शनिवार, 15 दिसंबर 2007

प्रसंगवश

क्या इन्सान को अंतरिक्ष में भेजना ज़रूरी है ?
कई अंतरिक्ष वैज्ञानिक यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या मानव को अंतरिक्ष में भेजकर हम कोई ऐसा ज्ञान प्राप्त् कर पाते हैं तो मानवरहित अभियानों से प्राप्त् नहीं किया जा सकता। अंतरिक्ष वैज्ञानिक फिलिप बॉल को लगता है कि मानवरहित अंतरिक्ष अभियानों से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती जो तत्काल जरूरी हो या जिससे विज्ञान छलांग लगाने लगे । खासकर यह बात तब ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है जब मानवरहित अंतरिक्ष अभियान के सस्ते विकल्प मौजूद हैं । जैसे हाल ही में युरोपियन स्पेस एजेंसी का फोटॉन-३ मिशन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस अभियान की खास बात यह थी कि युरोप के करीब ४५० छात्रों ने इसमें भाग लिया और कई महत्वपूर्ण प्रयोग किए गए । जैसे, इस अभियान के दौरान यह समझने के प्रयास किए गए कि अंतरिक्ष से बैक्टीरियानुमा जीव के पृथ्वी पर पहुंचने की कितनी संभावना है । वैसे इनमें से कोई भी प्रयोग ऐसा नहीं था जिससे विज्ञान में किसी नाटकीय प्रगति की अपेक्षा की जाए मगर मानवसहित अभियानों में भी तो यही स्थिति होती है । मानवसहित अंतरिक्ष अभियान कम से कम दस गुना महंगे होने के अलावा खतरों से भरे भी होते हैं । अंतत: अधिकांश वैज्ञानिक शोध धीमे-धीमे क्रमश: ही होता है और छात्रों का जुड़ाव फोटॉन-३ मिशन का अतिरिक्त लाभ था । फोटॉन-३ मिशन पूरी तरह यंत्रचालित था । अत: यह सवाल उठ रहा है कि जब यह संभव है तो मानव मिशन भेजे ही क्यों जाएं । जैसे यदि यह देखना है कि शून्य गुरूत्व की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों की हडि्डयों की वृद्धि पर क्या असर पड़ता है, तो पहली बात तो यह है कि आप यह क्यों देखना चाहते हैं ? बताया जाता है कि इससे भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को बेहतर तैयारी के साथ भेजा जा सकेगा । मगर यदि रोबोट्स वही काम कर देते हैं तो इन्सानों को वहां भेजना ही नहीं पड़ेगा । दूसरी बात यह है कि ऐसे ही अध्ययन जंतुआे के ऊतकों की मदद से भी किए जा सकते है । फोटॉन-३ मिशन में ऐसा एक प्रयोग किया भी गया है । दूसरी ओर, रॉयल एस्ट्रॉनॉमिकल सोसायटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मानव अभियान बहुत जरूरी हैं क्योंकि इनसे हमें चिकित्सा संबंधी विशिष्ट जानकारी मिलती है । वैसे सोसायटी ने स्पष्ट नहीं किया है कि यह `विशिष्ट' जानकारी क्या है । लगता है मानवसहित अंतरिक्ष अभियानों का ग्मैलर ही उनकी शक्ति है ।

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