गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

हमारा भूमण्डल
वैश्विक सेवा समझौता के निहितार्थ 
योर्गोस एल्टिन्टिज

टिसा के लागू हो जाने के  बाद राष्ट्रों की सार्वभौमिकता समाप्त होने की पूरी संभावना है । सोचिए यदि एक राष्ट्र को अपने यहां कानून बनाने के लिए किसी कंपनी की पूर्व सहमति अनिवार्य हो तो राष्ट्र नाम की संस्था का कोई औचित्य भी है? निजीकरण और खुलेपन का यह दोमुंही राक्षस अंतत: पूरी विश्वव्यवस्था को लील जाएगा ।
व्यापार में सेवा अनुबंध (ट्रेड न सर्विस एग्रीमेंट या टिसा) प्रस्तावित नई वैश्विक संधि है जिसका लक्ष्य है व्यापार में आ रही है रुकावटों को खत्म करना । दूसरे शब्दों में कहें तो जो कुछ भी राष्ट्र व समाज के हित में बाकी बचा है उसे समाप्त कर कारपोरेट सेवा प्रदाताओं का वैश्विक बाजार पर कब्जा सुनिश्चित कराना एवं रोजगार का एक ऐसा मॉडल तैयार करना जो कि शोषण पर आधारित हो, टिसा का उदे्दश्य है। इसमें अर्थव्यवस्था का पूर्ण वित्तीयकरण संभव करना शामिल    है । 
दि इंटरनेशल ट्रेड यूनियन कान्फेडेरेशन (आई टी यू सी) ने हाल ही में टिसा के पिछले साढ़े तीन वर्षों में चर्चा के २० दौर पूरे हो जाने बाद समझौते के गुप्त दस्तावेजीकरण का खुलासा किया है । इससे पता चलता है कि यदि इस पर सहमति बन गई, हस्ताक्षर हो गए और यह लागू हो गया तो, इसके कामाकाजी विश्व पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ेगंे । इसकी व्यापकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह यातायात, ऊर्जा, खुदरा सेवाओं, ई-कामर्स, संचार, बैंकिंग, भवन निर्माण, निजी स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा आदि सभी पर लागू होगा और इसका प्रभाव क्षेत्र, यूरोपीय संघ, सं.रा. अमेरिका, एशिया और अमेरिका के तमाम देशों तक फैला होगा ।  
टिसा ``प्लेटफार्म इकॉनामी`` (इसे गिग इकनामी, भी कहते हैं। इसका आशय है ऐसा श्रम बाजार जिसमें बजाए स्थायी कार्य देने के लघु अवधि हेतु संविदा या फ्रीलांस कार्य को प्राथामिकता दी जाए । एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें अंतिम समय में ही निर्णय लिए जाते हैं ।) को मजबूत बनाने और आर्थिक लाभ पहुंचाने में मदद करेगा । इसे हम उबेर जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी के आनलाइन, मांग आधारित व्यापारिक मॉडल से ठीक से समझ सकते हैं। इस तरह की कंपनियां सर्विस प्रदाताओं के मध्य अन्यायपूर्ण प्रतिस्पर्धा, असुरिक्षत अनौपचारिक श्रमिकों को नियुक्त करना एवं करों के भुगतान से परहेज कर अपना व्यापार चमकाती हैं ।
अंकेक्षण (अडिटिंग), वास्तुशिल्प, खाता बही (अकाउंटिग) रखना और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्र प्लेटफार्म इकॉनामी को अभी तक शोषणरहित स्थान उपलब्ध करवाते रहे हैं । और टिसा यह सुनिश्चित करेेगी कि इस तरह की कंपनियों को भविष्य में भी किसी भी तरह के निषेध का सामना न करना पड़े जैसा कि उबेर को फ्रांस में करना पड़ा    था । टिसा के अन्तर्गत कामगारों के लिए और भी कई अरुचिकर अचंभे हैं । 
गौरतलब है सेवाएं चार तरह से उपलब्ध कराई जाती हैं, सर्वप्रथम सीमा पार प्राप्त की गई सेवाएं यानी कि जब कोई मरीज उपचार के लिए किसी अन्य देश के अस्पताल में जाता है । दूसरा विदेश मंे उपभोग जैसे पर्यटन, तीसरा व्यावसायिक उपस्थिति जैसे कि जब एक बैंक विदेश में अपनी शाखा खोलता है और चौथा प्राकृतिक व्यक्तियों की उपस्थिति । चौथे प्रकार के सेवा प्रदान को मोड -४ के नाम से जाना जाता है। यह वास्तव में लघु अवधि का पलायन है। उदाहरण के लिए एक सूचना तकनीक (आईटी) विकासकर्ता किसी उच्च् तकनीक वाली कंपनी में छ: महीने के किसी प्रोजेक्ट पर कार्य करता है । उपरोक्त व्यक्ति की रोजगार संबंधी शर्ते हैं वेतन, छुट्टी एवं स्वास्थ्य बीमा । इसी हेतु विशिष्ट प्रोजेक्ट हेतु पूर्ण कार्य सौंपने एवं गुणवता सुरक्षा हेतु उसके साथ अनुबंध किया जाएगा । यह कार्य अत्यन्त कुशल, चलायमान (मोबाइल) और लोचदार प्रोफेशनल जैसे कि सूचना तकनीक क्षेत्र में होते हैं, के लिए है । परंतु नर्सो, केटरिंग कर्मचारियों एंव दंत चिकित्सा सहायकों के लिए ऐसा कोई अनुबंध नहीं है । 
इस संधि का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि विभिन्न सरकारंे टिसा को किस तरह से अपनाती हैं। कामगारों की अनेक श्रेणियां जिसमें कम या मध्यम कुशलता के कामगार शामिल हैं, के सामने विदेशों में कमतर सेवा शर्तों को अपनाने का दबाव आ सकता   है । जबकि उस देश के श्रम कानूनों में अधिक सुरक्षित प्रावधान मौजूद होंगे । ऐसा सिर्फ  इसलिए होगा क्योंकि श्रम कानून संविदा (कांट्रक्ेट) प्रोजेक्ट पर लागू नहीं होते । प्रश्न उठता है कि सरकारें यह कैसे सुनिश्चित करेंगी कि मोड ४ से लाभान्वित होने वाले के पास यथोचित कौशल मौजूद है । 
टिसा में इसके निर्धारण हेतु तकनीकी योग्यता आदि संबंधी मापदंड भी मौजूदा हैं । टिसा का एक अन्य अनुषंग नियमन राष्ट्रों की सार्वभौमिक सामर्थ्य को भी चुनौती देता है । इसके लागू हो जाने के बाद सरकारें के लिए अनिवार्य होगा कि वे नियमनों के निर्धारण हेतु न केवल कंपनियों को पूर्व सूचना दें बल्कि सेवाप्रदाताओं जिसमें विदेशी भी शामिल हैं, को उस पर टिप्पणी करने की अनुमति भी दें । सुनने में तो यह अहानिकर ही प्रतीत होता है । परंतु इस संबंध में यह ध्यान में रखना होगा यह टिप्पणियां नियमन बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ होने के पहले ही आ जाएंगी । साथ ही रजामंदी न होने पर कंपनियां सरकार को एक निवेश ट्रिब्युलन जो अत्यन्त विवादास्पद निवेशक राज्य विवाद निपटारा प्रणाली के अन्तर्गत गठित होगा, में ले जा सकती हैं । इससे राष्ट्रीय नियामक के सारे अधिकार ही खत्म हो सकते    हैं ।  
टिसा के अन्तर्गत बातचीत कर रहे देश यातायात सेवाओं को पूरी तरह से खोलने पर राजी हो गए हैं । इसमें समुद्री, वायु एवं भूतल यातायात के अलावा एक्सप्रेस डिलीवरी सेवा भी शामिल है। यातायात यूनियनों का मजबूत तर्क है कि इससे मजदूरी और यातायात कर्मचारियों की सुरक्षा दोनों में कमी आएगी । उनका कहना है कि जब यूरोपीय संघ की सीमाएं पूर्वी यूरोप की प्रतिस्पर्धा के समक्ष खोल दी गई थीं तब ट्रक ड्राइवरों के साथ ऐसा ही घटित हुआ था ।
टिसा में वित्तीय सेवाएं भी शामिल हैं । शायद ही ऐसा कोई भी लेन देन होता हो जिसमें वित्तीय सेवा शामिल न हो । रुकावटें कम करने से टिसा वित्त बाजारों को और अधिक मजबूती प्रदान करेगा । इसका सीधा सा अर्थ यह है कि बड़े अंतर्राष्ट्रीय बैंकों को अधिक अवसर मिलेंगे और वर्तमान में घरेलू स्तर पर कार्य कर रहे छोटे बैंको को संविलन या अधिग्रहण के माध्यम से समाप्त कर दिया जाएगा । वैसे कोई भी रास्ता हो नतीजा तो वही निकलेगा । ऐसे बैंकजो इतने बड़े हैं कि धराशायी नहीं हो सकते वे टिसा के माध्यम से और भी बड़े हो जाएंगे और इससे वित्तीय प्रणाली में जोखिम अधिक बढ़ जाएगा । इस समझौते की रूपरेखा बनाने वालों की मंशा वित्तीय बाजार के नियमनांे को समाप्त करना भी है। उदाहरण के लिए टिसा के अन्तर्गत आया कोई देश यदि अपने यहां किसी खतरनाक वित्तीय उत्पाद जारी करने की अनुमति दे देता है तो सभी टिस देशों में वह स्वमेव जारी हो जाएगा । 
सार्वजनिक सेवाएं और सार्वजनिक खरीदी भी सभी के लिए खुल जाएंगी । हालांकि यूरोपीय संघ एवं अन्य देशों ने यह भरोसा दिलाया है कि ऐसा मामला नहीं है । जबकि रहस्योद्घाटन से साफ जाहिर होता है कि इस समझौते के बाद निजीकरण की वापसी असंभव हो जाएगी । ``प्रतिस्पर्धात्मक तटस्थता`` जैसे तत्व के माध्यम से राज्य के स्वामित्व वाले उपक्रमों एवं निजी क्षेत्र को एक ही तराजू से तोलने की वजह से निजी प्रदाताओं की पहुंच बाजार में बिना रुकावट के बन जाएगी और इस कदम से स्थितियां और भी जटिल हो जांएगी । अंत में आता है मितव्ययता का भूत । इससे तात्पर्य यह है कि सार्वजनिक सेवाओं पर खर्च कम किया जाए व उनकी गुणवत्ता घटाई जाए ।

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