शनिवार, 12 जनवरी 2008

प्रसंगवश

नदी को राष्ट्रीय संपत्ति क्यों नहीं माना जाता?
पिछले दिनोंकेंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज ने यह सुझाव दिया कि देश की प्रमुख नदियों को राष्ट्रीय नदियाँ और राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर केंद्रीय शासन के क्षेत्राधिकार में शामिल किया जाना चाहिए । केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री ने ऐसी बारह नदियों को `राष्ट्रीय' घोषित करने का सुझाव दिया है । ये नदियाँ हिमालय व काराकोरम, विंध्य, सतपुड़ा, छोटा नागपुर, सह्यादि व पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखलाआे से निकलती हैं और अरब सागर व बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं । गंगा, सिंधु, नर्मदा, कावेरी, महानदी, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, ताप्ती, दामोदर, यमुना, सतलज, चंबल, झेलम आदि नाम अत्यंत श्रृद्धा एवं प्रेम से लिए जाते हैं । देश में १३५०० किलोमीटर लंबी नदियों की अनेक सहायक नदियाँ और शाखाएँ भी हैं । नदियाँ प्रकृति की देन हैं और मानव जाति के विकास, समृद्धि एवं कल्याण की आधार हैं । नदियाँ मानव-सभ्यता के विकास का स्त्रोत रही हैं । उनसे जो जल प्राप्त् होता है, वह पीने के पानी के अलावा मानवीय स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, व्यवसाय, परिवहन, निर्माण कार्य, सफाई और बिजली उत्पादन के लिए भी काम आता है । सिंचाई और विद्युत के लिए इतनी खास जरूरत है । मगर इन नदियों पर किसी खास स्थान, क्षेत्र, राज्य का आधिपत्य स्वीकार कर हम दूसरे राज्य के लोगों को नदी के कारण मिलने वाले लाभों से वंचित कर देते हैं । भारतीय संविधान में `जल' को राज्यों के क्षेत्राधिकार वाली सूची में रखा गया है। इसलिए नदी के जल को लेकर अनेक मौकों पर विभिन्न राज्यों में परस्पर विवाद चलते रहते हैं । कम से कम उन नदियों को जो एक से अधिक राज्यों के क्षेत्र में बहती है, राष्ट्रीय नदी घोषित करना चाहिए और अंतरराज्यीय विवादों से मुक्त कर देना चाहिए । भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की ५६वीं प्रविष्टि में केन्द्र को अधिकार दिया गया है कि वह अंतरराज्यीय नदी विवादों का निराकरण कर सकता है । मगर नदी का उद्गम, प्रवाह क्षेत्र और निस्तार अलग-अलग राज्यों में हो और प्रत्येक राज्य उसके जल पर अपना दावा करें और क्षेत्रीय तत्व अपना प्रभुत्व दिखलाना चाहे तो विकास का सिलसिला धीमा होना स्वाभाविक है । आखिर नदी तो प्रकृति की देन है और जल का निर्माण मनुष्य या राज्य नहीं करता है । जैसे देश की धरती पूरे देश की है, वैसे नदी भी पूरे देश की है, यह मानने में किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए ? नदी किसी एक स्थान या क्षेत्र की नहीं हो सकती है ।इस भावना से नदी विवादों को सुलझाया जाना चाहिये । ***

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