रविवार, 24 अप्रैल 2011

जनजीवन


प्लास्टिक पर अधूरा प्रतिबंध


पर्यावरण मंत्रालय के प्लास्टिक उपयोग संबंधित नए नियमों को केवल पान मसाला और तम्बाकू उत्पादों पर ही लागू किया गया है । जबकि आवश्यक है कि इनका उपयोग खाद्य सामग्री के भंडारण के लिए भी प्रतिबंधित हो । धातु जड़ित प्लास्टिक का रिसायकल न हो पाना भारत में अपशिष्ट निपटान को और भी संकट में डाल रहा है । नियमों को आधा - अधूरा लागू करना यह शंका भी पैदा कर रहा है । कि मंत्रालय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव में तो नहीं आ गया है ?
केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय प्लास्टिक अपशिष्ट या कचरे से निपटने के मामले मेंगंभीर नजर नहीं आ रहा है । ७ फरवरी को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के संबंध में अधिसूचना जारी करते हुए उन्होनें केवल गुटखा, पान मसाला और तम्बाकू के छोटे- छोटे पैकेट में प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगा दी । प्लास्टिक अपशिष्ट (प्रबंधन एवं निपटान) नियम जिसने कि १९९९ के रिसायकल्ड (पुन: चक्रीय) प्लास्टिक निर्माण एवं उपयोग नियमों का स्थान लिया है, में किसी भी अन्य प्रकार के प्लास्टिक पैकेजिंग को प्रतिबंधित नहीं किया है ।
कचरा बीनने वालों के साथ कार्य कर रहे चिंतन पर्यावरण एवं शोधकार्य समूह की भारती चतुर्वेदी का कहना है गुटखे के पैकेट धातु आवरण वाले प्लास्टिक से बनाए जाते है । ठीक इसी तरह आलू के चिप्स और शैम्पू के पैकेट भी बनाए जाते है । मंत्रालय को सभी तरह के धातु आवरण वाले प्लास्टिक पैकेटों पर रोक लगानी चाहिए थी । भारती उस विशेषज्ञ समूह की सदस्य थी, जिसका गठन मंत्रालय ने नियमों पर मसौदा स्तर पर आई आपत्तियों को सुनने हेतु किया था । उनका कहना है कि अधिसूचित नियम केवल पान पराग और गुटखा को इसलिए लक्षित कर रहे है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने १ मार्च से इन उत्पादों की पैकिंग प्लास्टिक पैकेटों में करने से रोग लगा दी है ।
सन् २००९ में जारी मसौदा नियमों ने धातु जड़ित बहुतलीय (प्लास्टिक, कागज और एल्यूमिनियम फोइल) पर भी प्रतिबंध की सिफारिश की है क्योंकि पुनचक्रीयकरण (रिसायकलिंग) नहीं हो सकता है । इसका सीधा सा अर्थ है यह है कि आलू की चिप्स में इस्तेमाल की जाने वाली पैकेजिंग ओर टेट्रा पैकेजिंग पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लग जाना चाहिए । मंत्रालय के सहसचिव राजीव गौबा से यह पूछे जाने पर कि अन्य उत्पादों में धातु जड़ित प्लास्टिक के उपयोग पर रोक क्यों नहीं लगाई गई । इस पर अपने निर्णय को न्यायोचित ठहराते हुए उन्होनें कहा कि धातु जडित गुटखा पैकेट शहरी क्षेत्रों के अपशिष्ट में सर्वाधिक योगदान करते है । अपने दावे की प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए उन्होनें कोई आंकड़ा प्रस्तुत नहीं किया ।
नए नियम क्या कहते है ?
* प्लास्टिक के सभी थैलियां न्यूनतम ४० माईक्रोन मोटाई की हो ।
* खुदरा व्यापारी ग्राहकों को मुफ्त में प्लास्टिक थैली नहीं देंगे ।
* प्लास्टिक सामग्री का गुटखा, पान मसाला और तंबाखू के पैकिंग में इस्तेमाल नहीं होगा।
* प्लास्टिक की सभी थैलियों पर इसके निर्माता का नाम व मोटाई के साथ यह ु उल्लेख भी आवश्यक है कि यह रिसायकल्ड है या नहीं।
नियमों में नगरीय निकायों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है कि वे प्लास्टिक कचरे को एकत्रित करने एवं उनके रिसायकलिंग के लिए केन्द्र स्थापित करें और निर्माताआें से कहें कि वे इस कोष (धन) उपलब्ध कराएं ।
विशेषज्ञ समिति के सदस्य और गैर लाभकारी संगठन टाक्सिक लिंक के रवि अग्रवाल का कहना है कि नियमों को ढीला कर दिया गया है । हमने सुझाव दिया था कि इन केन्द्रों की स्थापना और प्रबंधन दोनों ही कार्य उद्योग को ही करने चाहिए । नियमों के धन उपलब्धता को लेकर तो स्पष्टता है लेकिन रिसायकलिंग केन्द्रो के प्रबंधन को लेकर दुविधा बनी हुई है । प्लास्टिक उद्योग ही परिवर्तन को प्रभावित कर सकता है । नए नियम कहते है कि दुकानदार द्वारा किराना या अन्य उत्पादों के साथ मुफ्त दिए जाने वाले प्लास्टिक थैले ४० माईक्रान (०.००४ मिलीग्राम) से कम मोटाई के नहीं होंगे ।
नियम कहते है कि सभी प्लास्टिक थैले भले ही वे रिसायकल ही क्यों नहीं हुए हो, पर निर्माता का नाम और रजिस्ट्रेशन संख्या, मोटाई और प्लास्टिक का प्रकार लिखा होना आवश्यक है ।
पिछले नियमों के अनुसार प्लास्टि थैली न्यूनतम २० माइक्रोन की मोटाई की होनी चाहिए । ठोस अपशिष्ट विषय पर कार्य कर रहे एक समूह टॉक्सिक वाच के गोपालकृष्ण का कहना है कि अपशिष्ट प्रबंधन का आधारभूत सिद्धांत है कि उत्पादन से ही परहेज किया जाए । उनका कहना है २० के स्थान पर ४० माइक्रोन की थैलियों का इस्तेमाल और अधिक प्लास्टिक को प्रचलन में लाएगा । परंतु अहमदाबाद स्थित पर्यावरण शिक्षण संस्थान की रीमा बनर्जी का कहना है कि प्लास्टिक बैग की मोटाई को ४० माइक्रोन करने से रिसायकलिंग को प्रोत्साहन मिलेगा क्योंकि २० माइक्रोन की थैलियों को रिसायकल करना काफी कठिन होता है ।
प्लास्टिक बैग के निर्माता जहां नए नियमों से संतुष्ट नजर आते है वहीं वानस्पतिक प्लास्टिक थैलियां बनाने वाले इन नियमों से नाराज है । नियमों में कहा गया है भारतीय मानकों मानकों के अनुरूप ही इनके नष्ट होने की क्षमता तय की जा सकेगी । साथ ही वानस्पतिक प्लास्टिक थैलियों की खाद्य पदार्थो में इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई । अर्थसोल इंडिया जो कि आलू के स्टार्च से प्लास्टिक थैली बनाते है का कहना है अन्य देशों में वनस्पति से बनने वाली थैलियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है अगर ये नियम लागू हो गए तो दुनिया हम पर हंसेगी । उनका यह भी कहना है क ४० माईक्रोन वाला मानक हम पर लागू नहीं होता क्योंकि वानस्पातिक थैलियां तो स्वमेव नष्ट हो जाएगी । वहीं गोपाल कृष्ण का कहना है कि विघटन (नष्ट) की श्रेणी वाली धारा वैसे ही निरर्थक जान पड़ती है क्योंकि या तो थैली का विघटन होता है या नहीं होता। इसके अलावा बीच का कोई अन्य रास्ता नहीं है । कृष्ण सड़क निर्माण और सीमेंट कारखानों की भटि्टयों में प्लास्टिक थैली के उपयोग की आलोचना करते हुए कहते है यह जमीन भराव और प्लास्टिक के जलाने के अलावा और कुछ नहीं है ।
नए नियम को कुछ प्रशंसा भी प्राप्त् हुई है चतुर्वेदी का कहना है कि इतिहास में पहली बार कचरा बीनने वालों की भूमिका को मान्यता प्राप्त् हुई है । वहंीं अखिल भारतीय कबाड़ी मजदूर संगठन जो कि कचरा बीनने वालों की संस्था है, के राष्ट्रीय संयोजक शशि पंडित का कहना है कि ये नियम केवल कागजों पर ही अच्छे दिखाई देते है । अब जबकि घरों से कचरा इकट्ठा करने तक का निजीकरण हो गया है ऐसे में कचरा बीनने वालों के कचरे को इकट्ठा करने और उन्हें रिसायकल करने के सभी अधिकार कमोवेश समाप्त् हो गए है । भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के एक भी ठेके को श्रमिकों की एसोसिएशन का समर्थन प्राप्त् नहीं है । ***

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