गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

९ ज्ञान विज्ञान

क्या संदिग्ध आतंकवादी जीव विज्ञान न पढ़ें ?




एक ब्रिटिश जज ने फैसला दिया है कि एक संदिग्ध आतंकवादी रसायन और मानव जीव विज्ञान विषयों के हाई स्कूल स्तर के कोर्स नहीं पढ़ सकता । हाईकोर्ट के जज स्टीफन सिल्बर का मत है कि ये पाठ्यक्रम संदिग्ध आतंकवादी को ऐसी क्षमता प्रदान करेंगें कि वह जैविक व रासायनिक हमले कर सकेगा । नाम गुप्त् रखने के लिए उक्त व्यक्ति को ए.ई. नाम दिया गया है । अलबत्ता वैज्ञानिकों को यकीन है कि मानव जीव विज्ञान में हाई स्कूल स्तर का कोर्स शायद ही किसी आतंकवादी को हुनर के रूप में कुछ दे पाएगा । उन्हें नहीं लगता कि यह कोई वास्तविक खतरा है । वैज्ञानिकों को लगता है कि जज का निर्णय इस गलतफहमी पर आधारित है कि हाई स्कूल का रसायन शास्त्र पढ़कर कोई व्यक्ति रासायनिक हथियार बना लेगा । वैसे आजकल इस कोर्स की सारी सामग्री इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध होती है । ए.ई. एक इराकी नागरिक है और उस पर अल कायदा से सम्बंध रखने का संदेह है । २००६ में उसे `नियंत्रण आदेश' के तहत रखा गया है अर्थात उसकी स्वतंत्रता पर कुछ रोक लगाई गई है । कोई भी कोर्स करने से पहले उसे गृह विभाग से अनुमति लेनी होती है । सितम्बर २००७ में उसने हाई स्कूल स्तर के रसायन शास्त्र और मानव जीव विज्ञान के कोर्सोंा में दाखिला लेने की अनुमति चाही । इराक में ए.ई. डॉक्टर के तौर पर ट्रेनिंग ले रहा था और ये कोसई उसकी डॉक्टरी पढ़ाई के लिए जरूरी है गृह विभाग ने उसकी प्रार्थना यह कहकर अस्वीकार कर दी थी कि इस कोर्स की पढ़ाई को आतंकी गतिविधियों में लिए उपयोग किया जा सकता है । ए.ई. ने अदालत के दरवाजे पर दस्तक दी है । उसका दावा है कि ये कोर्स पूरी तरह से हानिरहित है । २१ जुलाई को अदालत ने अपने आदेश में गृह विभाग के दावे को सही ठहराया । अदालत ने यह फैसला एक अज्ञात सुरक्षा अधिकारी (जिसका नाम ु बताया गया है) की गवाही के आधार पर दिया है । न्यायमूर्ति सिल्बर ने कहा है कि इस कोर्स से ए.ई. को ऐसे हुनर प्राप्त् होंगें और ऐसे उपकरणों का उपयोग करने की क्षमता हासिल होगी जिनका उपयोग आतंकी गतिविधियों में किया जा सकेगा। लेकिन वैज्ञानिकों को लगता है कि विश्वविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों को भी एंथ््रोक्स रोगाणु की अधिक मात्रा बनाने में परेशानी आती है । उनका जीव विज्ञान कोर्स उन्हें यह सब नहीं सिखाता । सिल्बर ने इराक में हुई ए.ई. की मेडिकल ट्रेनिंग पर भी सवाल उठाया है । उसके वकील का कहना है कि इस कोर्स से ए.ई. को मात्र वह याद करने में मदद मिलेगी जो वह पहले ही सीख चुका है । मगर जज पर इस दलील का कोई असर नहीं हुआ । अब ए.ई. इस फैसले के खिलाफ अपील करने पर विचार कर रहा है । दुनिया का सबसे लंबा कीट दुनिया का अब तक का सबसे लंबा कीट हाल ही में मलेशिया के बोर्नियो द्वीप के जंगलों में से खोजा गया है। कीट का नाम सुनते ही तितलियों, कॉकरोच वगैरह की याद आती है। मगर जो नया कीट मिला है वह पूरे ५६.७ से.मी. लंबा है । यानी आधा मीटर से भी ज्यादा । यह लंबाई तब मापी गई है त उसकी टागों को एक सीध में रखा गया । टांगों को छोड़कर बात करें तो भी वह ३५.७ से.मी. लंबा है । इसे सबसे पहले खोजा था डाबुक चान ने । उनके ही नाम पर इसका नामकरण फोबेटिकस चानी किया गया है । वैसे साधारण भाषा में इसे चान मेगास्टिक कहते हैं । इस प्रजाति का विस्तृत वर्णन तैयार करने व नामकरण का काम ब्रिटिश वैज्ञानिक फिलिप ब्रैग ने किया । यह उन कीटो मे से है जो बिल्कुल टहनी जैसे दिख्ते है । यदि आपको ऐसा कीट दिखेगा तो काृफी संभावना है कि आप इसे कोई तिनका या टहनी मानकर आगे बढ जाएंगे। इससे पहले जो सबसे लंबा कीट ज्ञात था वह भी एक टहनी कीट ही था- फोबेटिकस सिरेटाइपस। उसकी लंबाई चान मेगास्टिक की अपेक्ष१ से.मी. से भी कम थी और यदि सिर्फ शरीर की लंबाई की बात करे तो चान मेगास्टिक पिछले रिकार्डधारी फोबेटिकस किर्बाई से लगभग २ से.मी. लंबा है । फोबेटिकस कीटो की करीब ३०० प्रजातियां पाइंर् जाती हैं । रोचक बात यह है कि पहले के रिकार्डधारी कीट तो हम १०० वर्षोंा से जानते हैं मगर यह वाला अक्टूबर २००८ में ही जाकर हाथ लगा है । वैसे अभी भी हमें इसकी जीवनचर्या के बारे में कुछ नहंी मालूम । ऐसे कीट साधारणतया बरसाती जंगल में वृक्षों की छाया में पाए जाते है । अब इसके तीन प्रादर्श उपलब्ध है और तीनों संग्रहालय में रखे हैं । साईज़ के अलावा इस कीट के अंडे भी कम विचित्र नहीं है । आम तौर पर हम सुनते आए हैं कि बीजों में ऐसी संरचनाएं पाई जाती हैं , जो उनको दूर-दूर तक बिखेरने में सहायक होती हैं । मगर इस मेगास्टिक के अंडों में दोनों तरफ पंखनुमा संरचनाएं होती हैं, जो इसे हवा में उड़कर दूर-दूर तक पहुंचाने में सहायता करती हैं ।पौधों में अलार्म घड़ी पौधों में सुबह होने सेएकदम पहले वृद्धि बहुत तेज़ होती है । तो पौधों को पता कैसे चलता है कि सुबह होने वाली है ? दरअसल उषाकाल में वृद्धि की इस तेजी के लिए पौधों की अंदरूनी घड़ी जिम्मेदार है । इस घड़ी का एक चक्र करीब २४ घंटे का होता है । यह घड़ी सुबह व शाम के समय प्रकाश की मात्रा के अनुसार एडजस्ट भी होती रहती है । इसी घड़ी से तय होता है कि पौधों में शारीरिक क्रियाएं (जैसे पानी का अवशोषण या स्टार्च का विखंडन) सबसे तेज़ कब होगा । सवाल यह है कि पौधे को पता कैसे चलता है कि दिन निकलने वाला है? यह तो काफी समय से पता रहा है कि कुछ जीन्स मिलकर इस घड़ी की लय को निर्धारित करते हैं । मगर अब जीव वैाानिकों ने वे जीन्स खोज निकाले हैं तो पौधे को दिन निकलने की सूचना देकर जगाते हैं । होता यह है कि जागने का यह अलार्म कुछ हार्मेान के निर्माण से शुरू होता है । ये हार्मोन सुबह से कुछ समय पहले बनने लगते हैं । इन हार्र्मोन्स के प्रभाव से पौधें की वृदि्घ प्रेरित होती है। इन हार्मोन्स के निर्माण के लिए ज़िम्मेदार जीन्स की खोज साल्क इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल स्टडीज़के टॉड माइकल और उनके साथियोंने की है । माइकल व साथियो ने सरसों के पौधों में इन जीन्स का पता लगाया है । उन्होंने चार-चार घंटे के अंतराल पर सरसो के नमूने लिए और उनका विश्लेषण डी.एन.ए. माइक्रो-एक्सरे चिप्स से किया। इससे पता चल जाता है कि उस समय कौन सा जीन्स सक्रिय है । उन्होंने पाया कि ७१ हार्मोन्स के जीन्स सुबह से ठीक पहले सक्रिय होते हैं जबकि पूरी रात निष्क्रिय पड़े रहते हैं । इन ७१ जीन्स के डी.एन.ए. के विश्लेषण में देखा गया है कि इनमें से ५३ जीन्स में एक जैसे खंड थे जो एक खास प्रोटीन से जुड़ने पर हार्मोन्स का उत्पादन करते हैं । यही हार्मोन सरसों की दैनिक घड़ी को अलार्म घड़ी से जोड़ता है । अभी उस प्रोटीन की खोज नहंी हुई है कि इन जीन्स को हार्मोन बनाने को सक्रिय करता है । यदि इस प्रोटीन के उत्पादन को बढ़ाय जा सके या समय से पहले शुरू किया जा सके तो पेड़-पौधे जल्दी `जाग' जाएंगें और उनको वृद्धि के लिए ज्यादा समय मिलेगा । इस तरह उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा । इस खोज का यह उपयोग भी हो सकता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नए किस्म के पौधे तैयार किए जा सकेंगें । इसके अलावा उन्हीं फसलों को नए-नए क्षेत्रों के अनुकूल बनाने में भी मदद मिल सकती है ।चांद पर बस्ती चांद पर बस्ती बसाने के आसार थोड़े बढ़ गए हैं । स्मार्ट १ मिशन से प्राप्त् ताजा अंाकड़ों के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि शायद चांद के शेकलेटन क्रेटर में पानी और बर्फ मिल सकती है । ऐसा इसलिए लगता है कि क्योंकि यह क्रेटर पूर्व में लगाए गए अनुमानों से अधिक पुराना है और इसमें बर्फ एकत्रित होने के लिए कहीं ज्यादा समय मिला होगा । यह आकर्षक निष्कर्ष लूनर एण्ड प्लेनेटरी इंस्टीट्यूट , टेक्सास के वैज्ञानिकों ने क्रेटर की उम्र का पता लगाने के लिए भेजे गए स्मार्ट-१ द्वारा भेजी गई तस्वीरों और सूक्ष्म निरीक्षण परिमाणामों के आधार पर पॉल स्पुडिस के नेतृत्व में निकाला है। चांद के दक्षिणी ध्रुव के नज़दीक स्थित शेकलेटन क्रेटर २० कि.मी. चौड़ा है । इसके अंदर हमेशा छाया होती है क्योंकि इसके ऊपरी किनारों पर सदा धूप रहती है । इसके चलते यह क्रेटर सौर-ऊर्जा से चलने वाले स्टेशन के लिए उपयुक्त स्थान हो सकता है । ***

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