसी वर्ग का वर्चस्व रहा है, इसलिए भारत में औद्योगिक पूंजीवाद की बजाय लंपट पूंजीवाद आया । इस व्यवस्था में व्यावसायिक दक्षता के  बजाय सत्ता-संबंध महत्वपूर्ण होता है। व्यवसाय की सफलता के लिए राजसत्ता से संबंध या मिलीभगत आवश्यक होती है । यही कारण है कि भारतीय प्रतिभाएं मातृ-भूमि को छोड़कर अमेरिका, यूरोप, अरब मुल्कों आदि देशों में जाकर व्यावसायिक रूप से सफल हो जाती हैं । २जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लाक घोटालों पर उच्च्तम न्यायालय के फैसलों और भ्रष्ट राजनेताओं को जेल भेजे जाने की ताजा घटनाओं ने भारत में पनप रहे लंपट पूंजीवाद पर अंकुश लगाने की ऐतिहासिक पहल की है ।

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