मंगलवार, 19 जनवरी 2016

सामयिक
दिल्ली में संकट बनी हवा
प्रमोद भार्गव

    पिछले कई दिनों से दिल्ली में छाई धुंध और धुंए ने कई चिंताजनक सवाल छोड़े है । औद्योगिक विकास, बढ़ता शहरीकरण और उपभोगवादी संस्कृति आधुनिक विकास के वे लक्षण हैं जो हवा, पानी और मिट्टी को एक साथ प्रदूषित करते हुए मनुष्य समेत समूचे जीव-जगत को संकटग्रस्त बना रहे हैं ।
    दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के मद्देनजर राष्ट्रीय हरित ट्रायबनूल (एनजीटी) ने दिल्ली सरकार को फटकार लगतो हुए समस्या का हल ढूंढने की सलाह दी है । दिल्ली उच्च् न्यायालय ने कहा कि दिल्ली अब एक गैस चैंबर में बदलती जा रही    है । मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस समस्या पर तात्कालिक हल के लिए तीन नीतिगत फैसले लिए हैं । एक, दिल्ली का ताप विद्युत बिजली घर बंद कर दिया जाएगा । दो, वाहनों के लिए यूरो-६ मानक लागू होगा और तीसरा, एक दिन सम और दूसरे दिन विषय नम्बरों के ही वाहन सड़कों पर उतरेंगे । यह फैसला १ जनवरी २०१६ से लागू हो रहा है । 
     भारत में औद्योगिकरण की रफ्तार भूमण्डलीकरण के बाद तेज हुई । एक तरफ प्राकृतिक संपदा का दोहन बड़ा तो दूसरी तरफ औघोगिक कचरे में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई । लिहाजा दिल्ली में जब शीत ऋतु ने दस्तक दी तो वायुमण्डल में धूल और धुंए के बारीक कणों को कोहरा छा गया । मौसम विज्ञानी इसकी तात्कालिक वजह पंजाब एवं हरियाणा के खेतों में जलाए जा रहे फसल के डठंल बता रहे हैं । यदि वास्तव में इसी आग से निकला धुंआ दिल्ली में छाए कोहरे का कारण होता तो यह स्थिति चंडीगढ़, अमृतसर, लुधियाना और जालधंर जैसे बड़े शहरों में भी दिखनी चाहिए थी, लेकिन नहीं  दिखी ।    
    अलबत्ता इसकी मुख्य वजह हवा में लगातर प्रदूषक तत्वों पर बढ़ना है । दरअसल मौसम गरम होने पर जो धूल और धुंए के कण आसमान में कुछ ऊपर उठ जाते हैं, वे सर्दी बढ़ने के साथ-साथ नीचे खिसक जाते हैं । दिल्ली में बढ़ते वाहन और उनकी वजह से पैदा होता धुंआ और सड़क से उड़ती धूल अंधियारे की इस परत को और गहरा बना देते हैं ।
    इस प्रदूषण के लिए बढ़ते वाहन कितने दोषी हैं, इस तथ्य की पृष्टि इस बात से होती है कि हाल ही में दिल्ली में कार मुक्त दिवस आयोजित किया गया था । उस दिन वायु प्रदूषण करीब २६ प्रतिशत कम हो गया था । इससे पता चलता है कि दिल्ली में कारों को नियंत्रित कर दिया जाए तो प्रदूषण काफी कम हो सकता है । इस नाते सम-विषम संख्या वाली कारों को सड़कों पर उतारने का फैसला कारगर साबित होगा ।
    किन्तु विडंबना है कि एनजीटी दिल्ली में इस प्रदूषण का कारण उन ८० हजार ट्रकों को मान रहा है, जो दिल्ली में अनाज, फल-सब्जी, मांस और अन्य जरूरी चीजें बाजारों तक पहुंचाते हैं । एनजीटी की सलाह है कि इन ट्रकों का दिल्ली में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया जाता है तो ये ट्रक दिल्ली से सटी हरियाणा, राजस्थान और उत्तरप्रदेश की सीमा पर माल उतारेंगे । और फिर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उतारे गए इस सामान को छोटे वाहनों से दिल्ली के बाजारों में पहुंचाया जाएगा । समस्या जस की तस बनी रहेगी, क्योंकि जो माल ८० हजार ट्रकों से दिल्ली के भीतर आता है, उसे दिल्ली की सीमाआें से करीब ४ लाख छोटे वाहन लादकर दिल्ली लाएंगे । इससे प्रदूषण बढ़ेग या घटेगा इसका तकनीकी आक लन कराने की जरूरत है । ट्रको पर प्रतिबंध अपनी समस्या को दूसरे क्षेत्रों में स्थानान्तरति करने जैसा ही होगा ।
    दिल्ली में इस वक्त वायुमण्डल में प्रदूषक तत्वों की मात्रा मानक से ६० गुना ज्यादा हो गई   है । इस वजह से लोगों में गले, फेफड़ों और आंखों की तकलीफ बढ़ जाती है । कई लोग मानसिक अवसाद की गिरफ्त में भी आ जाते हैं । वैसे हवा में घुलता जहर महानगरों में ही नहीं छोटे नगरों में भी प्रदूषण का सबब बन रहा है । कार-बाजार ने इसे भयावह बनाया   है । यही कारण है कि लखनऊ, कानपुर, अमृतसर, इन्दौर और अहमदाबाद जैसे शहरों में प्रदूषण खतरनाक सीमा लांघने को तत्पर   है । उद्योगों से निकलता धुंआ और खेतों में बड़े पैमाने पर औघोगिक व इलेक्ट्रानिक कचरा जलाने से भी दिल्ली की हवा में जहरीले तत्वों की सांद्रता बढ़ी है । इस कारण दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है । वैसे भी दुनिया के जो २० सर्वाधिक प्रदूषित शहर है, उनमें भारत के १३ शहर शामिल है ।
    बढ़ते वाहनों के चलते वायु प्रदूषण की समस्या दिल्ली में ही नहीं पूरे देश में भयावह होती जा रही है । मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के लगभग सभी छोटे शहर प्रदूषण की गिरफ्त में है । डीजल व घासलेट से चलने वाले वाहनों व सिंचाई पंपों ने इस समस्या को और विकराल रूप दे दिया है । केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड देश के १२१ शहरों में वायु प्रदूषण का आकलन करता है । इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक देवास, कोझिकोड व तिरूपति जैस अपवादों को छोड़कर बाकी सभी शहरों में प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में दिख रहा है । इस प्रदूषण की मुख्य वजह तथाकथित  वाहन क्रांति है । विश्व स्वास्थ्य संगठन का दावा है कि डीजल और घासलेट से पैदा होने वाले प्रदूषण से ही दिल्ली में एक तिहाई बच्च्े सांस की बीमारी की गिरफ्त में है ।
    इस खतरनाक हालात से वाकिफ होने के बावजूद दिल्ली व अन्य राज्य सरकारें ऐसी नीतियां अपना रही है, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित किए बिना औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता रहे । यही कारण है कि डीजल वाहनों का चलन लगातार बढ़ रहा   है । आवासीय बस्तियों, बाजारों, दुकानों और दफ्तरों व बैंको में लगे जनरेटर भी हवा को जहरीली बनाने में मदद कर रहे हैं ।
    जिस गुजरात को हम आधुनिक विकास का मॉडल मानकर चल रहे हैं, वहां भी प्रदूषण के हालात भयावह है । कुछ समय पहले टाइम पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के चार प्रमुख प्रदूषित शहरों में गुजरात का वापी शहर शामिल है । इस नगर में ४०० किलोमीटर लंबी औघोगिक पट्टी है । इन उघोगों में कामगार और वापी के रहवासी कथित औघोगिक विकास की बड़ी कीमत चुका रहे है । वापी के भूजल में पारे की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों से ९६ प्रतिशत ज्यादा है । यहां की वायु में धातुआें का संदूषण जारी है, तो फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है । कमोबेश ऐसे ही हालात अंकलेश्वर बंदरगाह के हैं ।
    यहां दुनिया के अनुपयोगी जहाजों को तोड़कर नष्ट किया जाता है । इन जहाजों में विषाक्त कचरा भी होता है, जो मुफ्त में भारत को निर्यात किया जाता है । इनमें ज्यादातर सोड़ा की राखा, एसिडयुक्त बैटरियां और तमाम किस्म के घातक रसायन होते हैं । प्रदूषित कारोबार पर शीर्ष न्यायालय के निर्देश भी अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं । यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में विश्व व्यापार संगठन के दबाव में प्रदूषित कचरा भी आयात हो रहा है । विश्व व्यापार संगठन के मंत्रियों की बैठक में भारत पर दबाव बनाने के लिए एक परिपत्र जारी किया गया है कि भारत विकसित देशों द्वारा पुननिर्मित वस्तुआें और उनके अपशिष्टों के निर्यात की कानूनी सुविधा दे ।
    विडंबना यह है कि जो देश भोपाल में हुई यूनियन कार्बाइड के औघोगिक कचरे को ३० साल बाद भी ठिकाने नहीं लगा पया, वह दुनिया के औघोगिक कचरे को आयात करने की छूट दे रहा है । यूनियन कार्बाइड परिसर में आज भी ३४६ टन कचरा पड़ा है, जो हवा-पानी में जहर घोल रहा है । इस कचरे को नष्ट करने का ठिकाना मध्यप्रदेश सरकार को नहीं मिल रहा है । दुनिया की इस सबसे बड़े औघोगिक त्रासदी में ५२९५ लोगों की मौतें हुई थी और लाखों लोग लाइलाज बीमारियों के शिकार हो गए थे । ये लोग आज भी इस त्रासदी का दंश झेल रहे हैं ।

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