मंगलवार, 17 जुलाई 2018

स्वास्थ्य - २
आयुष चिकित्सकों के लिए ब्रिज कोर्स
जगन्नाथ चटर्जी

विकास  का एक प्रस्ताव यह उभरा है कि आयुष चिकिसकों के लिए आधुनिक (एलोपैथिक) चिकित्सा का एक ब्रिज कोर्स होना चाहिए ताकि वे इस पद्धति का उपयोग सोच-समझकर कर सकें । यह कहा जा रहा है कि इससे खास तौर से ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी ।
कहा जाता है कि आधुनिक चिकित्सा की खामियों को दूर करने में आयुष में काफी संभावनाएं हैं । शर्त यह है कि आयुष पाठक्रमों को आधुनिक सोच की जंजीरों से मुक्त किया जाए । क्योंकि इस सोच के हावी होने से आयुष चिकित्सकों को भी बीमारियों को एलोपैथी द्वारा निर्धारित नामों के  आधार पर ही देखना होता है। आयुष के  प्रत्येक घटक  का सोचने का एक अलग नज़रिया है और लोगों की मदद करने की एक शैली है, बशर्ते कि उन्हें अपने सोच के  अनुसार  काम करने दिया  जाए ।
           आज संजीदा आयुष चिकित्सक तंत्र से जूझ रहे हैं और अपनी-अपनी प्रणाली की बुनियादी अवधारणाओं पर लौटने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे  नए सिरे से शुरुआत कर सकें । आयुर्वेदिक चिकित्सक आधुनिक आयुर्वेदिक पुस्तकों को तिलांजलि देकर मूल पुस्तकों पर लौट रहे हैं और इस तरह से वे ज्ञान भी अर्जित कर रहे हैं और अस्वस्थता से निपटने में लोगों की मदद भी कर रहे हैं । होम्योपैथ हानेमन के ऑर्गेनॉन की ओर लौट रहे हैं और आज हमारे पास ऐसे लेखक हैं जिन्होंने अद्भूत पुस्तकें लिखी हैं जो युवा मस्तिष्क को गढ़ रही हैं । सोवा रिग्पा (तिब्बती चिकित्सा प्रणाली) एक  अद्भूत विज्ञान है जिसने बीमारी के उन गूढ़ पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित किया है जिन्हें प्रारंभिक आयुर्वेद ने विकसित किया था । प्राकृतिक चिकित्सा और योग आम लोगों के लिए वरदान है क्योंकि  इनमें भोजन और जीवन शैली स्वस्थ होने के तरीके बन जाते हैं । यूनानी चिकित्सा आयुर्वेद की एक शाखा है जिसके साथ मुस्लिम लोग जुड़ पाते हैंऔर स्वीकार कर पाते हैं ।  
मैं सचमुच उम्मीद करता हूं कि हम इस बात को समझेंगे और इन समग्र प्रणालियोंको उनका सम्मानजनक स्थान और स्वतंत्रता प्रदान करेंगे। उनका दर्शन और तौर-तरीके समझे बगैर उनके कार्यक्षेत्र में घुसपैठ करना अकलमंदी नहीं है।
संजीदा आयुष चिकित्सक ब्रिज कोर्स के खिलाफ कड़ा संघर्ष  कर कर रहे हैं । केन्द्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (सी.सी.आर.एच.), केन्द्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सी.सी.आर.ए.एस.), केन्द्रीय योग व प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद (सी.सी.आर.वाय.एन.) जैसी संस्थाओं के अधिकारी भी इस संघर्ष में भागीदार हैं । ब्रिज कोर्स से इन प्रणालियों के चिकित्सकों और आम लोगों दोनों की सेहत का क्षय होगा क्योंकि इसके साथ एक समग्र दर्शन की फिर उपेक्षा होगी। आयुष प्रणालियों के वर्तमान स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रमों में आधुनिक चिकित्सा की कई बुनियादी विधियों के  लिए जगह है। स्वास्थ्य पर दूरगामी प्रभाव को ध्यान में रखते हुए समग्र चिकित्सक चुनिंदा ढंग से इन्हें अपना सकते हैं । 
हम सबको आयुष की ज़रूरत है। हम सब इंसान हैं जो क्षय और रोग के अधीन हैं । हम सबको राहत की ज़रूरत होती है। हम सबको विकल्पों की ज़रूरत है। तो विकल्पों के पिटारे में अतिक्रमण क्यों किया जाए ? हम प्रचलित चिकित्सा विज्ञान की सीमाओं से परिचित हैं और हम सब इस तंत्र की खामियों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं । 
हम यह भी जानते हैं कि यह संघर्ष किन शक्तियों के विरुद्ध है। स्वास्थ्य सेवा एक गंदा शब्द बन गया है क्योंकि यह आमदनी और विकास का एक डरावना नज़ारा पेश करता है। बिज कोर्सेस चालू करना इन्हीं शक्तियों  को प्रोत्साहन देगा क्योंकि इनके   ज़रिए उनका बाज़ार ग्रामीण क्षेत्रों में  फैलेगा । 

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