बुधवार, 16 मार्च 2016

ज्ञान-विज्ञान
क्या पक्षी गाने का रियाज करते हैं ?
युरोप के कई पक्षी प्रवास करके जाड़ा अफ्रीका में बिताते हैं जब यूरोप में बहुत ठंड होती है । आम तौर पर माना जाता है कि युरोप में जाड़ों में भोजन की कमी के चलते ये पक्षी  दक्षिण की ओर प्रवास कर जाते हैं जहां पर्याप्त् भोजन मिल जाता है । मगर कैम्ब्रिज विश्वविघालय की मार्जोरी सोरेंशन का मत है कि मामला सिर्फ भोजन तक सीमित नहीं है । 
       यह देखा गया है कि ये प्रवासी पक्षी अफ्रीका पहुंचकर खूब तो हैं । यह थोड़ा उलझन में डालने वाला व्यवहार है । आम तौर पर पक्षी गीत गाते हैं ताकि प्रणय साथी को आकर्षित कर सके । अफ्रीका में तो ये पक्षी प्रजनन करते नहीं । तो फिर वहां बैठकर गाने का क्या फायदा ? गाना गाने में तो ऊर्जा और समय खर्च होगा, जिनका उपयोग भोजन की तलाश में किया जा सकता था । फिर ये गाते क्यों    हैं ?
इस संबंध में तीन परिकल्पानएं रही हैं । एक तो हो सकता है कि अफ्रीका के जंगलों में वे अपने इलाके की रक्षा के लिए गाते हैं । दूसरा विचार यह था कि हो सकता है कि वे सिर्फ इसलिए गाते हो कि उनका टेस्टोस्टेरोन स्तर बढ़ जाता है । हालांकि गाने का कोई फायदा न हो । तीसरा कारण यह भी सोचा गया कि शायद वे युरोप लौटकर साथी को आकर्षित करने के लिए गाना गाने का रियाज अफ्रीका में करते हो । कई पक्षियों के गीत बहुत पेचीदा होते है । इसलिए रियाज वाली बात में भी कुछ दम तो है । 
सोरेंसन की टीम ने अफ्रीका जाकर जांच करने की ठान ली । उन्होनें ग्रेट रीड वार्बलर नामक पक्षी पर ध्यान केन्द्रित किया । इनका गीत काफी पेचीदा होता है । टीम ने पाया कि अफ्रीका में ग्रेट रीड वार्बलर के इलाके एक-दूसरे के इलाकों में फैले होते हैं और कोई दूसरा पक्षी उनके इलाके में आए तो वे ज्यादा आक्रामक व्यवहार नहींदर्शाते । यानी इलाके की रक्षा करने के लिए गीत गाने की बात सही नहीं हो सकती । 
यह भी पाया गया कि जाड़ो में अफ्रीका जाने वाले पक्षियों के गाने  और उनके टेस्टोस्टेरोन स्तर का कोई संबंध नहीं है । तो एक ही परिकल्पना बच गई कि शायद ये पक्षी अफ्रीका में गाने का रियाज करते हैं । 
जब पक्षियों की ५७ प्रजातियों की तुलना की गई तो पता चला कि अफ्रीका में सबसे ज्यादा वही पक्षी गाते हैं, जिनके गीत जटिल होते हैं । यह भी देखा गया कि जिन पक्षियों के पंख आकर्षक होते हैं वे अफ्रीका प्रवास के दौरान ज्यादा नहींगाते । मगर जिनके पंख फीके रंग के होते हैं उनमे गाने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है । इस सबके आधार पर सोरेसन के दल ने दी अमेरिकन नेचुरेलिस्ट शोध पत्रिका मेंमत व्यक्त किया है कि ये पक्षी अफ्रीका पड़ाव के दौरान न सिर्फ गाने का रियाज करते हैं बल्कि अपने गीतों में नए सुरों को जोड़ते हैं जिन्हें वे अगले प्रजनन काल में गांएगे । 
इस मामले में अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी इसके पक्ष में कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है मगर यह एक विचारणीय प्रस्ताव है । 

सौर ऊर्जा के लिए तटीय क्षेत्रों का इस्तेमाल
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में २०२२ तक १७५ गीगावाट बिजली के उत्पादन के निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के अगले पांच वर्ष में दूरदराज के क्षेत्रों के साथ ही ७६०० किलोमीटर लम्बे तटीय क्षेत्र का भी इस्तेमाल किया जाएगा । 
सरकार ने संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा है कि इस लक्ष्य को हासिल करने की चुनौतियां जबरदस्त है लेकिन उनसे चरणबद्ध तरीके से निपटा जाएगा और इसके लिए सौर नगर बसाने, सोलर पार्क विकसित करने तथा रूफटॉप जैसी कई योजनाआें की पहल शुरू की जा चुकी है । इस पहल की बदौलत सौर ऊर्जा का उत्पादन गीगावाट मे शुरू हो चुका है जो एक उपलब्धि है । नवीन एवं नवीकरणी ऊर्जा क्षेत्र में २०२२ तक सौर ऊर्जा उत्पादन का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उसमें १०० गीगावाट सौर ऊर्जा से, ६० गीगावाट पवन ऊर्जा से तथा शेष लघु पनबिजली और बॉयमास से पैदा की जानी है । इनमें अब तक सौर ऊर्जा में ही ज्यादा ध्यान दिया गया है । इस क्रम में राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत रूफ टॉप योजना के लिए अगले पांच वर्ष में ५००० करोड़ रूपये खर्च करने का लक्ष्य तय किया गया है । 
     ग्रिड से संबंद्ध  प्रणाली के लिए पहले ५०० करोड़ रूपये के बजट का प्रावधान था और इसे बढ़ाकर अब पांच हजार करोड़ रूपए किया गया   है । इसी तर्ज पर सोलर पार्क शुरू किए गए हैं । इसके लिए २०१४ में२५ सोलर पार्क शुरू करने की घोषणा की गई है और अगले पांच साल में इससे २० हजार मेगावट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य है । सौर मिशन के तहत ६० सौर नगरोंको विकसित किया जाएगा और इनमें से ५६ नगरों की परियोजनाआें के लिए अनुमोदन प्रदान किए जा चुके हैं । 
सरकार ने सौर ऊर्जा उत्पादन का काम विभिन्न संस्थानों को सौंपा है । इस क्रम में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के तहत एनटीपीसी की १५००० मेगावाट की ग्रिड से संबंद्ध सौर पीवी पावर परियोजना को भी मंजूरी दी गई है । देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कामगारों की कमी नहीं रहे इस दिशा में भी विशेष ध्यान दिया गया है और अगले पांच साल में ५० हजार लोगों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया  है । देश के दूरदराज के क्षेत्रों में सौर पार्क तथा सौर नगर खोलने के साथ ही सरकार ने समुद्र तट से लगी । ७६०० लम्बी किलो मीटर जमीन का इस्तेमाल भी इस काम के लिए करने का लक्ष्य बनाया है । तटीय क्षेत्रोंमें चलने वाली हवा का इस्तेमाल पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए हो इस दिशा में सरकार विस्तृत योजना तैयार कर रही है । 

मरीज को एंटीबायोटिक देने का फैसला कैसे करें ?
एंटीबायोटिक औषधियों का काम बैक्टीरिया संक्रमण का सामना करना होता है मगर यह देखा गया है कि ये दवाइयां ऐसे मरीजों को भी दे दी जाती है जिन्हें वायरस संक्रमण की वजह से तकलीफ हो रही है । गौरतलब है कि एंटीबायोटिक दवाइयां  वायरस के खिलाफ कदापि कारगर नहीं होती । मगर कई मर्तबा इन दोनों तरह के संक्रमणों के लक्षण एक जैसे होने की वजह से डॉक्टर के लिए फैसला करना मुश्किल होता है कि कब एंटीबायोटिक दवा दें और कब न दें । अब एक आसान-सा परीक्षण विकसित किया गया है जो इस फैसलेमें डॉक्टर की मदद कर सकता है । 
मसलन, जब कोई व्यक्ति सांस संबंधी तकलीफ या बुखार के साथ अस्पताल पहुंचता है तो यह कहना मुश्किल होता है कि ये लक्षण बैक्टीरिया की वजह से हो रहे हैं, वायरस की वजह से हो रहे हैं या शरीर की किसी अंदरूनी दिक्कत की वजह से । तथ्य यह है कि अधिकांश सांस संबंधी तकलीफें वायरस संक्रमण की वजह से होती  हैं । अनुमान है कि तीन-चौथाई मामलों में मरीज को एंटीबायोटिक गलत स्थिति में दे दी जाती है । परिणाम यह होता है कि बैक्टीरिया में प्रतिरोध क्षमता विकसित होती है और धीरे-धीरे वह बेशकीमती दवाई नाकाम होने लगती है । 
डयूक विश्वविघालय के इफ्राइम त्सालिक और उनके साथियों ने शरीर में जीन्स की अभिव्यक्ति के आधार पर यह पता करने की कोशिश की कि संक्रमण बैक्टीरिया का है या वायरस का । उन्होनें इसके लिए आपात वार्ड के २७३ मरीजों को चुना । इनमें से कुछ तो बैक्टीरिया संक्रमण था, कुछ को वायरस संक्रमण । इसके अलावा ४४ स्वस्थ व्यक्तियों की जांच भी की गई । 
     उन्होनें पाया कि कुछ जीन्स ऐसे हैं जो वायरस संक्रमण के प्रति एक खास तरह की प्रतिक्रिया देते हैं । अन्य कुछ जीन्स ऐसे हैं जो बैक्टीरिया संक्रमण के दौरान सक्रिय होते हैं । और उनका यह परीक्षण ८७ प्रतिशत मामलों में सही साबित हुआ । इस अध्ययन का विवरण साइन्स ट्रांसलेशन मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है । फिलहाल इस तरह के जीन परीक्षण के नतीजे मिलने में १० घंटे का समय लगता है । 

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