पंजाब : कीटनाशकों के शिकार किसान
सेव्वी सौम्य मिश्रा
दो साल पहले पंजाब प्रदेश के मालवा अंचल के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा और इसकी वजह थी यहां कैंसर के मामलों में अत्यधिक वृद्धि । अध्ययन में कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग और इस बीमारी के बीच का अंतर्सम्बन्ध उजागर हुआ । यहां की स्थिति अब भी जस की तस है । `कपास' की पैदावार वाले मालवा अंचल में कीटनाशकों का बहुत ज्यादा उपयोग होता है । दशकों से कीटनाशकों का बेतहाशा उपयोग यहां कैंसर के मामलों में हो रही तेज वृद्धि का कारण है । २८ अगस्त ०७ को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार प्रांत की कुल कीटनाशक खपत का ७५ प्रतिशत अकेला मालवा अंचल उपयोग करता है और देश की कुल खपत का १७ प्रतिशत अकेला पंजाब उपयोग करता है । हालांकि २००५-०६ में पिछले वर्ष की अपेक्षा कीटनाशकों के उपयोग में लगभग १३ प्रतिशत की कमी आई थी किंतु इस वर्ष कीट हमले के मद्देनजर इसके उपयोग में व्यापक वृद्धि होने की संभावना है । राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी २००५ के आंकड़ों के मुताबिक १२ लाख की आबादी वाला भटिंडा जिला ७११ कैंसर मामलों के साथ राज्य में सबसे ऊपर है । ५९ प्रति लाख आबादी का यह औसत, राष्ट्रीय औसत ७० से नीचे है, किंतु स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताआे के अनुसार प्रस्तुत आंकड़ा वास्तविक आंकड़े से काफी कम है । भटिंडा, मुक्तसर, फरीदकोट और मन्सा जिलों में पिछले दस वर्षो में कैंसर से कुल २४७२ आधिकारिक मौतें हुई है । किंतु फरीदकोट के गैर सरकारी संगठन `खेती विरासत मिशन' के कार्यकारी निदेशक उमेन्द्र दत्त के मुताबिक यह आंकड़ा कम से कम दस हजार है । भटिंडा के ५०० मकानों वाले जज्जल गांव में गत दस वर्षो में सर्वाधिक ८५ कैंसर के मामले उजागर हुए । यहां कमोवेश हर गली में आपको कैंसर का कोई मरीज मिल जाएगा । गुजरांत सिंह प्रेमी, जिसके स्वयं के फेफड़े में एक छेद है के परिवार में कैंसर से आठ मौतें हो चुकी है । उन्हें गुर्दे की शिकायत भी है, इसके बावजूद वे अपनी कपास की फसल पर कीटनाशक छिड़कते है और उनकी पत्नी ने तो अब दूरी, कमजोरी और तेज दवाआें की वजह से अस्पताल भी जाना छोड़ दिया है । दर्द बढ़ने पर अब वे दर्दनाशक दवाएं लेकर काम चला लेते हैं । डॉक्टरों के अनुसार एलर्जी, अस्थमा और जोड़ों के दर्द के मामले आम हैं । बच्च्ेदानी के कैंसर के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं । कई मामलों में विकलांग बच्चे का जन्म या जन्म के बाद विकलांगता भी दिखाई दी है । जज्जल का १४ वर्षीय जगदेवसिंह जो तीन साल पहले एक सामान्य बच्च था । स्नायुतंत्र की समस्या के चलते आज व्हील चेयर पर है । वहीं गुरूदर्शन सिंह को बांई आंख की रोशनी चली जाने की वजह से स्कूल छोड़न पड़ा, बाद में उसकी दाई आंख की रोशनी भी चली गई । डॉक्टरों ने उसके रेटिना में छेद होना पाया है । नाड़ी विशेषज्ञों का मत है कि नाड़ी विकार, गर्भपात, दिमागी बीमारी, बांझपन व समयपूर्व वृद्धावस्था को भी इसमें सम्मिलित किया जाना चाहिए । राज्य प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट भी कीटनाशकों और पानी के प्रदूषण के खतरों का अनुमोदन करती है । इस मामले में वह सीएसई और पीजीआईएमइआर चंडीगढ़ द्वारा २००५ में मालवा में कराए गए अध्ययनों का हवाला देती है । सीएसई द्वारा २००५ में ये मामला उठाए जाने के परिणाम स्वरूप पंजाब सरकार ने दो समितियां गठित की, जिनमें से एक के अध्यक्ष मुख्यमंत्री स्वयं थे, उस समिति की आज तक कोई बैठक नहीं हुई है । पीजीआईएमइआर के अध्ययन ने साबित किया था कि भटिंडा के तलवंडी ब्लॉक में नलों और जमीन के अंदर के दोनों ही तरह के पानी में हेप्लाक्लोर की मात्रा मानक सीमा से अधिक थी । हेप्टाक्लोर एक ऐसा कीटनाशक है जो वातावरण में घुल जाता है और खाद्य श्रृंखला में भी जगह बना लेता है । स्टॉक होम कन्वेंशन ऑन पर्सिस्टंट ऑर्गेनिक पॉल्युटेंट्स की अनुशंसा के आधार पर इसका प्रयोग प्रतिबंधित है । तलवडी साहब और रूपनगर के चमकीर साहिब ब्लॉक के कैंसर के मरीजों के खून के नमूनों में हेप्टाक्लोर के अलावा एल्ड्रीन और एण्डोसल्फॉन जैसे कीटनाशकों की मौजूदगी पाई गई थी । एल्ड्रीन से स्नायुतंत्र प्रभावित होता है । पीजीआईएमईआर ने कीटनाशकों के प्रभावों को कम करने के बारे में अनुशंसाए की थीं किंतु उन पर अमल सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया । राज्य की स्वास्थ्य सेवाआे के निदेशक सुखदेव सिंह से जब इसकी बात करनी चाही तो उन्होंने पंजाबी के अलावा और कोई भाषा न आने का बहाना कर बात करने से मना कर दिया । कमान सम्हाली राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम में प्रोजेक्ट ऑफिसर नवनीत कंवर ने । जवाब चिरपरिचित था । हमने कई स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए हैं । वास्तव में यह दो साल पुरानी बात है । मालवा में सरकार के स्वास्थ्य सेवकों की भर्ती के दावे भी स्थानीय लोग अस्वीकार करते हैं । तत्कालीन मुख्यमंत्री केप्टन अमरिंदर द्वारा प्रभावितों को मुआवजे की घोषणा भी नाकारा सिद्ध हुई है ।
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