पत्र, एक पाठक का
प्लास्टिक थैलियों की तकलीफ
महोदय,
जबसे भारत में प्लास्टिक की थैलियाँ बनने लगी है, उसके कुछ साल बाद ही उनके उपयोग से होेने वाले खतरे समझ में आने लगे थे। तब से उन थैलियों के निर्माण, उपयोग पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। फलस्वरुप सब समस्याएँ यथावत मुँह बाएँ खड़ी हैं। सरकार को चाहिए कि कुछ ऐसे नियम या कानून बनाएँ जिससे इन प्लास्टिक की थैलियों के निर्माण, बिक्री और उपयोग को कम किया जा सके और धीरे-धीरे पूर्ण रुप से बंद किया जा सके। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं -
१. प्लास्टिक की थैलियाँ निर्माण करने वाली कंपनियों का निर्माण कोटा निर्धारित किया जाए। उससे अधिक निर्माण का दोषी पाया जाने पर उस कंपनी पर निर्माण की पाबंदी लगाई जाए और भारी जुर्माना भी वसूला जाए।
२. प्लास्टिक का गेज (मोटाई) निर्धारित किया जाए,उससे पतली थैलियाँ बनाने पर भी भारी जुर्माना और निर्माण पर पाबंदी लगाई जाए।
३. उन थैलियों का उपयोग वजन में हल्की वस्तुआें को लाने-ले जाने के लिए ही किया जाने हेतु नियम बनाए जाएँ। जैसे सब्जी, फल या वस्त्र आदि अन्य भारी सामान लाने-ले जाने के लिए प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग वर्जित किया जाए।
४. भारी सामान बेचने वाले व्यवसायियों के यहाँ प्लास्टिक की थैलियाँ पाई जाने पर उन पर भारी जुर्माना लगाते हुए उनके व्यवसाय को कुछ समय तक बंद रखने का दंड दिये जाने का प्रावधान किया जाये।
५. खरीददार उपभोक्ताआें को भी यह समझाईश दी जाए कि वे यथासंभव प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न करें।
६. जिसके घर के सामने, दुकान के सामने या अन्य स्थान के सामने या आसपास उपयोग में लाई गई या फेंकी गई थैलियाँ पड़ी हुई दिखे उस पर भी जुर्माना लगाया जाए।
७. कचरा पेटियों में पाई गई प्लास्टिक की थैलियों को यथासंभव अलग किया जाकर नष्ट करने की व्यवस्था की जाए। यदि ऐसे उपाय किए जाएँ तो कुछ हद तक प्लास्टिक की थैलियों से हो रही त्रासदी को रोका जा सकता है।
मनोहर धरफले,
१७३, साकेत नगर, इंदौर (म.प्र.)
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