गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

पर्यावरण परिक्रमा
प्रवासी चिड़िया के लिये रोक दिया ब्रिज प्रोजेक्ट 
अमेरिका मेंएक प्रवासी चिड़िया के अंडोंको बचाने के लिए ४७२ करोड़ रूपए का प्रोजेक्ट रोक दिया गया है । प्रोजेक्ट के तहत एक पुल बनाया जाना है । तीन हफ्ते पहले ही निर्माण शुरू होना था । लेकिन अब इन अंडोंसे बच्च्े बाहर आने और चिड़ियों के घोसला छोड़ने के बाद ही पुल का काम शुरू किया जाएगा । 
कैलिफोर्निया के सैनफ्रां-सिस्को से करीब ५० किमी दूर रीचमंडसेन राफेल ब्रिज है । यह शहर के पूर्वी इलाके को पश्चिम से जोड़ता है । ८.८५ किलोमीटर लंबे इस पुल में एक लेन और जोड़े जाना है । साथ ही कुछ सुविधाएं शुरू की जानी हैं । इसके लिए करीब ४७२ करोड़ रूपए का प्रोजेक्ट तैयार किया गया है । निर्माण का काम शुरू करने से पहले २४ पेड़ हटाए जाने हैं जो पुल के रास्ते में आ रहे हैं । पर इनमें से एक पेड़ पर ऐन्स हमिंगबर्ड प्रजाति के पक्षी ने अंडे दे रखे हैं । १५-२० दिनों में इनमें से बच्च्े बाहर आएंगे । लिहाजा तय किया गया कि पक्षी और उसके बच्चें के घोसला छोड़ने तक प्रोजेक्ट रोक दिया जाए । शहर के मेट्रोपोलिटन ट्रान्सपोर्टेशन कमीशन के प्रवक्ता रेन्चलर ने बताया प्रवासी पक्षी के अंडों की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाया गया है । इलाके के हर प्रोजेक्ट के दौरान इस तरह की सावधानी बरती जाती है । इसके लिए सख्त निर्देश है । 
अमेरिका में एन्स हमिंगबर्ड प्रजाति की चिड़िया बड़ी तादाद में पाई जाती है । ये बहुत छोटे आकार की होती हैं । अमेरिका के दूसरे इलाकोंमें कैलिफोर्निया आती हैं । इस कारण इन्हें प्रवासी पक्षी माना जाता है । अमेरिकी माइग्रेटरी एक्ट के तहत भी इस पक्षी को सुरक्षा मिली हुई है । 

ट्रेनो मेंबायो टॉयलेट से स्वच्छता अभियान 
आम बजट पेश करते हुए पिछले दिनों वित्त मंत्री ने कहा कि २०१९ तक सभी ट्रेनों में बायो टायलेट्स लगा दिए जाएंगे । बायो टायलेट्स यानी जैविक-शौचालय । वास्तव में बायो टायलेट्स एक नया विचार है और इसकी शुरूआत सबसे पहले जापान से हुई । गंदे और बदबूदार सार्वजनिक शौचालयों से निजात दिलाने के लिये जापान की एक गैर सरकारी संस्था ने जैविक-शौचालय विकसित किए । ये खास किस्म के शौचालय गन्ध-रहित तो हैं ही, साथ ही, साथ ही पर्यावरण के लिये भी सुरक्षित हैं । जैविक-शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुआें को सक्रिय करते हैं जो मल इत्यादि को सड़ने और तेजी से खत्म करने में मदद करते हैं । इस प्रक्रियाके तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को फिर री-साइकिल कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है । 
भारत में बायो टॉयलेट का आविष्कार भारतीय रेलवे और डीआरडीओ यानी डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है । इनमें शौचालय के नीचे बायो डाइजेस्टर कंटेनर में एनेरोबिक बैक्टीरिया होते हैं जो मानव मल को पानी और गैसों में तब्दील कर देता है । इन गैसों को वातावरण में छोड़ दिया जाता है । भारत की डिब्रूगढ़ राजधानी ट्रेन दुनिया की पहली बायो वैक्यूम टॉयलेट युक्त ट्रेन है । 
सन् २०१९ तक भारतीय रेलवे के सभी ५५,००० कोचोंको १,४०,००० बायो टॉयलेट के साथ फिट किया जाएगा । तीन से पांच साल के भीतर जल पुनचक्रण की क्षमता १.२ करोड़ लीटर से बढ़ाकर २० करोड़ लीटर करने का लक्ष्य तय किया गया है । ३१ मार्च २०१६ तक रेलवे ने १०,००० डिब्बों में लगभग ३५,००० बायो-टॉयलेट को स्थापित कर लिया है । भारतीय रेलवे ने खुले तल वाली पुरानी टॉयलेट सीट की जगह बायो-टॉयलेट की शुरूआत २०१४ में ही कर दी थी । 

प्रदेश का पहला उल्लू अभ्यारण्य हामूखेड़ी में बनेगा 
म.प्र. के उज्जैन शहर की धार्मिक-पौराणिक-ऐतिहासिक कारणों से तो पहचान है ही अब एक और नई पहचान उल्लू घर के रूप में होगी । 
शहर से करीब १० किलोमीटर दूर इस उल्लू घर को विकसित किए जाने की दिशा में वन विभाग ने प्रस्ताव शासन को भेज दिया है । हामूखेड़ी गाँव उज्जैन से करीब १० किलोमीटर दूर है जहाँ प्राचीनतम मंदिर है । यहां उल्लुआें की संख्या इतनी ज्यादा है कि इस गाँव को अन्य क्षेत्र के लोग उल्लुआें का गाँव के नाम से भी पहचानते हैं । यहाँ विकसित किए जाने वाला उल्लू अभ्यारण्य अपनी किस्म का प्रदेश का पहला अभ्यारण्य होगा । 
वन विभाग के सूत्रोंने बताया कि इस क्षेत्र में तेंदूपत्ता के पेड़ बहुतायात में है जो कि उल्लुआें को डेरा बनाने के लिए पंसदीदा पेड़ है । इन पेड़ों के कारण ही इस स्थान को चुना गया है । दूसरी वजह यह है कि यहाँ स्थित मंदिर में दर्शनार्थियों की आवाजाही बनी रहती है और सप्तह के अंतिम दिनों में यह संख्या बढ़ जाती है । दर्शनार्थी प्रसाद चढ़ाते हैं इस कारण यहाँ चूहों की भी अधिकता है और चहा उल्लुआें का प्रिय भोजन है  १० हजार से अधिक तेंदूपत्ता पेड़ होने के कारण इस पूरे क्षेत्र को एक पार्क के रूप में विकसित किया जा सकता है । जहाँ उल्लुआें का डेरा रहेगा । शहर से दूर होने के कारण यहाँ इतना प्रदूषण नहीं हैं । इस वजह से भी उल्लुआें सहित अन्य पक्षियों के लिए यह स्थान सुविधाजनक है । वन विभाग उल्लू अभ्यारण्य विकसित करने के साथ ही आसपास कैफेटेरिया आदि भी विकसित करेगा ताकि उल्लू घर देखने आने वाले बाहर के पर्यटकों को आवश्यक सुविधाएँ मुहैया हो सके । यह प्रयास भी किये जा रहे हैं कि उल्लू अभ्यारण्य विकसित होने के बाद पर्यटकों की चहल-पहल बढ़ती है तो उनके वाहन निश्चित सीमा के बाद रोककर बैटरी चलित वहन सुविधा उपलब्ध कराई जाए ताकि पक्षियों-उल्लुआें के लिए कोलाहल पैदा न हो । 

सोलर एनर्जी पर क्या सरकार को भरोसा नहीं ?
म.प्र. सरकार सोलर एनर्जी को भविष्य की बिजली आपूर्ति का बड़ा स्त्रोत बताकर बड़ी-बड़ी योजनाएं बना रही हो, लेकिन उसे खुद भरोसा नहीं है कि प्रदेश की बिजली आपूर्ति में ये ऊर्जा बड़ा योगदान दे पाएगी । यही वजह है कि बिजली कंपनियां के माध्यम ये ऊर्जा विभाग ने निजी कंपनियों से अगले २० सालों के लिए बिजली खरीदने के बड़े अनुबंध कर लिए है । स्थिति ये है कि प्रदेश की बिजली खपत सामान्यतौर पर १५,००० मेगावाट है, लेकिन अनुबंध १७,००० मेगावाट के कर लिए हैं । 
अगले २० साल तक लगातार २१ हजार मेगावाट बिजली खरीदी का अनुबंध करने वाले ऊर्जा विभाग ने सोलर एनर्जी से अगले दस साल में १००० मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है । इस बिजली से भोपाल जैसे पांच शहर को २४ घंटे लगातार बिजली की आपूर्ति की जा सकती है, बावजूद इसके २१००० मेगावाट बिजली खरीदी के निजी अनुबंध सरकार के अविश्वास को जाहिर करती है । 
अभी ऊर्जा विकास निगम के माध्यम से पुलिस, नगरीय निकाय समेत तमाम सरकारी भवनों पर सोलर पैनल से बिजली उत्पादन के एमओयू किए हैं । नगरीय निकायों ने भी सोलर पैनल पर ३० फीसदी तक की छूट की घोषणा की है । बिजली विशेषज्ञ अंकुर श्रीवास्तव का कहना है कि जब खुद बिजली बनाएंगे तो कंपनियोंकी मांग   घटेगी । अनुबंध सरकार पर बोझ ही बढ़ाएंगे ।

नैनो तकनीक से होगा मिनटो मे जंग की छुट्टी
राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमल), जमशेदपुर के वैज्ञानिकों ने नैनो तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एक ऐसा पदार्थ तैयार किया है जिससे लोहे पर लगा जंग और एल्युमिनियम, पीतल तथा काँसे पर से काले दाग पांच मिनट में ही निकल जायेंगे । साथ ही उन्होंने ऐसा पारदर्शी पेंट भी तैयार किया है जो भविष्य में उनमें जंग नहीं लगने  देगा । इन जंगरोधी उत्पादों को यहां पिछले दिनों सम्पन्न अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में प्रदर्शन के लिए रखा गया  था । इनकी तकनीक झारखंड के जमशेदपुर स्थित एक कंपनी को हस्तांतरित की गई है तथा आगामी दिनों में इन उत्पादों के बाजार में आने की उम्मीद है । एनएमएल के वैज्ञानिक डॉ. आर.के. साहू ने बताया कि कंपनी रब्जी क्लीन नाम से यह जेल बाजार में ला रही है । इसे जंग लगे सामान पर लगाकर पांच मिनट छोड़ देना होता है । उसके बाद किसी कपड़े से पोछने पर जंग बिल्कुल साफ हो जाता है । आम तौर पर कांसे या पीतल के बर्तन पर काले दाग पड़ जाते है जिन्हें हटाने के लिए बाजार में उपलब्ध मौजूदा रसायन लगाने के बाद उसे काफी देर तक रगड़ना पड़ता है । इसे तैयार करने में किसी हानिकारक पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया है । इसे नैनो तकनीक से प्राकृतिक पदार्थोंा और मेटल ऑक्साइड से तैयार किया गया है । 
जंग हटाने के बाद भविष्य में भी इन्हें सुरक्षित बनाने के लिए ग्रेफाइट पेंट तैयार किया गया है । इसके पारदर्शी होने के कारण पीतल, काँसे या एल्युमिनियम के सामान अपने वास्तविक रंग में ही रहते है । साथ ही एक बार इसकी परत चढ़ा देने पर आम तौर पर १० साल तक यह सामान को जंग से बचाता है ।

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