सोमवार, 17 अगस्त 2015

कविता
नंदा देवी
स.ही. वात्सायन अज्ञेय
नंदा,
बीस-तीस-पचास वर्षो मे
तुम्हारी वनराजियों की लुगदी बनाकर
हम उस पर
अखबार छाप चुके होंगे
तुम्हारे सन्नाटे को चीर रहे होंगे
हमारे धुँधुआते शक्तिमान ट्रक,
तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंगे
और तुम्हारी नदियाँ
ला सकेगीकेवल शस्य-भक्षी बाढ़ें
या आँतों को उमेठने वाले बीमारियाँ
तुम्हारा आकाश हो चुका होगा
हमारे अतिस्वन विमानों के
धूम-सूत्रों का गुंझर ।
नंदा,
जल्दी ही-
बीस-तीस-पचास बरसों में
हम तुम्हारे नीचे एक मरू बिछा चुके होंगे 
और तुम्हारे उस नदी धौत सीढ़ी वाले मन्दिर में
जला करेगा 
एक मरूदीप । 

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