शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

जन जीवन 
बढ़ते वायु प्रदूषण से घटता जीवनकाल 
अश्विनी शर्मा 

हमारे देश में अगर कोई किसी की हत्या में लिप्त् पाया जाये तो देर सवेर ऐसे लोगों को सजा मिल जाती है । लेकिन लोगों की प्रदूषण से होने वाली मौतों के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होता है, क्योंकि हमारे देश के तंत्र में इसे अपराध माना ही नहीं जाता है । इसी कारण प्रदूषण की इतनी समस्याएं उत्पन्न हुई है । 
जीवित रहने के लिए सांस लेना जरूरी है लेकिन देश के लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो गया है, क्योंकि देश के तमाम शहरों और कस्बोंकी हालत ऐसी ही हो गई है तथा इसमें सबसे बुरी हालत राजधानी दिल्ली की है, दिल्ली के लोगों की उम्र प्रदूषण के कारण ६ वर्ष तक कम हो रही है इसीलिए दिल्ली की हवा को हत्यारी हवा भी कह सकते है । कुछ ऐसे ही हालात देश के दूसरे हिस्सों के भी है और यहां के लोगों की उम्र भी वायु प्रदूषण की वजह से ३.५ से ६ वर्ष तक कम हो रही है । 
यह हालात बेचैन करने वाले हैं । भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है और वायु प्रदूषण देश के लोगों की सेहत के लिए सबसे बड़ा खतरा है । लेकिन हमारे देश के लोग इस खतरे को लेकर कितने संवेदनशील हैंयह आंकड़े बताते है । यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा एयर  क्वालिटी इंडेक्स के आधार पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार वायु प्रदूषण घटाने पर कार्य करें तो लोगों का जीवन औसतन ४ वर्ष बढ़ सकता है । 
इस रिपोर्ट में देश के ५० सबसे प्रदूषित जिलों के आंकड़े दिए गए है, इनमें दिल्ली के अतिरिक्त आगरा, बरेली, लखनऊ कानपुर, पटना तथा देश के अन्य बड़े शहर शामिल है । देश के राष्ट्रीय मानकों का पालन करने पर इन जिलों में रहने वाले लोगों की उम्र ३.५ वर्ष से ६ वर्ष तक बढ़ सकती है । एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की मदद से यह ज्ञात किया जाता है कि वायु प्रदूषण कम हो जाए तो औसत के मुकाबले लोगों की उम्र कितना बढ़ सकती है । डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रदूषण की मात्रा बताने वाले पीएम २.५ के स्तर को ७० से २० माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर तक कम कर दिया जाए तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में लगभग १५ प्रतिशत तक की कमी आ सकती    है । 
देश के राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हमारे देश में पीएम २.५ का स्तर ४० माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर होना चाहिए और पीएम १० के लिए यह स्तर ६० माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर होना चाहिए, लेकिन भारत में पीएम २.५ के मानक डब्ल्यूएचओ के मानकों से ४ गुना ज्यादा है । जबकि पीएम १० के मानक तीन गुना ज्यादा है । हवा में मौजूद ये पीएम कण सांस द्वारा शरीर और फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और अपने साथ जहरीले केमिकल्स को शरीर में पहुंचा देते हैं जिससे फेफड़े और ह्दय को क्षति पहुंचती है ।
सर्दियों के मौसम में तापमान में कमी आने के साथ ही इन दोनों कणों का स्तर वायुमण्डल में बढ़ता जाता है । यानी नवम्बर से फरवरी तक हालत बहुत गंभीर और खतरनाक हो जाते है । एक अमेरिकन इंस्टि्यूट की ग्लोबल एक्सपोजर टू एयर पोल्यूशन एंड इटस डिजीज बर्डन रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की ९२ फीसदी आबादी उन इलाकों में रहती है, जहां की हवा स्वच्छ नहीं मानी जाती है । 

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