मंगलवार, 17 जुलाई 2018

ज्ञान विज्ञान
उछलते-कूदते नहीं, चलते हैं ये मेंढक
आपने मेढ़कों को कूदते, तैरते, चढ़ते, और यहां तक कि सरकते हुए भी देखा होगा । लेकिन इन उभयचरों की चार अजीब प्रजातियों में एक अलग ही खूबी विकसित हुई है: ये कूद-फांद करने की बजाय चलते हैं । 
    ये चार प्रजातियां हैं: सेनेगल रनिंग मेंढक, बम्बलबी टोड, लाल-बैंडेड रबर मेंढक, और टाइगर-लेग्ड मंकी मेंढक । ये मेंढक अन्य चौपाए जानवरों की तरह नहीं चलते हैं बल्कि शिकार की ओर खामोशी से बढ़ने वाली बिल्ली की तरह जमीन पर रेंगते हैं।
इसकी जांच-पड़ताल के लिए टीम ने इन मेंढकों की टांगों के सापेक्ष आकार को मापा और उनके चलने की शैली और गति को देखा । हालांकि  ये  चार प्रजातियां परस्पर सम्बंधित नहीं  हैं, लेकिन जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल जुऑलॉजी पार्ट ए: इकॉलॉजी एंड इंटीग्रेटिव फिज़ियोलॉजी में उनकी रिपोर्ट के अनुसार इनकी अगली और पिछली टांगें लगभग बराबर लंबी होती हैं । सामान्य मेंढक की अगली टांगें पिछली टांगों की तुलना में छोटी और कम शक्तिशाली होती हैं ।  हालांकि उपरोक्त चार प्रजातियों में अगली टांगें पिछली के  मुकाबले थोड़ी छोटी हैं लेकिन चलते समय वे इन्हें खींच-खांचकर बराबर कर लेते हैं।
शोधकर्ता अभी यह नहीं समझ पाए हैं कि ये मेंढक चलते क्योंहैं, लेकिन एक तथ्य यह है कि चारों प्रजातियां एक ही तरह के घास के मैदानों में रहती हैं जहां शाखाओं या पत्तों की कमी होती है। इसलिए, शिकारियों से बचने के लिए कूदने से बेहतर चलना हो सकता है। वैसे विकास ने इन प्रजातियों का मेंढकान पूरी तरह से समाप्त् नहीं किया है । कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि ये मेंढक अभी भी कूद और तैर सकते हैं। यह अलग बात है कि वे आम तौर पर ऐसा नहीं करते हैं। 

मधुमक्खियां हुई और घातक
हाल ही में जैव रसायनयज्ञों ने मस्तिष्क में ऐसे रसायन खोजे हैं जो तथाकथित किलर मधुमक्खियों को उग्र बनाते हैं ।  शोधकर्ताओं का ख्याल है कि ये रसायन अन्य जानवरों में भी आक्रामकता पैदा कर सकते हैं ।  ऐसा फल मक्खियों और चूहों में देखा भी जा चुका है ।  
वैसे तो मधुमक्खियां इलाका बांधने वाले जीव हैं  जो अपने छत्ते की रक्षा के लिए अंत तक लड़ सकते हैं। लेकिन दब्बू यूरोपीय और अधिक आक्रामक अफ्रीकी रिश्तेदार का संकर उन्हें विशेष रूप से आक्रामक बनाता है। १९५० के दशक में अफ्रीकी मधुमक्खियों को  ब्राज़ील में आयात करने के  बाद  यह संकर उभरा । १९८० के  दशक तक वे उत्तर में संयुक्त राज्य अमेरिका में फैलते गए और रास्ते में निवासी मधुमक्खियों को भी खत्म करते गए । इस दौरान १००० से ज्यादा लोग भी मारे गए ।
मधुमक्खियों के  इस उग्र बर्ताव को समझने के लिए साओ पौलो राज्य विश्वविद्यालय, ब्राज़ील के जैव रसायन यज्ञ मारियो पालमा ने एक प्रयोग किया । इस प्रयोग में उनके साथियों ने एक काले चमड़े की गेंद को अफ्रीकीकृत  मधुमक्खियों के छत्ते के सामने लुढ़काया, तो कुछ मधुमक्खियों ने उस पर हमला किया । इसके बाद उन्होंने छत्ते की उन मधुमक्खियों को अलग से इकठ्ठा किया जिनके  डंक हमले के  दौरान गेंद में फंस गए थे । जो मधुमक्खियां छत्ते में ही बैठी रही थीं, उन्हें भी अलग से इकट्ठा किया गया । 
दोनों प्रकार की मधुमक्खियों को फ्रीज करके उनके दिमाग की पतली-पतली स्लाइसें काट कर एक परिष्कृत तकनीक से प्रोटीन का विश्लेषण किया और यह भी पता लगाया कि कोई प्रोटीन दिमाग के किस भाग में उपस्थित था । इस जांच से पता चला कि आक्रामक मधुमक्खियों के दिमाग में दो ऐसे प्रोटीन पाए जाते हैं जो टूटकर न्यूरोपेप्टाइड में परिवर्तित  हो  जाते    हैं । 
यह बात तो पहले से मालूम थी कि मधुमक्खियों  के दिमाग में ये दो प्रोटीन होते हैं लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि कैसे ये अविलंब न्यूरोपेप्टाइड में टूट जाते हैं । 
हमला न करने वाली मधुमक्खियों  में  न्यूरोपेप्टाइड बनते नहीं देखा गया, लेकिन जब पालमा की टीम ने ये अणु युवा, कम आक्रामक मधुमक्खियों में इंजेक्ट  किए तो उनमें भी अन्य की तरह आक्रामक लक्षण देखे   गए ।     
शोधकर्ताओं के अनुसार ये अणु अन्य कीटों में भी पाए गए हैं,जो उनके भोजन ग्रहण और पाचन को नियंत्रित करते हैं । किन्तु आज तक आक्रामकता से इनका सम्बंध नहीं देखा गया था । पालमा की टीम इन अवलोकनों को देखते हुए उम्मीद कर रही है कि भविष्य में किलर मधुमक्खियों से बचने का कोई उपाय निकाल  लेंगे ।  

इंसानों की हलचल ने जन्तुआें को निशाचर बनाया 
पिछले वर्षों में इंसानों ने वन्य जीवों  के प्राकृतवासों पर ज्यादा से ज्यादा अतिक्रममण किया है । इस अतिक्रमण का एक परिणाम यह हुआ है कि वन्य जीवों के व्यवहार में परिवर्तन आया है।  एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह देखा गया है कि पहले जो जंतु दिन में सक्रिय रहा करते थे, वे अब निशाचर हो गए हैं । इनमें लोमड़ियां, हिरन, जंगली सूअर वगैरह शामिल हैं । 
   इससे मनुष्य की गतिविधियों से डरकर बचना तो संभव हो जाता है किन्तु  इसमें अन्य खतरे  हैं । 
       दरअसल शोधकर्ताओं ने ६ महाद्वीपों पर रहने वाले स्तनधारियों की ६२ प्रजातियों पर किए गए ७६ अध्ययनों को खंगाला । इनमें ओपोसम से लेकर हाथी तक शामिल थे । खास तौर से शोधकर्ताओं ने इन अध्ययनों के आधार पर यह समझने की कोशिश की कि इंसानी क्रियाकलापों के कारण इन ६२ प्रजातियों के जंतुओं के व्यवहार में किस तरह के परिवर्तन आए हैं । उक्त ७६ अध्ययनों में जंतुओं पर निगरानी रखने की कई तकनीकों का सहारा लिया गया था । इनमें जीपीएस से लेकर गति-प्रेरित कैमरा शामिल हैं ।
यह देखा गया कि इंसान के आगमन से पूर्व की अपेक्षा अब जंतु रात को अधिक सक्रिय नजर आते हैं ।  
उदाहरण के लिए, जो स्तनधारी पहले अपनी गतिविधियों को रात और दिन में बराबर-बराबर बांटकर करते थे, उनकी रात की गतिविधियां बढ?कर ६८ प्रतिशत तक हो गई हैं ।  यह रिपोर्ट साइन्स पत्रिका में प्रकाशित  हुई है । 
टीम ने यह भी देखा कि जंतु समस्त इंसानी गतिविधियों पर एक-सी प्रतिक्रिया देते हैं - चाहे वह गतिविधि उन पर सीधे-सीधे असर डालती हो या न डालती हो। दूसरे शब्दों में, यदि आसपास मनुष्यों की हलचल हो रही है तो हिरन रात को ज्यादा सक्रिय दिखाई देंगे, जरूरी नहीं कि जब  इंसान उनका शिकार कर रहे है । 
टीम का मत है किजंतुओं का यह निशाचर व्यवहार मनुष्योंऔर वन्य प्राणियों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को संभव बनाता है । साथ ही साथ इससे हमें वन्य जीव संरक्षण की बेहतर योजना बनाने में मदद मिल सकती है। जैसे हम किसी भी क्षेत्र में मानव हलचल को उन समयों तक सीमित कर सकते हैं जब वहां जंतु सक्रिय होते हैं । यह ज?रूरी है क्योंकि जहां निशाचरी स्वभाव का विकास होने से वन्य प्राणियों को जीने में सहूलियत होगी, वहीं उन्हें शिकार मिलने में या चरने में दिक्कत भी हो सकती है। शोधकर्ताओं को लगता है कि चाहे ये जीव मनुष्य के साथ तालमेल बैठाने के लिए रात में सक्रिय रहने लगें किन्तुइसका मतलब नहीं है कि उनका जीवन भलीभांति चल रहा है । 

सबसे बड़ा उभयचर विलुिप्त् की कगार पर

एक नए अध्ययन के अनुसार विश्व के सबसे बड़े उभयचर - चीनी विशाल सेलेमैंडर को वास्तव में पांच प्रजातियों में बांटा जाना चाहिए । यानी  यह एक प्रजाति नहीं है बल्कि पांच प्रजातियां हैं । और पांचों प्रजातियां खतरे में हैं । 
और तो और, अध्ययन कर्ताओं का मानना है कि संरक्षण के वर्तमान तौर-तरीके  इन अलग-अलग प्रजातियों को एक-दूसरे के साथ प्रजनन करवा कर उन्हें प्रभावी रूप से एक ही प्रजाति में परिवर्तित कर रहे हैं । 

        एक समय में दक्षिण-पूर्वी चीन की नदियों में बहुतायत से पाए जाने वाले ये सेलेमैंडर २ मीटर तक लम्बे होते हैं । लेकिन आज लक्जरी व्यंजन के बढ़ती मांग के चलते इन्हें अधिकाधिक संख्या में व्यावसायिक फार्मों में पाला जा रहा  है। प्राकृतिक आबादी को बढ़ाने के लिए चीनी सरकार ने फार्म में पले इन सेलेमैंडर को नदियों में छोड़ने के लिए प्रोत्साहन दे रही है। लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या अब यह जीव आनुवंशिक रूप से कुदरती सेलेमैंडर के समान  है ।  

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