गुरुवार, 18 अगस्त 2016

सामयिक
शहर बाढ़ग्रस्त क्यों हो रहे हैं ?
भारत डोगरा

हाल के वर्षो में देश के अनेक प्रमुख शहरों, विशेषकर राज्यों के राजधानी  शहरों के बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होने के समाचार मिलते रह हैं । 
इसके उदाहरण है - चैत्रई, मुम्बई व श्रीनगर । प्राय: बाढ़ प्रबंधन में इस तरह के बड़े शहरों व उनकी घनी व समृद्ध आबादियों की रक्षा को प्राथमिकता दी जाती है । तटबंधों का निर्माण इस तरह किया जाता है जिससे महानगरों व विशेषकर राजधानियों के बाढ़ग्रस्त होने की संभावना न्यूनतम की जा सके । 
यदि इसके बावजूद अनेक बड़े शहर बाढ़ से इतनी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं तो इसकी एक मुख्य वजह यह है कि इन शहरों में निर्माण कार्य बहुत अनियंत्रित ढंग से किया गया है । आवासीय व व्यावसायिक स्थलों की कीमतें तेजी से धन कमाने का सबसे प्रचलित तरीका हो गया है व बिल्डरों, अधिकारियों व राजनेताआें की मिलीभगत से ऐसे तमाम स्थानों पर बड़े-बड़े निर्माण कार्य हो गए हैं जहां निर्माण होने से जल की निकासी बुरी तरह बाधित होती है । 
इतना ही नहीं ये बिल्डर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुंच गए है और वहां के जल निकासी के स्थानों व जल स्त्रोतों पर भी कब्जा करने लगे हैं जिससे आसपास के क्षेत्र में भी मुख्य शहर की जल-निकासी में रूकावट आने लगी है । इस तहर जहां एक ओर बहुत से नए क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हुए वहीं दूसरी ओर अनेक किसानों, पशुपालकों व मछुआरों की पहले से संकटग्रस्त आजीविका भी उजडने लगी । यदि ये रोजगार बने रहते तो शहरों को ताजे व स्वस्थ खाद्य पदार्थो की आपूर्ति में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती थी । 
अब आगे सवाल यह है कि क्या इन गलतियों से भविष्य के लिए कुछ सबक मिल सकते हैं? यह सवाल विशेषकर कोलकाता के संदर्भ में इस समय बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि अब संभावना बन रही है कि पहले वाली गलतियों को यहां और भी बड़े पैमाने पर दोहराया जा सकता है । 
पूर्वी कोलकाता वैटलैंड (नमभूमि) क्षेत्र लगभग १२५०० हेक्टर क्षेत्र में फैला है जिसमें से लगभग ४००० हेक्टर क्षेत्र में भेरी कहलाए जाने वाले मछली फार्म है । शहर का सीवेज इस क्षेत्र के जल मार्गो व तालाबों में बहता है व कुछ हद तक प्राकृतिक प्रक्रियाआें से साफ भी होता है । एक बड़ा प्रदूषक बनने के स्थान पर इसकी कृषि भूमि व मछली पालन में उर्वरक की भूमिका बनी हुई है । 
अनुमान है कि इस क्षेत्र से शहर को प्रति वर्ष ५५,००० टन सब्जियां व १०५०० टन मछली प्राप्त् हो रही है । इन कार्यो में लगभग २०,००० लोगों को प्रत्यक्ष रूप से व लगभग ५०,००० लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है । वर्षो के समय मुख्य शहर की जल-निकासी भी इन स्त्रोतों व जल मार्गो की ओर ही होती है । 
अब इस नमभूमि पर निर्माण कार्य करने व इसके लिए कानूनी स्वीकृति प्राप्त् करने के लिए कानूनी स्वीकृति प्राप्त् करने के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है और इसके लिए बहुत शक्तिशाली व्यक्तियों का समर्थन भी बढ़ता जा रहा है । पर इस नमभूमि के एक बड़े क्षेत्र पर निर्माण कार्य हुआ तो शहर के वर्षा के जल की निकासी भी बुरी तरह अवरूद्ध हो सकती है व इससे बाढ़ की समस्या बहुत विकट हो जाएगी । सीवेज व कूड़े को ठिकाने लगाने की समस्या बहुत विकट हो जाएगी व हजारों लोगों की ऐसी रोजी रोटी खतरे में पड़ जाएगी जिससे महानगर के बांशिदो को ताजे व सस्ते खाद्य पदार्थ मिलते हैं । 
इससे पहले कि बिल्डर लॉबी व जमीन की खरीद-फरोख्त में लगे व्यावसासियों का दबाव शहर के नजदीकी क्षेत्र की प्राकृतिक व्यवस्था को ध्वस्त कर बाढ़ व अन्य समस्याआें को बढ़ाने में सफल हो जाए, यह जरूरी है कि महानगर व आसपास के क्षेत्र के दीर्घकालीन हितों की रक्षा के लिए लोग एकजुट होंऔर इस विषय पर सही निर्णय के लिए, जनमत तैयार करें तथा सरकार पर भी दबाव बनाएं । 
जलवायु बदलाव के इस दौर में वैसे भी समुद्र तटवर्ती शहरों में तो बाढ़ का खतरा बहुत तेजी से बढ़ सकता है । अत: ऐसे कोई भी निर्णय नहीं लेने चाहिए जिससे प्रकृति में पहले से मौजूद बाढ़ से बचाव वाली रक्षा प्रणाली क्षतिग्रस्त होने की आंशक हो । 
विभिन्न शहरों की बाढ़ से रक्षा केवल तटबंध बनाकर नहीं हो सकती है । इसके लिए जरूरी होगा कि शहरी विकास और निर्माण का समग्र रूप से नजर रखी जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह जल निकासी में बाधक न बने । 

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