शनिवार, 12 जनवरी 2008

९ ज्ञान विज्ञान

सूर्य से सीधे रिचार्ज होंगे सैटेलाइट

ऊर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत सूर्य से धरती के लिए बिजली पैदा करने की योजना पर वैज्ञानिकों ने काम शुरू कर दिया है । इसके लिए बाकायदा एक अध्ययन कर लिया गया है, जिसमेंबताया गया है कि सैटेलाइट सिस्टम के माध्मय से सौर ऊर्जा से बिजली बनाकर सीधे धरती पर भेजी जा सकेगी । अरबोंडॉलर की इस महत्वाकांक्षी योजना से बिजली की कमी से निपटा जा सकेगा । साथ ही अंतरिक्ष में मौजूदा सैटेलाइटों की विद्युत आपूर्ति भी सुचारू हो सकेगी । वैज्ञानिकों द्वारा इस संबंध में किए गए अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिकी सेना जब अन्य देशों में जाकर युद्ध लड़ेगी तब वहाँ आने वाली बिजली की परेशानी से निपटने में सेना को इस माध्यम से मदद मिलेगी । इस ७५ पेज की रिपोर्ट में सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने वाली योजना को आर्थिक विकास में मददगार बताया गया है । वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आर्बिट में इस तकनीक का प्रयोग वर्ष २०१२ तक किया जा सकेगा। वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक इस तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए अंतरिक्ष में पेंटागन आकार के सोलर पैन लगाना होंगे, जो सैटेलाइट के माध्यम से सूर्य की किरणों को सीधे बिजली बनाकर धरती पर लगे रिसीवर में भेज सकेंगे ।

रसोई के कचरे से घर में बनाएँ बायोगैस

केले का छिलका, सब्जियों का कचरा और किचन से निकलने वाली ऐसी ही अन्य चीजों को डस्टबिन में फेंकने से पहले अब दो बार सोच लें, क्योंकि यही वेस्ट आपके लिए बायोगैस तैयार करने का काम कर सकता है । पुणे स्थित उत्कृष्ट ग्रामीण तकनीकी संस्थान (एआरटीआई) के निदेशक आनंद करवे कहते हैं कि रसोईघरों से निकलने वाले सब्जियों आदि के कचरे से घर में ही बायोगैस तैयार करने का मिनी प्लांट लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा है । इससे अपने जरूरत के अनुसार बायोगैस तैयार की जा सकती है । इस छोटे से प्लांट के लिए एक हजार घन लीटर के दो प्लास्टिक टैंक की जरूरत है, जिनमें किचन से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थोंा को डाला जा सके । वे कहते हैं कि घरेलू पदार्थों से तैयार होने वाली बायोगैस मुख्यत: मीथेन और कार्बन डाइ ऑक्साइड का मिश्रण होती है और इसे सीधे इंर्धन के रूप में उपयोग किया जा सकता है । श्री करवे और उनके साथ ४० लोगों की टीम ने अब तक देशभर में तीन हजार और देश के बाहर दो हजार प्लांट लगा दिए हैं । पुणे की कई होटलों और रेस्टोरेंट में यह सिस्टम लगाने के बाद एलपीजी की खपत काफी कम हो गई है। श्री करवे कहते हैं कि सिस्टम को लगवाने में ज्यादा खर्चा भी नही आता है । मात्र छह हजार रूपये में इसे घर में लगवाया जा सकता है । श्री करवे कहते हैं कि कॉम्पेक्ट बायोगैस प्लांट तकनीक को विकसित करने में उन्हें तीन साल का समय लगा और यह पूरी तरह किचन वेस्ट पर आधारित है। रसोई से निकलने वाला कचरा गाय के गोबर से भी अच्छा मीथेन का स्त्रोत है । वे कहते हैं कि एक किलोग्राम किचन वेस्ट २४ घंटे में जितनी बायोगैस तैयार करता है उतनी ही गैस ४० किलो गोबर से तैयार होने में ४० दिनों का समय लगता है । गोबर की अपेक्षा किचन वेस्ट की क्षमता ४०० गुना ज्यादा है । श्री करवे कहते हैं कि यह छोटा सा बायोगैस संयंत्र होटलों और रेस्टोरेंट के लिए फायदे का सौदा है, क्योंकि होटलों में किचन वेस्ट सबसे ज्यादा निकलता है। इससे रेस्टोरेंट के कचरे को प्राकृतिक तरीके से नष्ट भी किया जा सकेगा और उससे बनने वाली बायोगैस का उपयोग पुन: रेस्टोरेंट में किया जा सकेगा ।
कम्प्यूटर बता देगा दवाइयों के साइड इफेक्ट

दवाइयों के साइड इफेक्ट्स का पता अब मनुष्यों पर उनके प्रयोग से पहले ही लगा लिया जाएगा । कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसा कम्प्यूटर आधारित सिस्टम तैयार किया है जो मनुष्यों पर दवाइयों के साइड इफेक्ट्स की जानकारी देगा । इससे फायदा यह होगा कि साइड इफेक्ट्स का पहले से पता लग जाने का कारण उनके फार्मूले में आवश्यक फेरबदल करना आसान हो जाएगा । यूनिवर्सिटी की टीम के प्रमुख और फार्मेकोलॉजी के प्रोफेसर फिलिप बोर्न और सेन डिएगो बोर्न और सेन डिएगो सुपर कम्प्यूटर सेंटर के ली जेई द्वारा तैयार किया गया कम्प्यूटर मॉडल किसी भी दवाई में शामिल सभी तत्वों के मॉलीक्यूल का अलग-अलग परीक्षण करता है । कम्प्यूटर सभी के त्रिआयामी हजारों स्ट्रक्चर बनाता है और उन्हें मनुष्यों के शरीर में मौजूद प्रोटीन वगैरह से क्रिया करके देखता है कि किस तत्व का शरीर के किस भाग पर नकारात्मक असर हो सकता है । ये सभी तत्वों की अलग-अलग रिपोर्ट तैयार करता है जिसका परीक्षण करके वैज्ञानिक साइड इफेक्ट्स का पता लगा सकते हैं । किसी भी नई दवाई का प्रयोग पहले चूहों या बंदरों पर करके देखा जाता है । जानवरों पर प्रयोग के बाद इन्हें मनुष्यों पर आजमाकर देखा जाता है। इसके बाद यदि कोई साइड इफेक्ट सामने आता है तब उसके फार्मूले में बदलाव किया जाता है । लेकिन अब जानवरों और मनुष्यों पर दवाई का प्रयोग करने से पहले उसे कम्प्यूटर परीक्षण से गुजरना होगा। सेन डिएगो स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया वह कम्प्यूटर किसी नई दवाई से होने वाले हर तरह के साइड इफेक्ट के बारे में जानकारी देता है । इस परीक्षण में टेमोक्सीफेन को भी शामिल किया जा रहा है । इस दवाई का उपयोग ब्रेस्ट कैंसर के अधिकांश मामलों में किया जाता है ।
तलाक से पर्यावरण प्रभावित होता है

तलाक न सिर्फ घर को तोड़ता है बल्कि इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचता है । दुनियाभर के देशोंमें तलाक का आँकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है और हर बार जब किसी परिवार में तलाक होता है तो एक घर के दो घर हो जाते हैं। यही बात पर्यावरण के लिए खतरा बनती जा रही है । मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी में पर्यावरण पर तलाक के दुष्प्रभावों का अध्ययन कर रहे पारिस्थितिकी विशेषज्ञ जिआंगुओ लियू कहते हैं कि शादीशुदा व्यक्तियों की अपेक्षा तलाकशुदा व्यक्ति चाहे वह महिला हो या पुरूष संसाधनों का उपयोग उतनी दक्षता से नहीं कर पाते है। वे कहते हैं कि जब किसी दंपति में तलाक होता है तो महिला-पुरूष अलग हो जाते हैं और एक घर दो घरों में बदल जाता हैं। दोनों घरों में फिर अलग-अलग चीजों की जरूरत पड़ती है । इलेक्ट्रॉनिक से लेकर हर तरह के संसाधन दो हो जाते हैं। इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है । लियू कहते हैं कि घर के सदस्यों की संख्या पर भी पर्यावरण की स्थिति निर्भर करती है । घर में यदि कम सदस्य है तो वे संसाधनों का उपयोग ज्यादा अच्छी तरह से नहीं कर पाते जबकि ज्यादा लोग उसी संसाधन में ठीक तरह से गुजारा कर सकते हैं । किसी घर में यदि कम सदस्य हैं तब भी उन्हें रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशन की जरूरत है, जबकि ज्यादा लोगों की जरूरतें भी उतनी ही क्षमता के रेफ्रिजरेटर और एयरकंडीशन में पूरी हो सकती हैं । इकोलॉजी और सोशल साइंस के बीच संबंधों पर रिसर्च कर रहे लियू कहते हैं कि उनकी खोज का पहली बार में तो लोग गलत मतलब निकाल लेते हैं, लेकिन बाद में सब समझ जाते हैं । वे उदाहरण देते हैं कि अमेरिका में वर्ष २००५ में एक करोड़ ६५ लाख घर तलाक के कारण टूट गए जबकि ६ करोड़ से ज्यादा लोग शादी के संबंध में बँधे । तलाकशुदा हर व्यक्ति ने हर महीने शादीशुदा व्यक्ति की अपेक्षा काफी ज्यादा बिजली, पानी खर्च किया । जब दो व्यक्ति घर में होते हैं तो वे टीवी, रेडियो, स्टोव से लेकर बिजली तक एक ही उपयोग करते हैं, लेकिन दो घर अलग हो जाने पर वहीं चीजें दोगुनी हो जाती हैं। उपरोक्त आँकड़ों के आधार पर देखें तो वर्ष २००५ में ६.९ बिलियन डॉलर हर साल अतिरक्ति संसाधनों पर खर्च हुआ और केवलपानी पर ही ३.६ बिलियन डॉलर अतिरिक्त खर्च हो गया । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि तलाक के कारण पर्यावरण किस हद तक प्रभावित हो रहा है । ***

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