गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

गांधी जंयती पर विशेष
बापू का अंतिम जन्मदिन
प्यारेलाल

    २ अक्टूबर, १९४७ को गांधीजी का जन्मदिन था । यह उनके  जीवनकाल में मनाया जाने वाला अंतिम जन्मदिन था । उनकी मंडली के लोग प्रात:काल ही उन्हें प्रणाम करने आ पहुंचे । उनमें से एक साथी ने कहा `हमारे जन्मदिन पर हम दूसरों के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं, परंतु आपके मामले में उल्टी बात है । क्या यह न्याय है ?` गांधीजी ने हंसकर कहा, `महात्माओं की बातें दूसरी ही होती हैं । इसमें मेरा कसूर नहीं है । तुमने मुझे महात्मा बना दिया, यद्यपि झूठा महात्मा; इसलिए तुम्हें दंड भुगतना चाहिए ।`
     उन्होंने अपना जन्मदिन सदा की भांति उपवास, प्रार्थना और अधिक कताई करके मनाया । उन्होंने समझाया: ''उपवास आत्मशुद्धि के  लिए है और कताई इस प्रतिज्ञा को दोहराने का चिन्ह है कि ईश्वर के  नीचे से नीचे और छोटे से छोटे प्राणी की सेवा में अपने आपको अर्पित   करूं ।` उन्होंने अपने जन्मदिन के उत्सव को चरखे के पुनर्जन्म का उत्सव बना दिया था । चरखा अहिंसा का प्रतीक था । यह प्रतीक तो विलीन हो गया लगता था, परंतु गांधीजी ने उत्सव मनाना नहीं छोड़ा था, क्योंकि उन्हें यह आशा थी कि कम से कम कुछ छुटपुट व्यक्ति तो भी चरखे के  संदेश के प्रति वफादार होंगे । इन्हींलोगों की खातिर गांधीजी ने इस उत्सव को जारी रहने दिया था ।
    जब साढ़े आ ठ बजे गांधीजी स्नान करके अपने कमरे में घुसे, तो घनिष्ठ मित्रों का एक छोटा सा दल वहां उनकी प्रतीक्षा कर रहा था । उनमें पं. नेहरू और सरदार, उनके यजमान घनश्यामदास बिड़ला और दिल्ली के बिड़ला परिवार के सभी सदस्य थे । मीराबहन ने उनकी बैठक को खूब सजाया था । उसके सामने उन्होंने एक कलापूर्ण क्रॉस, हे राम और पवित्र ऊँ कई रंग के फूलों से बना दिए थे । एक छोटी सी प्रार्थना हुई । उसके बाद गांधीजी का प्रिय भजन `वेन आई सर्वे द  वण्डरस क्रॉस` और दूसरा उनकी पसंद का हिंदी भजन `हे गोविन्द राखो शरण` गाया गया ।
    मुलाकाती और मित्र दिनभर राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अर्पण करने आते रहे । इसी प्रकार विभिन्न देशों के राजदूत भी आए । उनमें से कुछ अपनी-अपनी सरकारों की तरफ से गांधीजी के लिए अभिनंदन और अभिवादन लाये थे। अंत में श्रीमती माउंटबेटन गांधीजी के नाम आए हुए पत्रों और तारों का ढेर लेकर पहुंची । उन सबसे गांधीजी यही प्रार्थना करने का अनुरोध किया कि ` या तो वर्तमान में उठा दावानल शांत हो जाए या ईश्वर मुझे उठा ले । मैं नहीं चाहता कि आग से जलते हुए भारत वर्ष में मेरी दूसरी वर्षगांठ आए ।
    जन्मदिन का यह अवसर आने वालों की स्मृतियों पर गांधीजी के जीवन का एक अत्यंत दु:खद अवसर बनकर रह गया । उन्होंने सरदार से कहा, `मैंने ऐसा कौन सा पाप किया होगा कि ईश्वर ने मुझे ये तमाम भयंकर घटनाएं देखने को जिंदा रखा है ?` चारों और फैले हुए दावानल के सामने लाचारी की भावना से गांधीजी जले जा रहे थे । सरदार की पुत्री मणिबहन ने उस दिन की अपनी डायरी में दुख: के साथ यह लिखा : `उनकी (बापूकी) पीड़ा असहनीय थी । हम खुशी से उछलते उनके पास गए थे, लेकिन भारी दिल के साथ घर लौटे ।`
    मिलने वालों के चले जाने के बाद गांधीजी को खांसी का दूसरा दौरा हुआ । वे मन ही मन बोले -`यदि प्रभु का नाम मेरे लिए सब रोगों की रामबाण दवा सिद्ध नहीं होता, तो मैं इस शरीर को छोड़ देना अधिक पसंद करूंगा । इस सतत जारी रहने वाले भातृवध के कारण सवा सौ वर्ष जीने की मेरी इच्छा बिल्कुल नहीं रह गई है । मैं इसका असहाय साक्षी बनना नहीं चाहता । `किसी ने बीच में ही कहा : तो सवा सौ वर्ष से आप शून्य पर उतर आए हैं ।` उनका उत्तर था, `हां यदि दावानल बंद नहीं हो जाता ।`
    शाम की प्रार्थना में गांधीजी ने  कहा - बहुत से लोग मुझे बधाइयां देने आए थे । देश और विदेश दोनों से मुझे पचासों तार मिले हैं । निराश्रितों ने मेरे पास फूल भेजे हैं और अनेक श्रद्धांजलियां तथा शुभकामनाएं मुझे प्राप्त हुई है । परंतु मेरे हृदय में पीड़ा के सिवा कुछ नहीं है । मेरी आवाज एकाकी है । सब जगह यही शोर मचा हुआ है कि हम मुसलमानों को भारतीय संघ में नहीं रहने देंगे । इसलिए मैंआपकी कोई भी बधाई स्वीकार करने मेें सर्वथा असमर्थ हूं । बधाई किसलिए? `क्या संवेदना प्रकट करना अधिक उपयुक्त नहीं होगा ?` जब द्वेष और हत्याकांड वातावरण में फैलकर हमारा गला घोट रहे हों, तब मैंजिंदा नहीं रह सकता । मेरी सब लोगों से प्रार्थना है कि जो पागलपन आप पर सवार हो गया है, उसे आप छोड़ दें और अपने हृदयों को द्वेष और घृणा से मुक्त कर लें ।
    एक सिक्ख नेता के साथ गांधीजी की बातचीत हुई थी । इन सज्जन ने गांधीजी को बताया था कि यह कहना बिल्कुल गलत है कि दसवें सिक्ख गुरु गोविंदसिंह ने अपने अनुयायियों को मुसलमानों की हत्या करने की शिक्षा दी थी । इसके बजाए गुरु ने यह कहा था कि इस बात का कोई महत्व नहीं कि मनुष्य ईश्वर की पूजा कैसे, कहां और किस नाम से करता है, क्योंकि ईश्वर सबके लिए एक ही है, इतना ही नहीं मनुष्य सर्वत्र एक ही अर्थात एक ही प्रकार का प्राणी है । `सब एक ही ढांचे में ढले हुए है, सबकी समान भावनाएं होती हैं, सब मरते हैं और सब उसी मिट्टी में मिल जाते हैं । वायु और सूर्य भी सबके लिए एक हैं ।गंगा किसी मुसलमान को अपना ताजगी लाने वाला पानी देने से इन्कार नहीं करती । बादल सभी पर पानी बरसाते हैं । अपने और अपने साथियों के बीच भेद करने वाला मनुष्य निरा अज्ञान है ।`
    आकाशवाणी ने गांधीजी की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक विशेष कार्यक्रम रखा था । उनसे पूछा गया: क्या आप विशेष कार्यक्रम एक बार भी नहीं सुनेंगे ? उन्होंने उत्तर दिया: `नहीं ।` मुझे `रेडियो` से `रेंटियो` अधिक पसंद है । चरखे की गूंज मुझे अधिक मीठी लगती है।

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