गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

ऊर्जा-जगत
हरित ऊर्जा में चीन का चमत्कार
डॉ. माई-वान हो

    चीन ने अपने यहां प्रदूषण के खात्मे एवं जीवाष्म इंर्धन को लेकर आयात पर निर्भरता समाप्त करने के  उद्देश्य से जल, वायु और सौर ऊर्जा को जबरदस्त प्रोत्साहन दिया और इसमें असाधारण सफलता भी अर्जित की । आज चीन दुनिया में सर्वाधिक ऊर्जा उत्पादन करने वाला देश बन गया है और दूसरी ओर अमेरिका की निर्भरता अभी भी जीवाष्म इंर्धन से विद्युत उत्पादन पर है । चीन को विकास का अपना आदर्श मानने वाला भारत क्या चीन की इस विकास नीति को अपनाएगा ? 
     प्यू चेरीटेबल ट्रस्ट की वार्षिक रिपोर्ट `स्वच्छ ऊर्जा की दौड़ का विजेता` में बताया है कि चीन ने लगातार दूसरी बार `स्वच्छ ऊर्जा निवेश दौड़` में बाजी मार ली है । चीन ने सन् २०१३ में इस पर ५४ अरब डॉलर का निवेश किया, जबकि अमेरिका ३६.७ अरब डॉलर के साथ दूसरे, जापान २८.६ अरब डॉलर के साथ तीसरे एवं ब्रिटेन १२.४ अरब डॉलर के साथ चौथे स्थान पर रहा । परंतु इस मद में वैश्विक निवेश में लगातार दूसरे वर्ष कमी आई है । इस वर्ष वैश्विक निवेश २५४ अरब डॉलर रहा जो कि सन् २०११ के मुकाबले ११ प्रतिशत और सन् २०११ में जब निवेश अपने चरम पर यानी ३१८ अरब डॉलर था, से २० प्रतिशत क्कम रहा । चीन ने सन् २०१३ में अपनी पवन ऊर्जा की क्षमता में १३ गीगावाट और सौर ऊर्जा में १२ गीगावाट की वृद्धि की । जबकि इस दौरान अमेरिका ने पवन ऊर्जा में मात्र एक गीगावाट और कर में छूट के बाद सौर ऊर्जा उत्पादन में मात्र ४.३ गीगावाट की वृद्धि की । एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पहली बार बजाए पवन ऊर्जा के टर्बाइन सौर ऊर्जा संयंत्र निर्माण से अधिक रहे । इस अवधि में सौर ऊर्जा की एक तिहाई क्षमता विकसित हुई है । परंतु चीन में इससे कहीं अधिक कार्य जारी है ।
    सन् २०१२ के अंत में चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने `ऊर्जा उत्पादन व उपभोग में क्रांति` का नारा दिया । मई २०१४ में चीन की सर्वोच्च् आर्थिक योजना एजेंसी ने बताया इसका वास्तविक अर्थ है वायु, सौर और जल से घरेलू रिन्युबल (नवीकरण) ऊर्जा निर्माण का व्यापक विस्तार । सिर्फ सन् २०१३ में ही चीन ने बाकी सारी दुनिया की सम्मिलित गणना से अधिक पवन ऊर्जा स्थापित कर ली और यह अमेरिका ने जितनी पिछले पूरे दशक में की थी, से भी ज्यादा थी । अगले कुछ वर्षों में चीन अपने बनाए इन लक्ष्यों को भी तोड़ देगा । चीन की योजना है कि वह सन् २०१७ तक अपनी पवन ऊर्जा क्षमता को दुगुनी अर्थात् ७८ गीगावाट से १५० गीगावाट पर और सौर ऊर्जा की क्षमता को तीन गुना करके यानि २० गीगावाट से ७० गीगावाट पर ले जाएगा । दूसरे शब्दों में कहें तो अगले तीन वर्षों में चीन ब्रिटेन की पवन टर्बाइनों की वर्तमान क्षमता से ६ गुना अधिक पवन ऊर्जा बनाने लगेगा । इस बात का भी आभास मिल रहा है कि चीन अब ताप (कोयला आधारित) विद्युतगृहों से स्वयं को छुटकारा दिलाएगा जो कि वर्तमान में देश की विद्युत का तीन चौथाई उत्पादित करते हैं ।
    सन् २०१४ की शुरुआत से चीन के अनेक प्रांतों ने कोयले के इस्तेमाल की अधिकतम सीमा तय करना प्रारंभ कर दिया है । यह भी देखना होगा कि क्या यह नई परियोजनाएं महाकाय के बजाए भागीदारी मूलक होंगी ? पिछला इतिहास बताता है कि चीन का झुकाव महाकाय परियोजनाओं की ओर ही होगा । लेकिन वहां यह जागरूकता भी बढ़ती जा रही है कि छोटे स्तर का विकेंद्रीकृत उत्पादन भी उतना ही महत्वपूर्ण है ।
    पिछले दो वर्षों में चीन के नीति निर्माताओं ने विकेंद्रित सौर ऊर्जा की व्यापकता और लोगों को अपनी ऊर्जा स्वयं उत्पादित करने हेतु प्रोत्साहित किया है । साथ ही नए लक्ष्यों के अनुसार सन् २०१५ तक चीन की सौर ऊर्जा का ५० प्रतिशत छोटे स्तर की परियोजनाओं से आने लगेगा । इसके अलावा सरकार ने ऊर्जा उत्पादन हेतु तयशुदा भुगतान प्रणाली स्थापित की है तथा घोषणा की है कि कम लागत वित्त को प्रोत्साहन दिया जाएगा । ऐसे संकेत मिले हैं    कि ये उपाय कारगर साबित हो रहे    हैं । 
    एक अनुमान है कि इस योजना के अंतर्गत सन् २०१३ में ३ गीगावाट क्षमता के सौर पीवी स्थापित किए गए और सन् २०१४ में ८ गीगावाट की स्थापना संभावित है, जो कि ३.२ करोड़ सोलर पेनल के बराबर है । इस रफ्तार से चीन शीघ्र ही सौर ऊर्जा क्षेत्र में जर्मनी को पीछे छोड़ देगा । विश्व वन्य जीव कोष एवं एनर्जी ट्रांजिशन रिसर्च संस्थान ने भविष्यवाणी की है कि चीन सन् २०५० तक अपनी क्षमता का ८० प्रतिशत रिन्युबल विद्युत से प्राप्त करेगा और तब तक कोयले की  बजाए इसकी लागत भी कम हो जाएगी ।
    ऑस्ट्रेलिया के मेक्यावर विश्वविद्यालय सिडनी के जॉन मेथ्यु एवं न्यू केसल विश्वविद्यालय के हाओतान के विस्तृत अध्ययन के अनुसार चीन से सन् २०१३ में अपनी उत्पादन क्षमता में ९४ गीगा वाट की वृद्धि की है । इसमें से ५५.३ गीगावाट रिन्युबल ऊर्जा यानि जल, वायु एवं सौर से एवं ३६.५ गीगावाट ताप विद्युत (मुख्यतया कोयला) से आया है । इसके अलावा चीन ने परमाणु स्त्रोतों से मात्र २.२ गीगावाट विद्युत उत्पादन वृद्धि की है । इस तरह चीन की नवनिर्मित क्षमता का ६० प्रतिशत रिन्युबल स्त्रोतों और बाकी का ४० प्रतिशत गैर रिन्युबल यानि जीवाष्म इंर्धन और परमाणु से आया है ।
    चीन को दुनिया के सबसे अधिक कोयला उत्पादन एवं उपभोग वाले और विश्व के सर्वाधिक ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जित करने वाले देश के रूप में जाना जाता है । परंतु अब यह विश्व का सबसे बड़ा, रिन्युबल ऊर्जा प्रणाली का निर्माण कर रहा है । यह सन् २०१३ में करीब एक खरब किलोवाट घंटे थी जो कि फ्रांस एवं जर्मनी द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित विद्युत ऊर्जा जितनी है ।
    अमेरिका और चीन दोनों की विद्युत शक्ति प्रणाली १ अरब वाट को पार कर चुकी है और चीन इसमें भी थोड़ा आगे यानि १.२५ अरब वाट है जबकिअमेरिका की क्षमता १.१६ अरब वाट है । इस तरह चीन इस ग्रह पर सर्वाधिक विद्युत उत्पादन करने वाला देश बन गया है जबकि अमेरिका में प्रति व्यक्ति विद्युत उपभोग अभी भी चीन से चार गुना ज्यादा है । हालांकि ताप विद्युतगृहों में कोयले की मांग बढ़ती जा रही है लेकिन सरकार ने कोयले के उपभोग की `सीमा` ३५० करोड़ टन निश्चित कर दी है । एक तरह से यह काले होते आकाश और जहरीले होते पानी एवं वायु को बचाने का एक दु:साहसी प्रयास है ।
    रिन्युबल ऊर्जा की ओर तीव्र झुकाव से चीन इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्पादक बन गया और सन् २०१३ में इसकी क्षमता विश्व में सर्वाधिक हो गई थी । चीन ने अपनी १२वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत सन् २०१५ तक अपनी विद्युत ऊर्जा का ३० प्रतिशत रिन्युबल ऊर्जा से प्राप्त करने का लक्ष्य बनाया था । लेकिन उसने इस लक्ष्य को तीन वर्ष पूर्व ही प्राप्त कर लिया । इसके  विपरीत अमेरिका की जीवाष्म इंर्धन पर निर्भरता बढ़ती ही जा रही है, इसमें विशेषकर गैस आधारित संयंत्र शामिल हैं । अमेरिका ने सन् २०१३ में अपनी क्षमता में १६ गीगावाट की वृद्धि की थी जिसमें से ७.३ गीगावाट प्राकृतिक  गैस से थी ।
    इस प्रकार अमेरिका की मुख्य प्रवृत्ति स्पष्टतया कोयला सीम गैस और जीवाष्म इंर्धन इस्तेमाल की थी न कि रिन्युबल ऊर्जा की । धुएं से भरे आकाश एवं जल स्त्रोतोंके जबरदस्त प्रदूषण ने चीन को तुरत-फूरत रिन्युबल की ओर मुड़ने हेतु प्रेरित किया । यह जीवाष्म इंर्धन आपूर्ति खासकर इनके आयात पर से निर्भरता कम करेगा । इतना ही इसने ऊर्जा से संबंधित निर्यात उद्योग की नींव भी डाल दी । चीन द्वारा अपनी १२वीं पंचवर्षीय योजना (सन् २०११ से २०१५ तक) में कम कार्बन व स्वच्छ उद्योग को विकास की रणनीति का आधार बनाया गया । इसके बाद ही चीन सौर पेनल एवं पवन टर्बाइन का विशेषज्ञ बन गया । मेक्युज एवं हान का निष्कर्ष है कि `रिन्युबल का विकल्प रोजगार एवं निर्यात हेतु हरित उत्पाद के रूप में `चीन की भविष्य की विकासात्मक रणनीति` एक सुविचारित व्यापार रणनीति भी है ।

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