शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

वातावरण 
क्या पर्यावरण विरोधी है कचरे से बिजली ?
मनोज निगम

पर्यावरण मंत्रालय की जानकारी के अनुसार देश मेंप्रति वर्ष ६२० लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, इसमें ५६ लाख टन प्लास्टिक कचरा १.७ लाख टन जैव चिकित्सा अपशिष्ट, ७९ लाख टन खतरनाक अपशिष्ट और १५ लाख टन ई-कचरा निकलता है । नगर निगम और पालिकाएं इन अपशिष्ट का केवल ७५ से ८० प्रतिशत ही एकत्र कर पाती है और २२-२८ प्रतिशत हिस्सा ही संसाधित किया जाता है । 
कचरा प्रबंधन एक देशव्यापी समस्या है, देश भर में कचरा निपटारे के कई प्रयोग किए जा रहे हैं । इनमें से एक है कचरे का भस्मीकरण एवं बिजली उत्पादन । सार्वजनिक अपशिष्टों के भस्मीकरण और उससे बिजली उत्पादन के १०० प्लांट्स बनाने के नीति आयोग के प्रस्ताव को तमाम तबकोंद्वारा तीखी आलोचना मिल रही है । कहा जा रहा है कि यह योजना वायु प्रदूषण को कम करने और ऊर्जा के साफ-सुथरे स्त्रोतों की ओर बढ़ने के राष्ट्रीय प्रयासों में बाधक होगी । 
नीति आयोग की तीन सालाना (२०१७-१८ से २०१९-२०) योजनाआें पर बनाए व्यापक मसौदे के अनुसार देश की ८००० नगर पालिकाआें में प्रतिदिन उत्पन्न १,७०,००० टन कचरे के प्रबंधन का उद्देश्य है । इस कचरे से निपटने के लिए कचरे से ऊर्जा बनाना ही एकदम सही विकल्प है । योजना में इस कचरे को एक गंभीर लोक स्वास्थ्य खतरा बताया गया है । सार्वजनिक ठोस अपशिष्ट की सफाई की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए भारतीय कचरा ऊर्जा निगम की स्थापना का सुझाव दिया गया है । संयंत्रों को बनाने का काम पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप के तहत किया जाएगा । 
रिपोर्ट के अनुसार इस निगम का मुख्य दायित्व २०१९ तक बनाए जाने वाले १०० स्मार्ट शहरों में अपशिष्ट से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्र निर्माण क काम की निगरानी का होगा । योजना में कल्पना की गई है कि ये संयंत्र पर्यावरण के लिए लाभकारी होंगे और इनसे २०१८ तक ३३० मेगावाट और २०१९ तक ५११ मेगावाट बिजली का उत्पादन हो सकेगा । यहां यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है कि कोयले पर आधारित बिजली संयंत्र साल में लगभग ५०० मेगावट बिजली का उत्पादन करता  है । 
ठोस कचरा प्रबंधन के नियमों में यह स्पष्ट है कि कचरे को घरेलू स्तर पर गीला, सूखा और घरेलू खतरनाक कचरे की तीन श्रेणियों में बांटा जाना चाहिए, यह व्यवहारिक रूप से नहीं हो पा रहा है । अधिकांश कचरे में तीनों श्रेणियों के कचरे मिल ही जाते है । अलग-अलग करने के लिए सरकारी और सामाजिक प्रयास भी करने होगे । नियम में यह भी है कि कचरे से ऊर्जा पैदा करने वाले संयंत्रों में मिश्रित कचरा नहीं जलाना चाहिए, और कचरे को निपटाने का आखरी विकल्प जमीन के भराव का होना चाहिए । 
एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक नीति आयोग यह बताने में असफल रहा है कि जब इन संयंत्रों में मिला-जुला अपशिष्ट जलेगा तो फिर इनसे विषैली गैसों का उत्सर्जन भी होगा और ये हवा में गैर जिम्मेदारना रूप से प्रदूषण फैलाएंगी । यदि इस विषाक्त उत्सर्जन की निगरानी का प्रभावी तंत्र न हो तो स्वास्थ्य संबंधी खतरे और भी चुनौतीपूर्ण होगे । कचरे के पृथक्करण के लिए कई सारी सामाजिक, आर्थिक व व्यवहारिक चुनौतियां तो होगी ही । 
यह जानकारी भी गौरतलब है कि हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली के ओखला स्थित एक संयंत्र पर पेनल्टी लगाई है क्योंकि वहां पर उत्सर्जन के मानकों का पालन नहीं किया गया । और वहां के रहवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में इस संयंत्र को किसी अन्य जगह ले जाने के लिए जनहित याचिका दायर की  है । नीति आयोग के इस ड्राफ्ट एजेंडा  में न तो दिल्ली स्थित संयंत्रों से कोई सबक लिया है न ही कुछ शहरों में बायोमेथीनेशन के सफल परिणामों का जिक्र है ।
कई भारतीय पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अवधारणा ही दोषपूर्ण है । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की मूल्यांकन समिति के तकनीकी विशेषज्ञ इंजीनियर अनंत त्रिवेदी के अनुसार अपशिष्टों को जलाना सबसे खराब विकल्प है । यह विश्वास करना कि अपशिष्टों से साफ-सथुरी ऊर्जा बनाई जा सकेगी भी गलत साबित होगा । 
भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलुरू के विशेषज्ञ टी.वी. रामचन्द्र का कहना है कि घरेलू कचरे में ८० प्रतिशत तक नमी वाले जैविक पदार्थ होते हैं इनका भस्मीकरण उचित नहीं है । बेहतर उपाय यह है कि इस कूड़े की खाद बनाकर या इसका किण्वन करके इससे बायोगैस बनाई जाए । 
अमन लूथरा का अध्ययन भारत में शहरीकरण और अपशिष्ट प्रबंधन का है । इनका कहना है कि भस्मीकरण की तकनीक में लगातार कम नमी और अधिक कैलोरी के अपशिष्टों की जरूरत होती है । भारतीय अपशिष्ट जलाने के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसमें नमी की मात्रा अधिक होती है और इसको जलाने के लिए भी अधिक ऊर्जा की जरूरत होगी । सी.एस.ई. (सेंटर फार एन्वायरमेंट एजूकेशन) के अध्ययन के अनुसार भी भारतीय अपशिष्ट ८००-१००० किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम का होता है और इसको जलाने के लिए लगभग २००० किलो कैलोारी प्रति किलोग्राम की जरूरत होगी ।
कचरे को जलाने की सिफारिश अन्य सरकारी नीतियों से भी जुदा है । हाल ही मे प्रदूषण पर भारत सरकार के श्वेत पत्र के अनुसार ठोस अपशिष्ट को ठिकाने लगाने के भस्मकीकरण जैसे थर्मल उपचार के तरीके कचरे के निम्न ऊष्मा मूल्य के कारण संभव नहीं   है । आलोचकों का कहना कि भारत के पास बिजली उत्पादन की पर्याप्त् क्षमता नहीं है । 

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