मंगलवार, 19 जनवरी 2016

जीवन शैली
वैज्ञानिक शब्दों का उपयोग और दुरूपयोग
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

    शेक्सपियर ने यह कर हमें चेतावनी दी थी कि न साहूकार बनो, न कर्जदार और यदि आप ऐसा करते हैं तो आप मुसीबत मोल लेंगे ।
    यह चेतावनी आज के समय में और भी प्रासंगिक बन गई है, जब आधुनिक दिनों के विश्लेषक, रिपोर्टर्स और यहां तक कि वक्ता भी विज्ञान और तकनीकी के शब्द उधार लेते हैं, यह सोचकर कि इस तरह उधार लेकर वैज्ञानिक शब्दों का तड़का लगाने से विद्वत्ता और अधिकार हासिल हो जाएंगे । पिछले वर्ष में, एक बड़े भारतीय राजनीतिज्ञ ने एक बड़े प्रतिद्वंद्वी समूह के खिलाफ डीएनए शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि हमारे प्रतिद्वंद्वी कभी सुधर नहीं सकते । यह उनके डीएनए में नहीं  है । 
     दुख कि बात है कि उन्हें यह नहीं समझ आया कि विज्ञान में बताया गया है कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले किसी भी मनुष्य का डीएनए किसी अन्य मनुष्य से ९९.९ प्रतिशत तक समान होता है । कैसे इस डीएनए की तहें बनती है या पर्यावरण से आए हुए अणुआें, जीवन जीने के तरीकों, खानपान और बीमारियों (जिन्हें एपिजेनेटिक कारक कहते हैं)्र से यह निर्धारित होता है कि कैसे कोशिकाएं उस डीएनए को पढ़ती हैं । यही हमें दूसरों से अलग बनाता है । तो, श्रीमान जी, पहले यह सुनिश्चित कर लीजिए कि उनका डीएनए भी उतनी ही कुशलता से पढा जाए, उनके रहने की स्थिति, पोषण वगैरह में सुधार कीजिए, तो वे भी आप की ही तरह स्वस्थ और उन्नत होंगे ।
    इसी तरह एक और शब्द है ऑप्टिक्स (प्रकाशिकी) । अब, ऑप्टिक्स भौतिक शास्त्र की गहन शाखा है जिसका संबंध प्रकाश, उसके गुणधर्मो, प्रभावों और उपयोगों से है । न्यूटन और आइंस्टाइन जैसे विद्वानों ने इस विषय पर काम किया था और हमारी समझ को बढ़ाने में काफी योगदान दिया था । फिलहाल, मीडिया में इसका इस्तेमाल बेतुके ढंग से और तड़क-भड़क के साथ किया जाता है, सामान्यत: इसे फोटो के एक अवसर के रूप में देखा जाता है । कैसे इस तरह का ढीला-ढाला उपयोग शुरू हुआ, और कैसे शुरू हुआ ? इस तरह के सवाल का जवाब पाने के लिए इंटरनेट पर वर्ड डिटेक्टिव (शब्द जासूस) का रूख कीजिए ।
    वर्ड डिटेक्टिव का कहना है कि सबसे पहले इसका इस्तेमाल १९७८ में अमेरिकन राष्ट्रपति जिमी  कॉर्टर के जन संपर्क सहायक द्वारा किया गया था - उनके मुताबिक तस्वीर केवल प्रभाव पैदा करने के लिए  या सिर्फ पाठकों का ध्यान खींचने के लिए होती है ।
    एक और इसी तरह का शब्द है वायरल, जिसका मतलब किसी भी संदेश या जानकारी को सोशल मीडिया के जरिए तेजी से फैलाना, प्रिंट मीडिया में आने वाले मैसेजों से भी कई गुना तेजी से । विज्ञान में एक वायरल अपने होस्ट (मेजबान) को संक्रमित करता है ताकि वह उसकी मशीनरी का उपयोग करके अपने वृद्धि कर सके । वायरस की संख्या वृद्धि सेंकडो में होती है जबकि पौधों (जिनसे प्रिंट मीडिया के लिए कागज बनता है) धीमे होते हैं और उन्हें प्रजनन करने में महीनों या सालों लगते हैं । सोशल मीडिया इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल करता   है जहां गति लगभग प्रकाश की होती है । इस लिहाज से गति के लिए वायरस शब्द का चयन बहुत गलत भी नहीं है । मगर अक्सर हम वायरस को बीमारी  और मृत्यु के साथ जोड़ते है । शुक्र है कि टि्वटर या ईमेल के जरिए फैलने वाली गपशप और राय-मशवरे हमेशा खतरा-ए-जान नहीं होते ।
    हाल में एक और शब्द प्रचलित हुआ है - मेट्रिक - जो मैनेजमेंट और वैज्ञानिकों दोनों के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है । दुख की बात है कि यह विशेषण एक संंज्ञा के रूप मेंइस्तेमाल किया जा रहा   है । मूलत: यह फ्रेंच शब्द ाशींीळिंर्शी से आया, जिसका संबंध मापन प्रणाली से होता है, इसके द्वारा किसी वस्तु की लंबाई नापी जा सकती है (जिससे लंबाई, चौड़ाई के लिए सेंटीमीटर आया और समय के मापन के लिए सेंकड और द्रव्यमान के लिए ग्राम आया और सीजीएस प्रणाली बनी  ।) अब मेट्रिक शब्द का इस्तेमाल मूल्यांकन ग्रेड में नंबर मापने के लिए किया जाता है, इसके पीछे सोच शायद गहनता प्रदान करने की होगी । बहुत दुख की बात है कि वैज्ञानिक प्रशासकों द्वारा भी इस मेट्रिक का इस्तेमाल वैज्ञानिकों के प्रदर्शन का मूल्यांकन साथियों के समूह द्वारा न करवाके अंको में करने की शुरूआत हुई है ।
    जिस तरह विज्ञान शब्द उधार देता है, उसी तरह यह दूसरे स्त्रोतों और विषयों से उधार लेता भी है । ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई थी, इस संबंध में वर्तमान सिद्धांत (कि ब्रह्मांड की शुरूआत एक विशाल विस्फोट से हुई थी, जिसके  परिणाम आज तक नजर आते हैं) को बिग बैग सिद्धांत कहते हैं ।
    लेकिन इनमें से मेरा सबसे पंसदीदा शब्द है शेपरॉन जिसे फ्रांसीसी समाज से उधार लिया गया है । यहां युवा लड़कियों के साथ एक बुजुर्ग महिला होती थी - शेपरॉन - जो यह सुनिश्चित करती थी कि ये लड़कियां सामाजिक अवसरों पर शिष्ट आचरण रखेगी । जैव रसायन शास्त्र में सबसे पहले १९७८ में केम्ब्रिज के रोनाल्ड लास्की ने आणविक शेपरॉन का उपयोग एक प्रोटीन के लिए किया था - एक प्रोटीन जो अंडों में नाभिकीय पदार्थ को सही ढंग से व्यवस्थित करने में भूमिका निभाता है । यदि प्रोटीन सही आकार में फोल्ड नहीं होता है तो रेशे बन जाते हैं जो सामान्य कोशिका की क्रियाविधि में दखल देते हैं ।  और इसके कारण केई विकास पैदा होते हैं और तंत्रिका संबंधी बीमारियां होती हैं । इस संदर्भ में प्रोटीन की सही फोल्डिंग का मार्गदर्शन करने में प्रोटीन की शेपरॉन भूमिका का महत्व समझा जा सकता है ।

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