सोमवार, 17 अगस्त 2015

विशेष लेख
पर्यावरण संरक्षण : एक प्राथमिक आवश्यकता
कृष्ण कुमार द्विवेदी 
पर्यावरण शब्द का शब्द कोषीय अर्थ है - आस-पास, पर्यावरण उन सभी स्थितियों और प्रभावों का योग है जो जीव समुदाय के विकास एवं जीवन पर असर डालते हैं । इसकी रचना भौतिक जैविक एवं सांस्कृतिक  तत्वों वाले पारस्परिक क्रियाशील तन्त्रों से होती हैं, ये तंत्र अलग-अलग तथा सामूहिक रूप में परस्पर सम्बद्ध होते हैं ।
  पर्यावरण - भौतिक तत्व, स्थान, स्थलरूप, जलीय भाग, जलवायु, मृदा शैल खनिज, मानव निवास्थ क्षेत्र की बदली विशेषताआें, उसके सुअवसरों तथा प्रतिबंधक स्थितियों को निश्चित करता है तथा गतिशील रूप में मानव जीव-जन्तु पौधो सूक्ष्म जीव समूह और उसके गुणोंके बीच सम्बन्ध स्थापित करता है । वर्तमान मेंमनुष्य ने अपनी अति आर्थिक लोलपता की नीति के कारण पर्यावरण को नष्ट करने का कार्य अधिक किया है अति पश्चिमी प्रभाव से प्रकृति प्रदत्त संसाधनों के विनाशकारी दोहन के कारण समस्त परिस्थितिकीय संतुलन ही गड़बड़ा गया है, बढ़ते औद्योगिकीकरण एवं भयंकर जनसंख्या विस्फोट के फलस्वरूप मनुष्य में राक्षसी तृष्णा जाग उठी है, और इसी का परिणाम है कि दिन-प्रतिदिन धरती के तापमान में वृद्धि, ओजोन परत का क्षीण होना, अम्लीय वर्षा, अकाल, सूखा, इंर्धन, लकड़ी तथा चारे की कमी, वायु तथा जल प्रदुषण, रासायनिक विकीरण, भूमि विकृति, बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा का नष्ट होना, वन्य जीवों का वनस्पतियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है । 
यहां यह उल्लेखनीय तथ्य है कि पर्यावरण की गुणवत्ता के बारे में चिन्तन समाज के सभी वर्गो में, व्यापक रूप से विचार विमर्श का विषय बन गया है । विगत कुछ वर्षौ से आम जनता में भी पर्यावरण संरक्षण की प्रति जागरूकता बढ़ी है, पर्यावरणीय समस्याआें के हल खोजने में रूचि आवश्यकता बनकर ही सभी के समक्ष आई है लेकिन अभी भी यह रूचि का प्रयास पर्यावरणीय गुणवत्ता को प्राप्त् करने के लिए पर्याप्त् नहीं है । अत: वर्तमान में बिगढ़ते पर्यावरण के सुधार के लिये आम जनों में अधिक से अधिक पर्यावरण संरक्षण जागरूकता का लाया जाना जरूरी है । 
वस्तुत: पर्यावरण संरक्षण जागरूकता एक राष्ट्रीय एवं प्राथमिक आवश्यकता है । पर्यावरण जागरूकता ही समस्त जैव-जगत को, उस पर आने वाली संभावित विपदाआें से निपटने तथा उन्हें सुखमय तरीके से जीवन जीने की व्यवस्था अपनाने का प्रयास कराता  है । तथा उन्हें इस योग्य भी बनाता है कि वे आगे और हो सकने वाली समस्याआें को पूर्व में ही जान सके और उनका हल खोजें जिससे पर्यावरण संकट समाप्त् किया जा  सके । इस परिप्रेक्ष्य में पर्यावरणीय संरक्षण की आवश्यकता निम्नानुसार अभिप्रमाणित होती है क्योंकि : सौर मण्डल में केवलपृथ्वी ही एक ऐसा गृह है जिस पर जीवन है और जीवन को नष्ट होने से बचाना है तथा उस पर बसने वाले मानव को सुखमय जीवन उपलब्ध कराना है । 
जनसंख्या में बढ़ती वृद्धि से समस्त प्रकृतिचक्र गड़बड़ा गया है । प्रकृति को पुन: सन्तुलित करने तथा भावी पीढ़ियों को विरासत में सुन्दर और व्यवस्थित भविष्य छोड़ने हेतु जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना है ।
प्रकृति मेंसंसाधनों के विशालतम भण्डारों की भी सीमा है । उनका उचित एवं बुद्धिमतापूर्ण उपयोग हो  यह जन-जन को सिखाना जरूरी है । पेड़ और वनस्पति ही केवलकार्बन डाईऑक्साइड को प्राण वायु-ऑक्सीजन में परिवर्तित कर सकते हैं । औद्योगिक क्रान्ति तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों के फलस्वरूप-सुख-सुविधाआें के उपकरणों ने चर्तुदिक विविध प्रकार के प्रदूषण भी फैलाया है उन पर समायोजनात्मक नियंत्रण आवश्यक है । 
पर्यावरण संरक्षण का वास्तविक उद्देश्य है कि प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग करें और बुद्धिमतापूर्ण करें, ऊर्जा की बचत करें, वनों की सुरक्षा करें उन्हें नष्ट होने से बचायें, प्रदूषण को रोके तभी हम अधिसंख्य-जनों को स्वच्छ पानी, स्वच्छ भोजन, हवादार आकाश और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कर   पायेगें । निष्कर्षत: कहा जा सकता है, पर्यावरण संरक्षण के प्रति आमजन की जागरूकता आज की प्राथमिक आवश्कता है । 
हमें इसकी उपादेयता को स्वीकार करना ही होगा, इसके लिए अभियानिक कार्य योजनाआें को पहलता से लागू कर जन-जन का सक्रिय योगदान लेना होगा । पर्यावरण संरक्षण जागरूकता ही अन्तत: समग्र को पर्यावरण की गुणवत्ता और जीवन की गुणवत्ता देने वाली है । 
पर्यावरण संरक्षण - जागरूकता हेतु क्या करें  ?
* जन-जन को पर्यावरण की सत्यता और तथ्यात्मक जानकारी देना । 
* नवीन खोजों के आधार पर संभावित प्रदूषण के कारणों का पता लगाकर प्रचारित करना । 
* पर्यावरणीय अपदाआें एवं भावी संकटों की जानकारी देना । 
* आम पर्यावरण संकट के हल खोजना और उनको जन सामान्य में प्रचारित करना । 
* पर्यावरण संकट को समझने और उससे निपटने एवं सहज व सरल उपाय खोजन हेतु जन-जन को अभिप्रेरित करना । 
* भावी पीढ़ी को भविष्य के पर्यावरणीय संकट से अवगत कराकर तदनुरूप कार्य करने की समझाइश देना । 
* विशुद्ध पर्यावरण में स्वयं जिये और दूसरों को भी शुद्ध पर्यावरण में जीने दें, वाली प्राकृतिक भावना को आत्मसात करने को प्रेरित   करना । 
वृक्षों केसंरक्षण में पर्यावरण संरक्षण 
* वृक्ष लगाओ करो विचार, वन करते कितना उपकार । 
* उजड़ी धरती करें पुकार, वृक्ष लगाकर करो श्रृंगार । 
* समय की यही पुकार, वृक्ष लगाकर करो उद्धार । 
* जन-जन का हो यही विचार, बच्च्े कम पेड़ हो हजार । 
* दस कूप बने एक ताल बने । 
* दस ताल बने एक पुत्र जने । 
* दस पुत्र जने एक वृक्ष  बने । 
* पौधा रोपण कार्य महान, एक वृक्ष दस पुत्र समान । 
* वन है धरती माँके रक्षक, करो न इनका नाश निरर्थक । 
* मांगती है धरा, एक वरदान, तुम अगर दे सको तो, वृक्ष का दान दो । 

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