पंजाब : जमीन से उपजा जहरीला रसायन
डॉ. कश्मीर उप्पल
आधुनिक कृषि को लोकप्रिय और विस्तारित करने के लिए पंजाब को आदर्श की तरह प्रस्तुत किया गया था । चार दशक पश्चात पंजाब की उपजाऊ भूमि की उर्वरता कमोवेश समाप्त् हो चली है और उत्पादकता रासायनिक खादों और कीटनाशकों की बंधक बनकर रह गई है । आज पंजाब के आधुनिक उन्नत खेती ने केवल उपजाऊ भूमि को नष्ट किया है बल्कि वहां के सामाजिक ताने- बाने को भी तहस-नहस कर दिया है । वहां के निवासियों खासकर बच्चें में कैंसर और दिमाग के अविकसित होने के बढ़ते मामलों ने डर का वातावरण बना दिया है ।
मध्य पूर्व की कुछ प्राचीन सभ्यताआें के विलोप का कारण अब हमें ज्ञात हो गया है । इन उन्नत सभ्यताआें ने अपनी अनाज की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए सिंचाई सुविधाओ का जाल बिछाया था । लेकिन वे अपनी उसी जाल का शिकार बनी । सबसे उपजाऊ जमीन जल ठहराव और लवणीकरण के कारण उनके हाथ से चली गई थी । तब लोग भूमिगत जलस्तर उठने की पेचीदगियों से परिचित नहीं थे । द वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट के लेस्टर ब्राउन ने विश्वव्यापी आंकड़ों से यह सिद्ध किया है कि जल ठहराव और लवणीकरण के कारण कई दशोंमें कृषि भूमि दम तोड़ चुकी है ।
वर्तमान कृषि विकास की नीतियों के फलस्वरूप भारत में दोनों तरह की स्थितियां मौजूद है । एक तरफ नहरों के जाल के फलस्वरूप वहीं दूसरी ओर भूमिगत जल के अतिदोहन के कारण भूमिगत जलस्तर आधुनिक खेती का काल बन गया है । योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलुवालिया ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल को पत्र लिखकर पंजाब की कृषि पर चिंता जताई है । फिल्मकार अनवर जमाल ने दिल्ली स्थित एकत्र समूह के सहयोग से पंजाब की खेती पर एक सारगर्भित डाक्यूमेंटरी हार्वेस्ट ऑफ ग्रीफ (दुखों की खेती) बनाई है । इस फिल्म (डाक्यूमेंटरी) का सार है, पंजाब में खेती के असफल होने के प्रमुख कारण भाखड़ा बांध परियोजना का असफल होना और पानी की लागत बढ़ जाना ।
इस साल खरीफ की सिंचाई के लिए बिजली खरीदने के मद में पंजाब सरकार को अठारह सौ करोड़ रूपयों की जरूरत है । सरकार अपने किसानों को मुफ्त मेंबिजली देने के लिए योजना आयोग व केन्द्र सरकार से यह राशि चाहती है, वहीं दूसरी और पंजाब का जलस्तर खतरनाक स्तर पर पहुंचने के संकेत दे रहा है ।
योजना आयोग का मानना है कि पंजाब में जल के अतिदोहन से कृषि की परिस्थितियां गंभीर हुई है । अधिक रसायन और अधिक पानी का यह दुष्चक्र भारतीय कृषि का विषैला चक्र बन गया है जिसने कृषि का रंग हरे से लाल कर दिया है । सन् १९६६ से १९७० के मध्य पंजाब को आदर्श कृषि के मॉडल के रूप में उभारा गया था । यह बात बहुत गौरव से बताई जाती है कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल मे पंजाब का मात्र १.५ प्रतिशत भू भाग है और पंजाब देश के कुल गेंहू उत्पादन का २३ प्रतिशत, चावल का १० प्रतिशत और कपास का भी १० प्रतिशत पैदा करता है । यहां फसल की गहनता १८६ प्रतिशत है अर्थात् एक के बाद तत्काल दूसरी फसल ले ली जाती है ।
पंजाब में आधुनिक खेती की शुरूआत भाखड़ा बांध के निर्माण के साथ शुरू हुई थी । आज पंजाब में १५ लाख ट्यूबवेल है । वर्ष १९८० तक पंजाब में औसतन ७३९ मिली मीटर वर्षा होती थी जो कि २००६ तक घटकर ४१८.३ मिलीमीटर रह गई । सबमर्सिबल पम्प जिसे पंजाब में किसान मच्छी मोटर कहते है के प्रचलन से अधिक गहराई से जलदोहन की परम्परा शुरू हुई है । कुल सिंचित क्षेत्र के ६८ प्रतिशत भाग की सिंचाई निजी और सरकारी ट्यूबवेलों से होती है । भूमिगत जल के अतिदोहन के परिणामस्वरूप पंजाब के १४१ प्रखंडों में से ११२ में भूमिगत जल स्तर खतरे के निशान से भी नीचे चला गया है ।
पंजाब सरकार ने भूमिगत जलस्तर के आधार पर भूमि को तीन क्षेत्रों में बंंाटा है । अधंकारपूर्ण क्षेत्र (डार्क जोन) जिसमें६५ प्रतिशत से ८५ प्रतिशत जल का शोषण हो चुका है व सफेद क्षेत्र (व्हाईट जोन) जिसमें ६५ प्रतिशत तक का जल का दोहन हुआ है पंजाब के हर जिले में अंधकारपूर्ण जल क्षेत्र है । प्रदेश मे जमीन के भीतर पानी जमा रकने की गति से पानी निकालने की गति एक सौ पैंतालीस प्रशित ज्यादा है । पंजाब के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल ५०.३३ लाख हेक्टेयर है, जिसमें से ४२.०४ लाख हेक्टेयर में कृषि की जाती है । इसका अर्थ है कि पंजाब में गैर-कृषि भूमि का क्षेत्र बहुत कम है और उसका भी उपयोग गांव, शहर, सड़क रेल आदि के लिए हो रहा है । इस तरह भूमि को सांस लेने की भी फूर्सत नहीं है । भूमि पर या तो खेती है या सीमेंट के जंगल ।
पंजाब की खेती में भी क्षेत्र के अनुसार पानी और रसायनों के अत्यधिक उपयोग में विभिन्नता पाई जाती है । पंजाब के मालवा विशेषकर भटिंडा, फरीदकोट, मानसा, संगरूर और मोगा जिलों में पंजाब के कुल कीटनाशकों का ७० प्रतिशत उपयोग में लाया जाता है । यह क्षेत्र पंजाब का कपास बेल्ट भी है । पंजाब का मालवा क्षेत्र हमारे देश के भौगोलिक क्षेत्र का मात्र ०.५ प्रतिशत (आधा प्रतिशत) है जबकि यह पूरे देश के १० प्रतिशत कीटनाशकों का उपयोग करता है । रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से जमीन के पोषक तत्व, सूक्ष्म जीवाणु आदि खत्म हो गए है । कृषि भूमि के जरूरी पोषक तत्व जैसे जिंक, सल्फर, जस्ता, लोहा, जैविक कार्बन आदि भी नष्ट हो चुके है । इसके साथ ही कई भयंकर बीमारियों भी फैल रही है । हाल ही के वर्षो में विकलांग बच्चें के जन्म की संख्या बढने लगी है ं मालवा क्षेत्र के १४९ बीमार बच्चें में से ८० प्रतिशत के बालेांमें यूरेनियम की मात्रा अत्यधिक पाई गई है । डॉ. अम्बेडकर इस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी , जालंधर के भोतिकी विभाग ने ३४ गांवों के हैंंडपम्पों में यूरेनियम पाया। फरीदकोट के मंदबुद्धि बच्चें के एक संस्थान बाबा फरीद केन्द्र में बच्चें के बालों में ८२ प्रशित से ८७ प्रतिशत तक यूरेनियम पाया गया । पंजाब के कई जिलों के मिट्टी के नमूनों में भी यूरेनियम और पोटेशियम आदि का स्तर खतरे से काफी अधिक पाया गया है । दक्षिण पश्चिम पंजाब के संगरूर, मनासा, फरीदकोट, मुक्तसर भटिंडा और फिरोजपुर जिलों में पानी का एक भी नमूना पीने लायक नहीं पाया गया । पटियाला की फोरेंसिक लेब द्वारा पंजाब के कई जिलों में लोगो के खून के नमूने लिये गए । इस खून में ६-१३ प्रतिशत तक कीटनाशकों के तत्व मिले है । बीमार लोगों की मृत्यु के बाद २५०० लोगों के विसरा की जांच की गई, जिसमें डी.डी.टी., अल्ट्रीनईथन और इंडो सल्फान रसायन मिले । पंजाब में आश्चर्यजनक रूप से १० वर्ष से कम बच्चें में भी कैंसर बढ़ा है । युवाआें में गठिया,फ्लरोसिस और जोड़ों के दर्द के मामले बढ़ रहे है । यहां तक कि भैंस का दूध भी प्रदूषित पाया गया है ।
पंजाब में आधुनिक खेती के नाम पर जो कुछ हो रहा है उससे पर्यावरण और सम्यता दोनों खतरे में है । पंजाब में कुंए बद हो गए है और तालाब नष्ट कर दिये गये है । आम किसान मानते है कि जमीन नशीली हो गई है और बिना रासायनिक खाद के फसल नहीं देती । इसलिए फसल को अच्छा बनाने के लिए मिट्टी को खूब खाद पिलाई जाती है । इसका अर्थ यह भी है कि पंजाब में मिट्टी ने अपना काम करना बन्द कर दिया है । अब जो कुछ भी है वह रसायनों का फल है । कीटनाशकों के छिड़काव को भी किसी धार्मिक रीति की तरह निभाया जाता है । कीटनाशकों का छिड़काव सुबह के समय किया जाता है । कीटनाशक छिड़कने वाला सुबह से खाली पेट रहता है और कई गिलास नींबू पानी पीता है । कीटनाशक छिड़कने के बाद वह अपने कपड़े उतार कर एक तरफ रख देता है और स्नान करने के बाद पुन: नींबू का पानी पीता है । ग्रामीणों द्वारा अधिक फसल के लिए किया गया यह कर्मकाण्ड भी क्या उन्हें प्रकृति के प्रकोप से बचा पाएगा ? कभी अच्छी कृषि का आदर्श हुआ करता पंजाब अब खराब कृषि का एक मॉडल बन कर रह गया है । ***
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