शनिवार, 15 दिसंबर 2007

६ पर्यावरण परिक्रमा

मौसम परिवर्तन से गेहँू का उत्पादन घटा
मौसम परिवर्तन पर अंतरशासकीय पैनल के अध्यक्ष राजेन्द्रकुमार पचौरी के अनुसार पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के कारण गेहँू के उत्पादन में गिरावट आई है । इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले पर्यावरणविद् ने हिमालय के ग्लेशियर पिघलने पर भी चिंता जताई है । श्री पचौरी ने कहा - आधी सदी के दौरान तापमान में असाधारण बढ़ोत्तरी हुई है । हाल के वर्षो में इसने और गति पकड़ी है । स्पष्ट ही यह हमारे लिए बड़ी चिंता का विषय है । भारत में भी तापमान वृद्धि के प्रभाव दिखाई देने लगे हैं । तापमान में ०.६८ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज हुई है । मानसून के बाद और शीतकाल में इसे स्पष्ट महसूस किया जा रहा है । इसका कृषि पर गंभीर प्रभाव पड़ा है । खासकर गेहँू का उतपादन घटा है । श्री पचौरी ने कहा कि हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं । इससे देश के उत्तरी भागों में जलसंकट का खतरा मंडरा रहा है । हमारी अधिकांश नदियों का उद्गम इन ग्लेशियरों से ही होता है । समुद्र के जल स्तर में भी तेजी से वृद्धि हो रही है । बीसवीं सदी में इसमें १७ सेमी का इजाफा हुआ । इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि २१वीं सदी में जलस्तर १८ से ५९ सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा । अगर यही क्रम जारी रहा तो आने वाले वर्षो में मारीशस और बांग्लादेश जैसे मुल्कों के अस्तित्व को खतरा है । श्री पचौरी के अनुसार आगामी वर्षो में पृथ्वी का तापमान १.८ से ४ डिग्री सेल्सियम तक बढ़ेगा । यह हमारे हाथों से उत्पन्न एक गंभीर समस्या होगी । इसके लिए हमें ग्रीनहाऊस गैसों पर लगाम कसनी होगी । २०१५ तक अगर दुनिया ने कार्बन के प्रदूषण पर रोक नहीं लगाई तो तापमान में भारी वृद्धि का अंदेशा है ।
दिल्ली में हवा की सेहत हुई खराब
राजधानी की फिजा में पिछले दो सालों में तेजी से बदलाव आया है । यहाँ हवा में खतरनाक गैसों की मात्रा दो साल में काफी बढ़ गई है । हवा की सेहत बिगड़ने से दिल्ली के रहवासियों में श्वसन संबंधी बीमारियाँ भी तेजी से फैलनेलगी हैं । यह कहना है कि एक प्रमुख पर्यावरण रिसर्च ग्रुप का । सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायरर्नमेंट (सीएसई) ने दिल्ली की हवा में घातक गैसों की बढ़ती मात्रा पर चिंता जाहिर करते हुए सरकार को कहा है कि वह वाहन प्रदूषण रोकने के उपाय जल्द से जल्द करे । इसके लिए नई ट्रांसपोर्टेशन पॉलिसी तैयार करे और उसे सख्ती से अमल में लाए । दिल्ली में प्रदूषण का स्तर वर्ष २००१ में कम होने लगा था, जब सरकार ने सभी पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन वाहनों के लिए आदेश जारी कर उन्हें कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) का इस्तेमाल करने को कहा । लेकिन रिचर्स ग्रुप का कहना कुछ और ही है । ग्रुप की रिसर्च कहती है कि शहर की हवा तेजी से और भी प्रदूषित हो रही है । भारत की अर्थव्यवस्था में जिस तेजी से उछाल आ रहा है उसी तेजी से शहरों में कारों व अन्य वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है । दिल्ली में हर दिन औसतन ९६३ नए निजी वाहन रजिस्टर्ड हो रहे हैं । इस आँकड़े में तब और उछाल आएगा जब बाजार में सस्ती कारें आ जाएँगी । सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि हमें प्रदूषण रोकने के उपाय जल्दी और सख्ती से करना होंगे वरना दिल्ली की हवा साँस लेने लायक नहीं रह जाएगी । पर्यावरण रिसर्च ग्रुप का कहना है कि प्रदूषण का स्तर बढ़ने का सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ेगा । माइक्रोस्कोपिक डस्ट फेफड़ों में पहुँचकर नई-नई बीमारियों को जन्म देंगी । अस्थमा, फेफड़ों संबंधी रोग, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस और हृदय संबंधी बीमारियाँ तो हो ही रही हैं प्रदूषण के कारण कैंसर भी हो सकता है ।
यूका का जहरीला कचरा गुजरात नहीं लेगा
गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व गुजरात वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा जारी पत्रों केमुताबिक गुजरात सरकार ने स्पष्ट तौर पर भोपाल के यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को अंकलेश्वर के इन्सिनरेटर में निष्पादन के लिए अनुमति देने से मना कर दिया है । गुजरात सरकार द्वारा भोपाल के कचरे को लेने से मना करना इस बात को रेखांकित करता है कि यूनियन कार्बाइड के कचरे का भारत में सुरक्षित निष्पादन संभव नहीं है । भोपाल के पर्यावरण संगठनों की मांग है कि सरकार डाव केमिकल को बाध्य करे कि वह भोपाल के पानी-मिट्टी में घुले जहर को साफ करे और जहरीले कचरे के सुरक्षित निष्पादन के लिए उसे अमेरिका ले जाए । संगठनों ने बताया कि सन् २००३ में तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यूनीलीवर कंपनी को अपने कोडायकनाल के थर्मामीटर के कारखाने में पारायुक्त कचरे को अमेरिका ले जाने के लिए बाध्य किया था । संगठनों ने म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और यूनियन कार्बाइड के बीच हुए पत्राचार की प्रतियाँ पेश करते हुए यह बताया कि सन् १९९१ में म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्वयं कार्बाइड के जहरीले कचरे को विदेश भेजने की अनुशंसा की थी ।
छोटी नाक पकड़ेगी जहरीले रसायन
जहरीले पदार्थ और अवयव को आसानी से तलाश लेगी एक छोटी-सी नाक । इसे अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने इलेक्ट्रानिक तरीके से तैयार किया है, इसलिए इसे `इलेक्ट्रॉनिक नाक' कहा गया है । कार्बन मोनोऑक्साइड हो या घातक इंडिस्ट्रयल सॉल्वेंट या विस्फोटक हो, सभी को यह नाक सूँघ निकालेगी । हैरी टूलर नाम के अनुसंधानकर्ता ने इसे तैयार किया है । इसमें नई इंकजेट प्रिंटिंग तकनीकी इस्तेमाल की गई है । यह महीन सेंसर फिल्म माइक्रोचिप में प्रिंट करता है। इसी प्रक्रिया से अति संवेदनशील हुआ जा सकता है । यह गैस सेसिंग टेक्नोलॉजी है । यहाँ के प्रोफेसर टुलर ने अपनी यह शोध अलबर्टा की कॉन्फ्रेंस में पेश की । सेंसर में प्रोटोटाइप में सेरामिक सामग्री बेरियम कार्बोनेट की पतली परतें थी, जो गैस और गंध की पहचान कर सकती है । श्री टुलर कहते हैं कि यह नाक रासायनिक पर्यावरण को भाँपने में बेहद कारगर है । ऐसा नहीं है कि यह केवल जहरीले अवयव को ही पकड़ेगा, वरन यह आसानी से परफ्यूम और अन्य गंध में भेद कर सकता है । ठीक उसी तरह से जैसे हम कॉफी और मच्छली की गंध में अंतर करते हैं ।
पशु-पक्षियों के लिए आश्रम
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के निकट बीमार और अशक्त पशु-पक्षियों की देखभाल तथा इलाज के लिए एक आश्रम तैयार किया जा रहा है । भोपाल की एक गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्था `युवक कौमी एकता कमेटी' वृद्धाश्रम की तर्ज पर पुण्यधाम के नाम से एक आश्रम तैयार कर रही है जहाँ आवारा और बीमार पशु-पक्षियों को रखा जाएगा। इनकी देखरेख पशु विशेषज्ञों की निगरानी में की जाएगी । संस्था के अध्यक्ष अश्विनी श्रीवास्तव ने यह जानकारी दी । उन्होंने बताया कि भोपाल के समीप परवलिया क्षेत्र में लगभग पाँच एकड़ जमीन पर पशुआें के लिए तैयार किए जा रहे इस पुण्यधाम आश्रम में पाँच सौ पशु-पक्षियों के रखने की व्यवस्था की जाएगी। जनभागीदारी से निर्मित किए जा रहे इस आश्रम पर लगभग पाँच लाख रूपए का व्यय आएगा । श्री श्रीवास्तव ने बताया कि आमतौर पर शौक एवं देखादेखी में लोग पशु-पक्षी पाल लेते हैं लेकिन जब वे बीमार या अशक्त हो जाते हैं तो उन्हें सड़कों पर छोड़ दिया जाता है । ऐसी स्थिति में यह पशु या तो दुर्घटना में अथवा बीमारी के कारण सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं । संस्थान द्वारा कराए गए एक शोध में पाया गया कि बीमार और अशक्त पशुआे को लावारिस हालत में सड़कों पर छोड़ देने के कारण वातावरण दूषित होता है और इससे बीमारियाँ फैलती है । ऐसे बीमार एवं अशक्त पशुआे को सड़कों पर छोड़ देने से दुर्घटनाआे का खतरा भी बना रहता है । कभी-कभी ऐसी दुर्घटनाआे में पशुआे की भी मौत हो जाती है । श्रीश्रीवास्तव ने बताया कि संस्था द्वारा स्थापित किए जा रहे इस पुण्यधाम में इलेक्ट्रिक शवदाह की भी व्यवस्था रहेगी जहाँ पशुआे की स्वाभाविक मृत्यु होने पर उन्हें तत्काल जलाया जाएगा। इस व्यवस्था से पशुआे की मृत्यु पर वातावरण को दूषित होने से बचाया जा सकेगा ।
मिट्टी की घटती गुणवत्ता गरीब देशों के सामने बड़ी चुनौती
भूमि के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण मिट्टी की लगातार घटती गुणवत्ता पूरी दुनिया खास तौर पर गरीब देशों के सामने बड़ी चुनौती बनती जा रही है । चौथी ग्लोबल इन्वायरमेंट आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार १९८१ के बाद से एकत्र उपग्रहीय आंकड़ों का इस्तेमाल करने से हाल ही में पता चला है कि अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण चीन, दक्षिण पूर्व ब्राजील और पेम्पास में मिट्टी की गुणवत्ता में क्षरण चिंता का सबसे बड़ा कारण है । रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में आबादी में बढ़ोत्तरी, आर्थिक विकास और शहरीकरण के कारण भोजन, जल, ऊर्जा और कच्च्े माल की मांग बढ़ती जायेगी । इसके कारण भूमि संसाधनों की मांग और उनको खतरा भी बढ़ने की आशंका है । रासायनिक प्रदूषण के कारण भी भूमि की गुणवत्ता दिनोदिन खराब होती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार यूरोप में पुराने औद्योगिक क्षेत्रों में रासायनिक तत्वों से दूषित हुई मिट्टी आम बात है । एक अनुसार के मुताबिक वहां ऐसे २० लाख क्षेत्र हैं, जिनमें से एक लाख को तुरंत उपचार की जरूरत है । भूमि अपरदन और पोषक तत्वों का क्षरण भी कृषि योग्य भूमि के लिए बड़ा खतरा है । भूमि अपरदन के कारण उत्पादन कम हो जाता है और उस स्थान में हटी मिट्टी में जहा जमा होती है, वहां भी मिट्टी हटाने पर काफी व्यय होता है । इसके अलावा मिट्टी के जमाव के कारण कई स्थानों पर जल निकाय भी इस्तेमाल लायक नहीं रह जाते है ।

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