बुधवार, 16 मार्च 2016

रहन-सहन
ग्रीन बिल्डिंग से पर्यावरण बचाने की कोशिश
मनीष वैद्य
तथाकथित विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरणीय हितों की लम्बे समय से अनदेखी हुई है ।  दुर्भाग्य से हमारे यहां निर्माण को ही विकास का पर्याय मान लिया गया और यही वजह है कि पर्यावरण लगातार हाशिए पर रहा । 
विकास इस अवधारणा और प्राथमिकताआें ने बीते कुछ सालों में ही हमारे सामने जो पर्यावरणीय संकट खड़े किए हैं, वे हमारे जीवन और सेहत के लिए ही भारी पड़ने लगे हैं । हम साफ हवा और पानी तक को मोहताज हो गए हैं । अब पर्यावरण बचाने और प्रदूषण के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए हरित भवन (ग्रीन बिल्डिंग) पर जोर दिया जा रहा है । इसमें बिजली-पानी का कम से कम खर्च तथा वातानुकूलित होने से भी इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है । 
इको फ्रेंडली ग्रीन बिल्डिंग यानी हरित भवन खास तौर पर पर्यावरण को ही ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं । निर्माण प्रक्रिया से प्रकृति और पर्यावरण के नुकसान को कम करने की दिशा में सबसे कारगर साबित हो रही है ग्रीन बिल्डिंग अवधारणा । और आने वाले भविष्य के लिए यह सबसे जरूरी कदम भी है । ये हमारे पर्यावरण या पारिस्थितिकी तंत्र को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं । ये ऊर्जा के बेतहाशा क्षय को भी रोकते हैं, कचरा निस्तारण और प्राकृतिक आपदाआें से बचने के भी उपाय होंगे ऐसे मकानों में करीब १० डिग्री तक तापमान को भी कम कर सकेंगे । 
इनमें ऊर्जा और पानी बचाने पर जोर होता है । इनके आसपास बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगाए जाते हैं ताकि तापमान को नियंत्रित किया जा सके । इनमें पेड़ पौधों के लिए भी पर्याप्त् जगह रखी जाती है, साथ ही बालकनी, खिड़की, गैलरी, छत और ओपन टेरेस में भी गमलों के जरिए छोटे-छोटे पौधे लगाने का प्रावधान किया गया है । 
हमारे देश में हरियाली को करीब ३० से ३५ फीसदी तक बढ़ाने की जरूरत है, जबकि सिंगापुर जैसे छोटी जगह पर हरियाली ४९ फीसदी तक है । इनमें प्रकृति और पर्यावरण के नजरिए से यह खास तौर पर ध्यान रखा जाता है कि यहां रहने वाले लोगों को उजाले और साफ हवा के लिए बिजली और अन्य संसाधनों का इस्तेमाल कम से कम करना   पड़े । इनका तापमान भी ठंडा बना रहता है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन सब फायदों के बाद भी इनकी लागत सामान्य मकानो की कीमत के मुकाबले महज तीन फीसदी ही ज्यादा होगी यानी अंतर बहुत कम   है । 
ग्रीन अवधारणा के मकानों में पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए अधिक से अधिक प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता  है । जैसे सूरज का उजाला मकान के अधिकांश हिस्से को रोशन कर सके ताकि बिजली की खपत कम हो । रात में जहां जरूरी हो वहां भी कितने वॉट का बल्ब या ट्यूबलाइट की जरूरत है तथा जहां जरूरी न हो वहां खपत कम हो, इसका भी ध्यान रखा जाता है । इसी तरह खिड़कियां आदि ऐसी बनाई जाती है कि लगातार हवा मिलती   रहे । ऐसे मकानों में प्राकृतिक हवा के प्रवेश और निकासी के लिए जतन किए जाते हैं, ताकि पंखे, कूलर और एसी चलाए बिना भी आसानी से प्राकृतिक हवा पर जगह मिलती रहे । गर्मियों में बिना किसी संसाधन के मकान को ठंडा रखने की तकनीक भी इनमें होती है । 
फ्लाई ऐश की टाइल्स अपेक्षाकृत ठंडी होती हैं और गर्मियों में जब गर्म हवा और धूप की वजह से मकान की बाहरी दीवारें काफी गर्म हो जाती है, तो ऐसे में फ्लाई ऐश अंदर की सतह को ठंडा बनाए रखती है । इसके अलावा भूजल स्तर बढ़ाने के लिए इनमें प्राकृतिक रीचार्ज तथा सीवरेज की अत्याधुनिक तकनीकों का भी उपयोग किया जाता है । इनके निर्माण में भूकंपरोधी तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है । इन तमाम वजहों से यह खासा लोकप्रिय हो रहा है । 
इनमें पानी की बचत पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया है । इनमें बरसाती पानी को जमीन में सहेजने और वाटर रिचार्जिंग के साथ पानी के पुन: उपयोग पर भी जोर दिया गया है । सीवरेज ट्रीटमेंट कर दैनिक उपयोग के लिए इस्तेमाल पानी को साफ बनाकर इसे रिसाय-किल किया जा सकेगा । इस तरह के प्रोजेक्ट में बिजली की बचत के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिए सोलर प्लेट भी लगाई जा रही है । 
ग्रीन बिल्डिंग अवधारण भारत जैसे देशों के लिए नई हो सकती है लेकिन विदेशों में इसका चलन करीब २० साल पहले ही शुरू हो चुका है । हमारे देश में भी अब इसकी तरफ लोगों खासकर बिल्डर्स का ध्यान गया है । देश के अलग-अलग शहरों में करीब तीन हजार से ज्यादा ग्रीन बिल्डिंग प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है । बीते पांच सालों में ही बैंगलुरू, हैदराबाद, पंचकूलातथा चण्डीगढ़ के साथ इन्दौर और भोपाल जैसे शहरों में भी इसे लेकर लोगों की उत्सुकता बढ़ी  है । इसके लिए बाकायदा इण्डियन ग्रीन बिल्डिंग कौंसिल अलग-अलग शहरों में जाकर बिल्डर्स और लोगों को इसके फायदे गिना रही है । 
पंचकूला के आईटी पार्क में बीत साल ऐसी ही एक ग्रीन बिल्डिंग बनकर तैयार हो चुकी है । इसमें डबल ग्लास पैनल, फ्लाई ऐश स्लेब तथा सोलर पेनल के साथ सभी बारीकियों का ध्यान रखा गया है । यहां काम करने वालों को इसमें काम करना बेहद रास आ रहा है । यह ऊर्जा संरक्षण का भी नायाब नमूना है । यहां कई प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है ।
इन दिनों बड़े शहरों के बिल्डर्स इन ग्रीन बिल्डिंग के फायदे अपने ग्राहकों को बताकर उन्हें इसके लिए प्रेरित भी कर रहे हैं । यह पर्यावरण, बिल्डर्स और ग्राहकों तीनों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है । इसका चलन बड़े महानगरों और अन्य बड़े शहरों में तेजी से बढ़ रहा है । इनमें से कई प्रोजेक्ट तो बनकर तैयार भी हो चुके है । सरकार भी इसे बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है । कुछ बड़ी सरकारी बिल्डिंग को भी ग्रीन बिल्डिंग ही बनाया जा रहा है । २०२५ तक इसका दायरा और बढ़ाने के लिए विभिन्न शहरों में इसके लिए कांफ्रेंस की जा रही हैं, तो आर्किटेक्चर के विद्यार्थियों को भी इसके फायदे बताए जा रहे हैं । 
हालांकि कुछ बिल्डर्स अपने प्रोजेक्ट में सिर्फ ग्रीन शब्द जोड़कर ही अपने ग्राहकों को धोखा दे रहे   हैं । ऐसे में ग्राहकों को इसके मायने गंभीरता से समझने की जरूरत है और जागरूक होने की भी । इसके लिए इण्डियन ग्रीन बिल्डिंग कौंसिल ने बकायदा रजिस्ट्रेशन और रेटिंग जैसी व्यवस्था भी लागू की है । हमने अब तक पर्यावरण को जिस निर्ममता से बर्बाद किया है, उसे सुधारने की दिशा में ग्रीन बिल्डिंग एक जरूरी कदम साबित हो सकता है । 
हमारे यहां एक तरफ जहां हरियाली और बरसात तेजी से घट रहे हैं, वहीं हवा भी लगातार जहरीली होती जा रही है । बीते दिनों कुछ शहरों में वायु और जल प्रदूषण के जो भयावह आंकड़े हमारे सामने आए हैं, उनसे साफ है कि अब सिर्फ बातों से हालात सुधरने वाले नहीं हैं । अब नए सिरे से इस पर एक्शन की जरूरत   है । हमारे यहां कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन बड़ी मात्रा में हो रहा    है । हमने शहरों में सीमेंट-कांक्रीट के बड़े-बड़े जंगल तो खड़े कर लिए हम हम अपने जीवन के लिए सबसे जरूरी पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचाते रहे । हम पेड़ों को लगातार काटते रहे पर कभी एक पौधे को पेड़ बनाने के बारे में नहीं सोचा । 
हमने अपनी नदियां गंदी कर दी पर कभी इन्हें साफ-सुथरा बनाने का नहीं सोचा । हमने बरसात का पानी व्यर्थ ही बह जाने दिया पर कभी उसे सहेजने की दिशा में कोई पहल नहीं की । हमें नलों से पानी क्या मिलने लगा हमने अपने प्राकृतिक कुएं-कुण्डियां ही बिसरा दी, उन्हेंकूड़ादान में तबदील कर दिया । हतना ही नहीं हमने अपने सांस लेने के लिए सबसे जरूरी हवा को भी कभी साफ बनाए रखने पर सोचा नहीं और न कोई कदम उठाया । यही वजह है कि शहर अब लोगों के रहने लायक नहीं बचे । उनमें न पर्याप्त् पानी है और न ही साफ-सथुरी ताजी हवा । गर्मियों में तो शहरों के कई मकान भट्टी की तरह तपते हैं । ऐसी स्थिति में जरूरी है कि हम इस नई पहल का स्वागत करें । 

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