कृषि भूमि को बचाना जरूरी
देश में पिछले दो दशक में करीब २८ लाख हेक्टेयर कृषि भूमि घट गई है । यदि भूमि घटती रही, तो अन्न का उत्पादन भी घटेगा ही ।
देश में बीते दो दशक में लगभग दो फीसदी खेती की जमीन कम हो गई है । और रकबा करीब २८ लाख हेक्टेयर होना चाहिए । यह बयान किसी और का नहीं, बल्कि देश के कृषि मंत्री शरद पंवार का है, जो उन्होनें संसद में दिया है । यानी, देश में खेती की जमीन का घट जाना कोई अटकलबाजी नहीं है, बल्कि एक डरावना सच है । बीस साल में २८ लाख हेक्टेयर जमीन आखिर कहां चली गई ? यह जमीन शहरों के फैलाव, कारखानों के निर्माण और उत्खनन की भेंट चढ़ गई है ।
देश के उन इलाकों मे जाकर देखा जा सकता है, जहां भूगर्भ में खनिज पाए जाते है । वहां की खेती योग्य जमीन के साथ ही साथ जंगल भी बर्बाद कर दिए गए है । कारखानों केे लिए जो जमीन आवंटित कर दी जाती है, वह भी उपजाऊ ही होती है । इधर, शहरों का फैलाव तो हो ही रहा है और वह भी अतार्किक ढंग से । यह सही है कि पिछले दो दशक में देश में शहरीकरण भी तेजी से हुआ है । यानी, ग्रामीण आबादी का एक हिस्सा गांवों से पलायन करके शहरों में आ गया है, लेकिन सच यह भी है कि शहरीकरण जिस अनुपात में हो रहा है, शहरों का फैलाव उससे कई गुना ज्यादा हो रहा है ।
इस संदर्भ में दिल्ली का उदाहरण सबसे ज्यादा मुफीद रहेगा । दो दशक पहले इसकी आबादी करीब एक करोड़ ४५ लाख थी, अब अनुमान यह है कि यह एक करोड़ ७५ लाख होनी चाहिए । यानी, दिल्ली की आबादी में दो दशक में लगभग १६ फीसदी का इजाफा हुआ, पर शहर कितने फीसदी बढ़ा ? करीब सत्तर फीसदी । इन सब स्थितियों को ध्यान में रखकर खेती की जमीन के संरक्षण की योजना बनाई जानी चाहिए । शहरों में तो बहुमंजिला इमारतें बन सकती है, पर खेती को बहुमंजिला नहीं बनाया जा सकता । कृषि भूमि घटती रही, तो बढ़ती आबादी का पेट कैसे भरेगा ? यह सरकार के लिये चिंता का विषय होना चाहिए ।
नदी और खारे पानी से पैदा होगी बिजली
वैज्ञानिकों ने एक ऐसी बैटरी का इजाद करने का दावा किया है जो मीठै और समुद्रीजल के खारेपन में विभेद कर ऊर्जा पैदा कर सकती है । शोध के नेतृत्वकर्ता ई चुई ने कहा कि जब एश्चुरी के जरिए नदी का पानी समुद में प्रवेश करता है तो इस बैटरी का इस्तेमाल करके वहां ऊर्जा संयंत्र बनाया जा सकता है ।
ताजे पानी की कम उपलब्धता का जिक्र करते हुए उन्होनें कहा कि वास्तव में हमारे पास अथाह समुद्री जल है, दुर्भाग्य से मीठे पानी की मात्रा बहुत कम है । बैटरी से ऊर्जा पैदा करने की संभावना जाहिर करते हुए शोधकर्ताआें ने हिसाब लगाया कि यदि दुनिया की सभी नदियों में उनकी बैटरी का इस्तेमाल किया जाए तो एक साल में करीब दो टैरावाट बिजली की आपूर्ति की जा सकती है जो मौटे तौर पर वर्तमान में दुनिया में इस्तेमाल होने वाली कुल ऊर्जा का १३ प्रतिशत है । बैटरी अपने आप में बहुत ही आम है ।
इसमें दो इलेक्ट्रोड है, एक पॉसीटिव और एक नेगेटिव, जो विद्युत चार्ज कणों या लोहे की छड़ों से युक्त एक द्रव में डूबे रहते है पानी में सोडियम या क्लोरीन आयरन है, जो आम साल्ट के घटक है । शुरूआत में बैटरी में मीठा पानी भरा जाता है और हल्के इलेक्ट्रिक करंट के जरिए इसे चार्ज किया जाता है । बाद में मीठा पानी निकालकर इसमें समुद्री जल भरा जाता है नैनी लीटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक समुद्री पानी में आयन मीठे जल से ६० से १०० गुना अधिक होते है इसलिए दोनों इलेक्ट्रॉड के बीच वोल्टेज बढ़ जाता है । यह इसे बैटरी को चार्ज करने से अधिक बिजली पैदा करने में मददगार साबित होता है ।
वनों और नदियों की सफाई होगी
भारत सरकार के नये बजट में वनों के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष से २०० करोड़ रूपए ओर पर्यावरण मंत्रालय के लिए २४९१.९७ करोड़ रूपए का आवंटन का प्रस्ताव है वर्ष २०११-१२ में २०० करोड़ रूपए के प्रभावी क्रियान्वयन का प्रस्ताव रखते हुए वित्त मंत्रीने कहा , वनों के संरक्षण का महान पारिस्थितिकीय,आर्थिक ओर सामाजिक मूल्य रहा है । हमारी सरकार ने महत्वकांक्षी १० वर्षीय हरित भारत मिशन शुरू किया है । आशा करनी होगी कि सरकारी प्रयासों को सफलता मिलें ।
मैंग्रोव वन रोकेंगे सुनामी लहरें
विज्ञान की तमाम उपलब्धियों के बावजूद भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाआें की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती । ऐसे उपायों में एक महत्पूर्ण भूमिका तटीय इलाकों में सुरक्षा दीवारों के रूप में काम करने वाले मैंग्रोव वनों की है ।
जापान में सुनामी के बाद पैदा हुए फुकुशिमा संकट ने दुनिया भर में जहां परमाणु संयंत्रों प्राकृतिक उपायों को मजबूत करने की मांग भी उठने लगी है । अब यह साफ तौर पर नजर आने लगा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग, पर्यावरण के असंतुलन और जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाआें में बढ़ोतरी हो रही है और ये आपदाएं पहले की तुलना में ज्यादा विनाशकारी साबित हो रही है । देखा जाए तो विज्ञान की तमाम उपलब्धियों के बावजूद भूकंप ओर सुनामी जैसी प्राकृतिक उपायों द्वारा इनके दुष्परिणामों को कम अवश्य किया जा सकता है ।
ऐसे उपायों में एक महत्वपूर्ण भूमिका तटीय इलाकों में सुरक्षा दीवार के रूप में काम करने वाले मैंग्रोव वनों की है । यही वजह है कि हाल में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन ने सरकार से कलपक्कम और कुंडनकुलम एटॉमिक रिएक्टरों के नजदीक तटीय क्षेत्र में घने मैंग्रोव वन लगाने की सलाह दी है । मैंग्रोव वनों को समुद्र के सदाबहार वन भी कहा जाता है । इनके महत्व का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि समुद्र में पाए जाने वाले ९० फीसदी जीव-जंतु अपने जीवन का कुछ न कुछ हिस्सा मैंग्रोव तंत्र में अवश्य बिताते है ।
पूरी दुनिया में भूमध्य रेखा के एकदम नजदीक के बेहद गर्म इलाकों और फिर इसके अगल-बगल के थोड़े कम गर्म और नम तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाली मैंग्रोव वनस्पतियां कभी ३.२ करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र को ढके हुए थी, जो कि आज आधे से भी कम अर्थात १.५ करोड़ हेक्टेयर में सिमट गई है ।
कभी मैंग्रोव वन भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के तटीय क्षेत्रों में काफी बड़े इलाके में छाए हुए थे, लेकिन उनका ८० फीसदी हिस्सा पिछले छह दशकों में नष्ट हो चुका है । समुद्री तूफान जैसी आपदा के समय तटीय क्षेत्रों के लिए सुरक्षा पंक्ति का काम करने वाले ये मैंग्रोव वन आज गहरे संकट में है । वैसे तो इन वनों के अस्तित्व को लेकर काफी समय से चिंता जताई जा रही थी, लेकिन इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर को हाल की एक रिपोर्ट ने दुनिया भर के पर्यावरण प्रेमियों को चिंता में डाल दिया है ।
रिपोर्ट के मुताबिक तटीय क्षेत्रों में चल रही विकास गतिविधियों के कारण दुनिया में हर छह मे से एक मैंग्रोव प्रजाति विलुप्त् होने की कगार पर है । संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार मैंग्रोव वन सालाना एक दो फीसदी की दर से नष्ट हो रहे है और १२० में से २६ देशों में इनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे है ।
आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों नजरियों से मैंग्रोव वनों का नष्ट होना काफी नुकसानदेह है । ये वन न केवल जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सक्षम होते है, बल्कि ये तटीय क्षेत्रों के लोगों को रोजी-रोटी भी मुहैया कराते है । समुद्री जीव - जंतुआं के अलावा अनेक जंगली जीवों को भी मैंग्रोव वनों में आश्रय मिलता है । इनकी मजबूत जड़े मजबूत जड़ें समुद्री लहरों से तटों का कटाव होने से बचाती हे । घने मैंग्रोव चक्रवाती तूफान की गति धीमी करके तटीय आबादी को तबाही से बचाते है ।
शिक्षा से जुड़ा है लंबी उम्र का राज
आपकी लंबी आयु का राज आपके शिक्षा के साथ जुड़ा हुआ है । नए शोध के मुताबिक आप जितने अधिक शिक्षित होंगे आपकी आयु उतनी ही लंबी होगी । अमरीकी ब्राउन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताआें ने पाया कि उच्च विद्यालय की पढ़ाई नहीं पूरी कर पाने वाले लोगों की तुलना में कालेज और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले व्यक्तियों का रक्त चाप कम होता है ।
डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक जिनके पास मास्टर डिग्री और डॉक्टरेट की उपाधि होती है वह ज्यादा स्वस्थ होते है और महिलाआें पर यह बात ज्यादा लागू होती है इस शोध में बताया गया है कि उच्च रक्त चाप की वजह से दिल का दौरा पड़ने की संभावना दोगुनी हो जाती है और अच्छी शिक्षा की वजह से आपकी आयु लंबी होती है ।
इस शोध के लिए शोधकर्ताआें ने तीन वर्ष तक के करीब ४००० अमेरिकी महिलाआें और पुरूषों के स्वास्थ का अध्ययन किया । इसमें पाया गया है कि १७ वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिलाआें को ज्यादा शिक्षित थी उनका रक्त चाप उसी उम्र की उच्च् विद्यालय की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने वाली महिलाआें की तुलना में कम था और यही बात पुरूषों में भी पाई गई ।
बीएमसी पब्लिक हेल्थ मैग्जीन में प्रकाशित इस शोध से यह जानकारी सामने आई कि ज्यादा पढ़े लिखे लोग धुम्रपान और शराब का सेवन भी अपेक्षाकृत कम करते है जबकि पढ़ी लिखी महिलाएं भी ज्यादा स्वस्थ रहती है ।
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