मंगलवार, 19 जनवरी 2016

भारतीय पत्रकारिता स्थापना दिवस पर विशेष
पत्रकारिता : स्पष्ट विचारोंकी अभिव्यक्ति
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
    हम समाज में दो शब्दों का प्रयोग करते हैं । एक शब्द है समाज का विकास और दूसरा शब्द है समाज का निर्माण । दोनों का अर्थ अलग होता है ।
    हम देखें तो समाज विकास का जो क्षेत्र है, उसको हम सरकारी तंत्र से जोड़कर देख सकते हैं क्योंकि सरकारी तंत्र का जो कार्य होता है, जनता के लिए सुविधा तथा कौशल उपलब्ध कराने का, ताकि जनता अपने सुख, समृद्धि तथा शांति के मार्ग पर चल सके । परिवार तथा समाज का उत्थान एवं कल्याण दोनों कर सके । समाज विकास का संबंध है परिवर्तन और व्यवस्था के साथ । चिंतन के दो रूप होते हैं । एक सकारात्मक चिंतन, जो जीवन परिवार और समाज कल्याण के  लिए होता है । एक नकारात्मक चिंतन, जो जीवन में चिंता और परेशानी का कारण बनता है। दोनों की उत्पत्ति एक ही है । जब हम अपने प्रयासों से दूसरे का उत्थान और कल्याण करते हैं तो, वह चिंता का रूप नहीं चिंतन का रूप होता है और हमारे देश के जो मनीषी रहे हैं, हमारे देश के जो अच्छे लोग हैं, वे चिंतक हैं । हम आपको एक और तरीके से समझाने का प्रयास करते हैं । चिंंता और चिंतन मंे अंतर या भेद । एक मनुष्य यात्रा करता है, लेकिन उसके पास नक्शा नहीं है, उसको हर पल की चिंता होती है कि मैं किस दिशा में जाऊं । जिस दिशा में जा रहा हूं, क्या वह सही दिशा है या मेरा रास्ता भटक रहा है । तो जिस व्यक्ति के पास नक्शा नहीं होता है, उसके जीवन में चिंता है । लेकिन जो व्यक्ति समाज के नक्शे को देखता है ओर समझता है, वह चिंतन है । 
     यही अंतर सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच में भी है । हमारे भारत में चिंता करने वाले और चिंतन करने वाले भी लोग हैं । हम चिंतन करते हैं तो वह समाज के लिए प्रेरणा कार्य होता है । समाज को प्रेरित करते हैं । एक विचार देकर, एक लक्ष्य देकर, एक उद्देश्य प्रदान करके । समाज निर्माण की बात करंे तो जब एक मनुष्य अपने चिंतन द्वारा अपना पथ तय करता है और वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार समाज को आगे बढ़ाने का निर्माण करने का संकल्प लेता है तब उस चिंतन को समाज में प्रसारित करने के लिए जरूरत होती है पत्रकारिता की । और पत्रकारिता का अर्थ होता है स्पष्ट विचारों को व्यक्त करना, भ्रांतिपूर्ण विचारों को नहीं । भ्रांतिपूर्ण विचारों से बचते हुए आप जो कहना चाहते हैंं उसे कम शब्दों या वाक्यों में कहने की जरूरत है, क्योंकि स्थान उतना ही मिलता है । इसलिए आपको अपना स्पष्ट विचार रखना होता है । इसलिए अपनी ही लेखनी पर आपको स्वयं विचार करना होता है, आप जो लिख रहे हैं, वह सही है या नहीं इस पर भी ध्यान देना होता है । हम जो सोच रहे हैं या व्यक्त कर रहे हैं वह सही है या नहीं ।
    पत्रकारिता चिंतन की अभिव्यक्ति है और उस चिंतन का एक लक्ष्य रहता है। इसलिए पत्रकारिता में भी इसकी स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती है कि मनुष्य संकल्प को लेकर, विचार को लेकर आगे बढ़ रहा है । जब लक्ष्य सामने नहीं हो तो वहां विच्छेद आरंभ होता है । मनुष्य के मन का भटकाव आरंभ होता है और फिर पत्रकारिता में, संदेश के प्रसारण में उद्देश्य नहीं दिखाई देते ।
गांधी जी ने अपने चिंतन में भारत के बारे में एक कल्पना की । भारतीय समाज की कल्पना की । जिस प्रकार समाज के भेदों, विचारों को उन्होंने प्रस्तुत किया, उनके विचारों के सम्प्रेषण का माध्यम बना पत्रकारिता। उसी प्रकार आधुनिक परिवेश में ऊनके चिंतन का रूप केवल आध्यात्मिक नहीं था, जब वे बार-बार कहते रहे, उदाहरण देकर गए कि अगर एक परिवार में चार बच्च्ें हैं, एक सक्षम है, स्फूर्तहै, एक कमजोर और अपंग है, तो एक अभिभावक के नाते आप किसका अधिक ध्यान रखोगे ? जो सक्षम है, मजबूत है उनका ख्याल करोगे या एक अपंग का, जो कमजोर है उसका ख्याल करोगे ?
    हमारे भारतीय समाज में भी यही परिस्थिति रही है और हमने गलती की । हमने मजबूत, शिक्षित संतानों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया, जो अपंग था, कमजोर था, उसके लिए नहीं    किया । आज समाज में जो अराजकता है, वह इसी कारण है, क्योंकि हमने पूर्व में गलती की है, हमने अपनी कमजोर संतानों का ख्याल नहीं किया । यही तो आज हम सबको चाहिए, समाज को चाहिए और हम सब एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, एक दूसरे के उत्थान के लिए कार्य कर सकते हैं । समाज निर्माण के लिए एकत्र हो सकते हैं । पहले नीति स्पष्ट करो । आधुनिक परिप्रेक्ष्य और संदर्भ को मनुष्य के उत्थान के लिए क्या परिपाटी होनी है, क्या मार्ग होना है, क्या तरीका होना है, इसको तो स्पष्ट किया जाए । हम तो ऐसी परंपरा से जुड़े हैंजो शांति को प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता है। इसलिए इस विचारधारा से प्रभावित होकर यह जानने के प्रयास करते हैं कि अशांति के क्या-क्या कारण हैं और इन कारणों का निवारण किस प्रकार सकारात्मक रूप में हो सकता है । 
    इस चिंतन का प्रसारण यदि पत्रकारिता के माध्यम से हो तो हम एक अच्छे समाज की कल्पना कर सकते हैं । जैसा कि कहा गया सोशल मीडिया में पत्रकारिता प्रवेश कर रहीं है । ठीक है सोशल मीडिया अपना काम करे । सोशल मीडिया में छोटी सी बात को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप मिल सकता है । मनुष्य को भटकने से रोकें और यह शक्ति पत्रकारों के पास है । हम लोग सही विचार व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन उस विचार को प्रसारित करना, जन-जन तक पहुंचाना और मानने के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि काम पत्रकार करते हैंऔर कर सकते हैं । समाज में सकारात्मक व्यवस्था लाने की दिशा में हमारे प्रयास निरंतर जारी रहना चाहिए ।

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