मंगलवार, 17 जुलाई 2018

जीवन शैली
दैनिक उपयोगिता के उत्पादों को खतरों से बचाएं
भारत डोगरा

हाल के समय में दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले उत्पादों में खतरनाक रसायनों व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कारकों का प्रवेश तेजी से बढ़ा है । 
एक लाख में से ३००० व्यापारिक उपयोग वाले रसायन ऐसे हैं जिनका उत्पादन पाँच लाख किलोग्राम प्रतिवर्ष से अधिक होता है पर इनमें से लगभग ५० प्रतिशत कैमिकल्स से जुड़े खतरों के बारे में कोई आंकड़े व अध्ययन उपलब्ध नहीं हैं । ऐसी बुनियादी जानकारी के अभाव में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव संभव नहीं है । वहीं मोबाईल फोन व इनके लिए बनाए गए टॉवर से निकलने वाले रेडियेशन या विकिरण से स्वास्थ्य संबंधी कई खतरे जुड़े हैं ।
लिवरपूल विश्वविद्यालय से जुड़े विशेषज्ञ डा. वाईवन हावर्ड ने एक बहुचर्चित लेख में बताया है कि आज हमारे शरीर में ३०० से ५०० ऐसे रसायन मौजूद हैं जिनका आज से ५० वर्ष पहले अस्तित्व था ही नहीं या नहीं के बराबर   था । खतरनाक रसायनों को जब मिश्रित किया जाता है, तो उनका खतरनाक असर १० गुणा तक बढ़ सकता है जबकि वर्तमान में विभिन्न रसायनों कि जांच अलग-अलग ही की जाती है । 
विश्व के २८ देशों के १७४ वैज्ञानिकों ने आपसी सहयोग से यह पता लगाने का प्रयास किया कि सामान्य उपयोग में आने वाले रसायनों का कैंसर से कितना संबंध है। जिन रसायनों का अध्ययन हुआ, उनमें ८५ में से ५० रसायन ऐसे पाए गए जिनका कैंसर के कारणों पर 'लो डोज` असर पाया गया । १३ के संदर्भ में एक सीमा के बाद कैंसर उत्पन्न करने वाले असर देखे गए ।
लंदन फूड कमीशन ने बताया था ब्रिटेन में ९२ ऐसे कीटनाशकों /जंतुनाशकों को स्वीकृत मिली हुई है जिनके बारे में पशुओं पर होने वाले अध्ययनों से पता चला था कि इनसे कैंसर व जन्म के  समय की विकृतियां होने की संभावना है । संयुक्त राज्य अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंर्सिस ने एक रिपोर्ट में कहा कि पेस्टीसाईड के कारण एक पीढ़ी में लगभग १० लाख कैंसर के अतिरिक्त कैंसर उत्पन्न होने की संभावना है ।
पी.ग्रेंडजीन व पी.जे.लैंडरिगन ने कैमिकल्स के स्वास्थ्य परिणामों पर अपने चर्चित अनुसंधान में बताया है कि एक लाख में से ३००० व्यापारिक उपयोग वाले रसायन ऐसे हैंजिनका उत्पादन पाँच लाख किलोग्राम प्रतिवर्ष से अधिक होता है पर इनमें से लगभग ५० प्रतिशत कैमिकल्स से जुड़े खतरों के बारे में कोई आंकड़े व अध्ययन उपलब्ध नहीं हैं । ऐसी बुनियादी जानकारी के अभाव में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव संभव नहीं है ।
इन वैज्ञानिकों के अनुसंधान में विशेषकर भ्रूण व बच्चें के मस्तिष्क के  विकास पर खतरनाक कैमिकल्स के असर का विवरण है। भ्रूण व बच्चें के मस्तिष्क विकास को प्रतिकूल प्रभावित करने वाले थोड़े से कैमिकल्स की ही पहचान हुई है, जबकि इनकी वास्तविक संख्या कहीं अधिक होने का अनुमान है। इस असर के कारण ऑटिस्म, मंदबुद्धिता व सेरीब्रल पाल्सी जैसी स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं । इस अध्ययन के अनुसार खतरनाक कैमिकल्स के कारण ऐसे प्रतिकूल परिणाम झेलने वाले बच्चें की संख्या विश्व स्तर पर कई मिलियन में हो सकती है (१ मिलियन = १० लाख)
भारतीय सरकार के संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय ने कुछ समय पहले मोबाईल फोन से जुड़े खतरों के अध्ययन के लिए एक आठ सदस्यों की अर्न्तमंत्रालय समिति का गठन किया । इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मोबाईल फोन व इनके लिए बनाए गए टॉवर से निकलने वाले रेडियेशन या विकिरण से स्वास्थ्य संबंधी कई खतरे जुड़े हैंजैसे याद्दाश्त कमजोर होना, ध्यान केन्द्रित न कर पाना, पाचन तंत्र में गड़बड़ी होना व नींद में कठिनाई होना, सिरदर्द, थकान, हृदय तनाव, प्रतिक्रिया में देरी आदि । अन्य जीव-जंतुओं पर असर के बारे में इस समिति ने बताया कि चिड़िया-गौरेया, मधुमक्खी, तितली, अन्य कीटों की संख्या में बड़ी कमी आने में अन्य कारणों के साथ मोबाईल टावर से होने वाले रेडियेशन भी जिम्मेदार हैं ।
इससे पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. जितेंद्र बेहारी का इस विषय पर अनुसंधान भी सुर्खियों में आया था । इस शोध को इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च व कांउसिल फॉर साइंर्टिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च ने प्रायोजित किया था। इस अनुसंधान का निष्कर्ष यह था कि मोबाईल का अधिक समय तक इस्तेमाल करना खतरनाक तो अवश्य है पर यह कितना खतरनाक सिद्ध होगा यह कई बातों पर निर्भर होगा जैसे कि मोबाईल फोन का उपयोग करने वाले व्यक्ति की उम्र कितनी है, उसे पहले से कौन-सी बीमारी या स्वास्थ्य समस्या है, वह कितने समय फोन उपयोग करता है व उसके फोन की क्वालिटी कैसी है । 
विशेष परिस्थितियों में मोबाईल फोन का उपयोग हृदय रोग, कैंसर (विशेषकर दिमाग का कैंसर), आर्थराईटिस, अल्जाईमर, नपुसंकता (स्पर्म शुक्राणु की कमी) की संभावना बढ़ा सकता है । उम्र के हिसाब से देखें तो मोबाईल फोन व टॉवर का सबसे अधिक खतरा छोटे बच्चें के लिए  है । अत : छोटे बच्चें को मोबाईल व टॉवर से बचा क  र रखना सबसे जरू री है।
यह खतरे भविष्य में इस क ारण तेजी से बढ़ेंगे क्योंकि अब बचपन से ही मोबाईल फोनों का उपयोग हो रहा है और काफी असावधानी से हो रहा है । कई बार सोते समय रात को ऑन मोबाइल बच्चें के बहुत पास रख दिया जाता है जो बहुत गलत है, विशेषकर यदि फोन दिमाग के  पास ही पड़ा हो ।
अत : यह बहुत जरूरी है कि दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुओं के खतरों के बारे में पर्याप्त प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध करवाई जाए तथा साथ में दैनिक जीवन के  उपयोग की वस्तुओं को सुरक्षित बनाने के भरपूर प्रयास सरकारी व गैर-सरकारी दोनों स्तरों पर किए जाएं ।

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