बुधवार, 16 मार्च 2016

प्रसंगवश
पर्यावरण शिक्षा को लेकर लापरवाह है राज्य 
देशभर के स्कूल कॉलेजोंऔर विश्वविघालयों में पर्यावरण को अनिवार्य विषय बनाए जाने और इसके लिए यूजीसी नियमों के मुताबिक प्रशिक्षित शिक्षक नियुक्त किए जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार व सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है । प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकारों को ये नोटिस एमसी मेहता की अर्जी पर जारी किया । एमसी मेहता ने पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में वर्ष १९९१ में जनहित याचिका दाखिल की थी । जिस पर कोर्ट समय-समय पर आदेश देता रहा है । श्री मेहता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में २२ नवम्बर, १९९१ को पर्यावरण संरक्षण के बारे में विस्तृत आदेश दिए थे । उसमें कोर्ट ने सभी विश्वविघालयों और कॉलेजों तथा स्कूल स्तर पर पर्यावरण को अनिवार्य विषय की तरह पढ़ाने के निर्देश  दिए थे । 
इसके बाद १८ दिसम्बर २००३, १३ जुलाई २००४, ६ अगस्त २००४ को भी कोर्ट ने आदेश दिये थे । लेकिन सरकारों ने इस आदेश का ठीक से पालन नहीं किया ज्यादातर जगह पर्यावरण की पढ़ाई के नाम खानापूर्ति हो रही है । कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में इसके लिए यूजीसी मानकों के मुताबिक प्रशिक्षित शिक्षक या प्रोफेसर नहीं हैं । दूसरे विषयों जैसे संस्कृत,हिन्दी, अंग्रेजी, इलेक्ट्रॉनिक्स, राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, गणित, शारीरिक शिक्षा, गृह विज्ञान या कम्प्यूटर साइंस आदि के टीचर ही पर्यावरण विषय पढ़ा रहे हैं । यूजीसी गाइडलाइन के मुताबिक पर्यावरण पढ़ाने वाले शिक्षक पर्यावरण विज्ञान में एमएससी होने चाहिए । 
उन्होनें पर्यावरण विज्ञान में नेशनल इलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) परीक्षा पास की हो या फिर वे इस विषय में पीएचडी हो । श्री मेहता का कहना है कि प्रशिक्षित शिक्षकों के बगैर बच्चें को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नहीं बनाया जा सकता । अभी तक यूजीसी ११ विश्वविघालयों पर कार्रवाई कर चुका है । मेहता ने आरटीआई के जरिए एकत्रित सूचना के हवाले से विभिन्न राज्यों और विश्वविद्यालयों की स्थिति का भी हवाला दिया है । चार साल पहले आरटीआई के जवाब में दी गई सूचना के मुताबिक यूजीसी पर्यावरण विषय की अनिवार्य पढ़ाई के आदेश का पालन न करने वाले ११ विश्वविद्यालयोंपर कार्रवाई कर चुका है । 

कोई टिप्पणी नहीं: