गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

प्रसंगवश
पॉलीथिन प्रतिबंध की दिशा क्या हो ?
   पंकज चतुर्वेदी
मध्यप्रदेश सरकार ने आगामी एक मई से पूरे प्रदेश में पॉलीथिन के उपयोग पर पाबंदी की घोषणा की है । सरकार के स्तर पर कागजोंपर जितनी आसानी से ऐसे निर्णय हो जाते हैं व उनकी घोषणा हो जाती है, उतनी आसानी से इन निर्णयों को यथार्थ के धरातल पर उतारना कठिन होता है । शायद यही कारण है कि पूर्व में की गई प्रतिबंध की घोषणाआें के बाद आज भी पूरे प्रदेश में पॉलीथिन का उपयोग जारी है । 
प्रदेश में प्रतिदिन लगभग ७५० टन पॉलीथिन का उपयोग विभिन्न रूपों में होता है । किन्तु चिंताजनक यह है कि इसमें से आधी से ज्यादा पॉलीथिन अमानक स्तर की होती है, जिन्हें विज्ञान की भाषा में ४० माइक्रॉन से कम पतली पॉलीथिन कहा जाता है । ४० माइक्रॉन से कम पतली पॉलीथिन पर्यावरण, मानव और पशु सबके लिए खतरनाक है । ये अमानक पॉलीथिन जलने पर डायऑक्सेन जैसी विषैली गैसोंका उत्सर्जन करती है, जो सांस के साथ हमारे फेफड़ों के कैसर जैसी घातक बीमारी का कारण बन सकती   हैं । अमानक पॉलीथिन का उपयोग जिस तरह से फ्रीज मेंसब्जी-भाजी रखने तक में हो रहा है, वह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक है ।
इन तमाम दोषों के अतिरिक्त ४० माइक्रॉन से कम पतली पॉलीथिन को फेंकने या जलाने पर यह नष्ट होने के बजाय उस स्थान की उर्वरता को समाप्त् कर देती है, जिसके चलते सीधा नुकसान हरियाली और वृक्षोंका    है । जानवर के द्वारा इसे खा लेने की स्थिति में यह उसकी आंतों में फंसकर मृत्यु का कारण बन सकती है या दुधारू पशु की दुध देने की क्षमता मिट सकती है । 
वैसे होना यह चाहिए कि हम स्वत: पॉलीथिन का उपयोग पूर्णत: बंद कर दें । इस विषय में सरकारों के भरोसे, किसी नियम-कायदे की उम्मीद से बेहतर यह होगा कि हम आज ही से खुद के स्तर पर पॉलीथिन का उपयोग बंद करने की शुरूआत कर दें, तो पॉलीथिन देने वाले लोग भी इसे कम करने लगेगें । वैसे प्रदेश के पॉलीथिन विक्रेता संघ के लोग इस नए सरकारी आदेश के विरूद्ध कोर्ट जाने की तैयारी में हैं । इसके जवाब में सरकार को भी तैयार रहना होगा, अन्यथा इस आदेश का पालन आगे टल भी सकता है ।                         

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