शनिवार, 15 दिसंबर 2007

संपादकीय

एक लाख करोड़ खर्च के बाद भी सिंचित क्षेत्र में कमी
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार सन् १९९१-९२ से २००३-०४ तक नहरों से शुद्ध सिंचित इलाकों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई हैं । जबकि इस अवधि में देश ने नहर आधारित सिंचित इलाकों में बढ़ोत्तरी के उद्देश्य से बड़ी व मध्यम सिंचाई परियोजनाआे में रूपये ९९६१० करोड़ व्यय किये हैं । इस पूरे व्यय से पिछले १२ सालों में देश के बड़े बांधों की नहरों द्वारा शुद्ध सिंचित इलाके में एक भी एकड़ की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है । यह बहुत गंभीर चिंता का कारण होना चाहिए । सन् १९९१-९२ में पूरे देश में नहर द्वारा शुद्ध सिंचित इलाका १७७.९ लाख हेक्टेयर था । उसके बाद २००३-०४ तक जिसके आंकड़े मौजूद हैं के सभी सालों में नहरों द्वारा शुद्ध सिंचित इलाका १७७.९ लाख हेक्टेयर से कम रहा है यानि वह लगातार कम हो रहा है । जल संसाधन मंत्रालय ने ११वीं योजना में प्रस्ताव किया है कि बड़ी एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाआे के लिए १६५९०० करोड़ रूपयों का आवंटन किया जाये । अब तक उपलब्ध तथ्य दिखाते हैं कि इससे सार्वजनिक धन की पूरी तरह बर्बादी ही होगी । सिंचित क्षेत्र में कमी के अनेक कारण है । विश्व बैंक की २००५ की रिपोर्ट `इंडियाज वाटर इकॉनामी : ब्रैसिंग फॉर ए ट्रबूलेंट फ्यूचर' यह दिखाती है कि भारत के सिंचाई ढांचों के रख-रखाव के लिए सालाना वित्तीय आवश्यकता १७००० करोड़ रूपयों की है लेकिन इस हेतु आवश्यकता से १० प्रतिशत से भी कम राशि उपलब्ध होती है एवं इनमें से ज्यादातर ढांचो के भौतिक रख-रखाव में इस्तेमाल नहीं होती है । इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि देश में प्रति वर्ष बड़ी सिंचाई परियोजनाआे पर व्यय होने वाले हजारों करोड़ की राशि से कोई अतिरिक्त सिंचित इलाका विकसित नहीं हो रहा है । सिंचित इलाके में वास्तविक बढ़ोत्तरी पूरी तरह भू-जल सिंचाई से हो रही है । वास्तव में ९९६१० करोड़ रू. के अफलदायी निवेश द्वारा सिंचाई में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होना पिछले दशक में भारत की घटती कृषि विकास दर का प्रमुख कारण है । बताया जा रहा है कि त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (ए.आई.बी.पी.) में अप्रैल १९९६ से मार्च २००४ तक व्यय किये गये १४६६९ करोड़ रू. से कोई अतिरिक्त सिंचित इलाका नहीं जुड़ा है । इस तरह जल संसाधन मंत्रालय का यह दावा कि उपरोक्त अवधि में ए.आई.बी.पी. से २६.६० लाख हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचित इलाका जुड़ा है सही नहीं है । इससे जवाबदेही के कई मुद्दे उठते हैं एवं इसके लिए जल संसाधन मंत्रालय, योजना आयोग एवं राज्यों में जो जिम्मेदार अधिकारी हैं उनको ढेर सारे सवालों का जवाब जनता को देना होगा ।

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