सोमवार, 17 अगस्त 2015

प्रदेश चर्चा 
म.प्र.: ग्रीन ब्रिज से होगी नर्मदा प्रदूषणमुक्त
मनीष वैद्य
मध्यप्रदेश में तेजी से प्रदूषित होती जा रही नर्मदा नदी को अब ग्रीन ब्रिज से साफ-सुथरा और प्रदूषणमुक्त बनाने की मुहिम शुरू हो चुकी है । जबलपुर में ३ संरचनाएं बन चुकी हैं तो अब १२ और नगर-कस्बों में ग्रीन ब्रिज बनाने का काम भी जल्द ही शुरू होगा । 
महंगे और बिजली से चलने वाले ट्रीटमेंट प्लांट की जगह अब सरकार ने नदी के पानी की सफाई के लिए आधुनिक, किफायती, सरल, पर्यावरण हितैषी, नवाचारी और प्राकृतिक तकनीक ग्रीन ब्रिज के इस्तेमाल पर जोर दिया है । यह भौतिक-जैविक पद्धति से पानी को शुद्ध करता है और उसके द्यातक प्रभाव को भी कम करता है । नर्मदा का सबसे अधिक प्रवाह क्षेत्र (करीब ८७ प्रतिशत) मध्यप्रदेश में ही है लेकिन प्रकृति से छेड़छाड़ और अनियोजित औद्योगिक विकास के चलते प्रदेश में कई जगह घातक रासायनिक पदार्थो और गंदे पानी के नदी प्रवाह में मिलने से नर्मदा तेजी से प्रदूषित हो रही है । 
प्रदेश की जीवनरेखा मानी वाली जाने वाली नर्मदा नदी में कई स्थानों पर गंदे नालों का पानी मिल रहा है तो कई जगह औद्योगिक इकाइयों के खतरनाक अपशिष्ट । इसके अलावा खेतों में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक खाद और कीटनाशकों की वजह से भी नर्मदा दूषित होती जा रही है । इतना ही नहीं अब नर्मदा घाटी में जंगल भी काफी कम हो चले हैं और कई जगह तो नर्मदा के जल स्तर में भी भारी गिरावट आ रही है । 
नर्मदा के सदानीरा होने से यह गर्मियों में भी प्रदेश के कई शहरों और नगरों की प्यास बुझाती है, ऐसे में प्रदूषित पानी का हानिकारक प्रभाव बहुत बड़ी जनसंख्या को प्रभावित कर सकता  है । इस स्थिति में नर्मदा को अपने पुराने स्वरूप में लौटाने की जरूरत फिलहाल सरकार और समाज दोनों की ही प्राथमिकता है । 
नदी के प्रदूषित होने की लगातार खबरों के बाद म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी हरकत में आ गया है । बोर्ड ने प्रदेश सीमा में नर्मदा किनारे बसे ३६० में से ३१० नगरीय निकायों (नगर निगम, नगर पंचायत और नगर पालिकाआें) को नदी में सीधे गंदे पानी छोड़े जाने पर आपत्ति जताते हुए अन्य व्यवस्था करने संबंधी नोटिस दिए हैं । इनके जवाब में अधिकांश नगरीय निकायों का मत था कि उनपके पास गंदे पानी का निकासी के लिए अन्य कोई व्यवस्था नहीं होने से ऐसा करना पड़ रहा है । उनके यहां ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए पैसा नहीं है । ऐसी स्थिति में म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का ध्यान पानी साफ करने की सरल-सहज तकनीकों पर गया । 
ग्रीन बिज तकनीक को पुणे की सृष्टि इका रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर संदीप जोशी ने विकसित किया है । इसमें नदी तल के क्षैतिज में पत्थरों की पालनुमा इनवर्टेड वी आकार की संरचना बनाई जाती है, जिसे नारियल की भूसी या किसी अन्य रेशेदार कपड़े आदि से ढंका जाता है । इस वी आकार के गड्ढेनुमा कुंड में पानी को शुद्ध करने के लिए कुछ सुक्ष्म जीवाणुआें और जैविक रसायनों को रखा जाता है । अब नदी प्रवाह के पानी से ठोस पदार्थ जैसे प्लास्टिक, पूजन सामग्री, हार-फूल, घरों का कचरा, पत्तियां आदि पहली ही पाल से अलग हो जाते हैं । 
इसके बाद घुलनशील अशुद्धि के साथ पानी कुंड से होकर गुजरता है तो यहां जीवाणुआेंऔर जैविक रसायनों के संपर्क में आने से अशुद्धि यहीं रूक जाती है और पूरी तरह से शुद्ध पानी आगे नदी प्रवाह के साथ बढ़ जाता है । यह तकनीक तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है । इससे पहले भी राजस्थान में जब अहर नदी के गंदे पानी से उदयपुर की उदयसागर झील दूषित होने लगी, मछलियां और अन्य जलचर भी खत्म होने लगे और मानव जीवन के लिए हानिकारक औद्योगिक अपशिष्ट भी बहकर आने लगे, तब स्थानीय झील संरक्षण समिति ने इसी तकनीक का इस्तेमाल कर नदी क्षेत्र को साफ-सथुरा बनाया । इसी तरह अन्य कई स्थानोंपर भी इसके सफल प्रयोग हो चुके हैं । 
इस तकनीक के कई फायदे हैं । जैसे यह अपेक्षाकृत बहुत सस्ती और सरल तकनीक है । इसके संधारण में कोई खर्च नहीं आता । इसमें न तो बिजली का खर्च लगता है और न ही मनुष्य के श्रम की कोई खास जरूरत होती है । बस थोड़े-थोड़े दिनों में इसकी सफाई करना होती है। यह पूरी तरह से पर्यावरण के हक में है और किसी भी तरह से वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को कोई नुकसान नहीं करती है । इससे मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर डालने वाले पदार्थो और अशुद्धियों को दूर किया जाता है तो यह बीमारियों की आशंका को भी काफी हद तक कम कर देती है । यह पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाती है तथा आसपास के भूजल को भी दूषित होने से बचाती है । 
पहले पानी में घुलनशील घातक रसायनों और अशुद्धियों को दूर करने के लिए बहुत महंगी और जटिल प्रक्रियाआें से गुजरना पड़ता था । इसके बावजूद सीमित मात्रा में ही पानी शुद्ध हो पाता था । इससे नदी जैसे बड़े जल स्त्रोंतो की सफाई संभव नहीं हो पाती थी । यह नदी के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ा देता है जिससे मछलियों और अन्य जलचरों को रहने के लिए अनुकूल स्थितियां बन जाती है । 
यह नदी क्षेत्र से करीब ४० से ८० प्रतिशत तक सॉलिड कन्ट्रोल यानी बड़े कचरे की सफाई कर देता है जबकि ४० से ९० प्रतिशत तक प्रदूषण को भी रोक देता है । देखा जाता है कि कई जगह गांवों में लोग नदी किनारे ही शौच करते है । मानव मल में मौजूद कोलीफार्म जीवाणु स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक होता है पर इस तकनीक से शुद्ध पानी में इसकी मात्रा करीब ५० से १०० फीसदी तक कम हो जाती है । 
नदी क्षेत्र के साफ-सुथरे हो जाने से जहां उसका प्राकृतिक सौन्दर्य बढ़ जाता है वहीं पेड-पौधों और वन्यजीवों की तादाद भी बढ़ जाती   है । इस तरह यह एक स्वास्थ्यप्रद और खुशनुमा वातावरण भी तैयार करता है । इसकी सबसे बड़ी खासियत है उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थो और अन्य रसायनों से पानी को शुद्ध करना । इससे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्वों जैसे लेड, आर्सेनिक और फ्लोराइड आदि से भी निजात मिलती है । नर्मदा नदी में शुरूआत के तौर पर जबलपुर के आसपास तीन संरचनाएं बनाई गई है । अब इसे आगे बढ़ाते हुए आेंकारेश्वर, महेश्वर, मण्डलेश्वर, नेमावर, धरमपुरी, डिंडौरी, मंडला और नरसिंहपुर में काम चल रहा    है । 
मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष नर्मदाप्रसाद शुक्ला ने बताया कि नर्मदा के पानी के दूषित होते जाने की खबरों के चलते बोर्ड ने नीरो और सीरी जैसे शोध संस्थानों से संपर्क किया है । प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए बोर्ड लगातार अध्ययन कर रहा है । अभी नर्मदा के उदगम अमरकंटक से म.प्र. की सीमा तक अलग-अलग २५ स्थानों से नर्मदा पानी के सेम्पल लिए हैं । इनकी जांच के बाद यह खुलासा हुआ है कि इनमें करीब ९० फीसदी सेम्पल में ए ग्रेड आया है यानी यह पानी बिना किसी उपचार के पीने हेतु मानव उपयोग में लाया जा सकता है । उन्होंने कहा कि नर्मदा हमारे लिए प्रकृति की सबसे अनमोल और अनुपम सौगात है, इसे हर हाल में सहेजने की जरूरत है । 

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