रविवार, 24 अप्रैल 2011

ज्ञान -विज्ञान


अब अंतरिक्ष की यात्रा आसान

अगर आपने अंतरिक्ष में सफर करने का सपना संजाए रखा है तो आपका वह ख्वाब जल्द पूरा होने वालाल है । खास खबर यह है कि इसके लिए ज्यादा धन भी खर्च नहीं करना पडेगा । ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने स्पेस प्लेन नामक यानों का निर्माण किया है, जिसने ब्रिटिश रिएक्शन इंजन्स नामक यान बनाने वाली कंपनी के सहयोग से इस काम को अंजाम दिया है । येे यान न सिर्फ शटल यानों से बेहतर होंगे बल्कि अंतरिक्ष पर्यटन को भी ऊँचाईयों पर पहॅुंचाएँगे ।
नासा ने हाल में अंतरिक्ष में शटल यान डिस्कवरी से अपनी अंतिम यात्रा पूरी की है यह यान पिछले २७ वर्षो से धरती से अंतरिक्ष की उड़ान भर रहा था । इसके साथ इंडेवर और अटलांटिस नामक शटल यानों को भी नासा ने हमेशा के लिए विश्राम दे दिया है । डिस्कवरी शटल अब कभी भी अंतरिक्ष की उड़ान नहीं भरेगा । नासा ने हाल ही में आमजन को संदेश दिया है कि जो भी अंतरिक्ष में यात्रा करना चाहते है हम उन्हें सस्ती और विश्वसनीय सुलभ यात्रा इस नए यानों से कराएँगे । नए विकसित और विकास किए जा रहे अंतरिक्ष परंपरागत शटल यानों से एकदम अलग और भिन्न होंगे । स्काइजोन पिछले शटल यानों से लंबे होंगे । इसकी लंबाई ९० मीटर, जिसमें एकसाथ ४० लोग यात्रा कर सकेंगे । इन यानों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये बिना पायलट के संचालित होगें यानी पूरी तरह से ऑटो संचालित होंेगे, जो साफ्टवेयर के जरिए नासा केन्द्र से सीधे जुड़े रहेंगे । स्काईजोन का इंजन हाइड्रोजन ईधन से संचालित होगा । इंजन हवा के साथ हाइड्रोजन जलाकर चालू होगा और द्रव ऑक्सीजन के साथ हाइड्रोजन जलाने के साथ ही बंद होगा । यही प्रक्रिया शटल इंजनों में भी थी । इन यानों के निर्माण में करीब छ: अरब पौंड का खर्च आया है । स्काइजोन स्पेस प्लेन अब धरती से रफ्तार भरेंगे तो उनके अंतरिक्ष कक्ष स्टेशन में पहुॅुंचने की निश्चित समय अवधि होगी । कक्ष में पहँचने पर ये यान स्वत: काम करना बंद कर देंगे ।
इसमें सफर करने वाले सभी यात्रियों को यात्रा के दौरान किसी भी समय सैटेलाइट के जरिए सीधे नासा के वैज्ञानिकों से बात करने की सुविधा मुहैया रहेगी । यान में मानव सुविधा के सभी साजोसामान मौजूद होंगे । दिल की बीमारी वाले लोगों को इन यानों में यात्राा करने की मनाही होगी, क्योंकि इनकी तेज स्पीड से इन लोगों का रक्तचाप बढ़ सकता है । कोई अनहोनी न हो इसलिए यह फैसला लिया गया है। नासा के वैज्ञानिकों ने अपनी इस सफलता को लेकर गजब का उत्साह है ।
स्पेस प्लेन अपनी पहली उड़ान अगले वर्ष अगस्त में भरेगा । जो इसकी पहली यात्रा करना चाहता है वह नासा से संपर्क कर सकता है ।

कृत्रिम पत्ती से बिजली

पिछले दिनों मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों के दल ने सिलिकॉन, इलेक्ट्रॉनिक्स, निकल और कोबाल्ट जैसे विभिन्न उत्प्रेरकों की सहायता से एक ऐसी कृत्रिम पत्ती का निर्माण किया है , जो सूरज की रोशनी और पानी से ऊर्जा पैदा करती है दरअसल, यह पत्ती सूरज की रोशनी का इस्तेमाल करके पानी को उसके घटकों हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ देती है, जिनका इस्तेमाल बिजली पैदा करने में किया जा सकता है । इन पत्तियों की सहायता से भारत जैसे विकासशील देश में एक घर की प्राथमिकता जरूरत भर की बिजली पैदा की जा सकती है ।
इस दल का लक्ष्य अब कम से कम कीमत वाला एक ऐसा उपकरण बनाने का है, जिसे कोई भी अपने घर की छत पर या आसपास लगाकर प्राथमिक जरूरत की बिजली प्राप्त् कर सके। जापान में सुनामी आने के बाद जिस तरह परमाणु विकिरण फैला, उससे सभी देशों में परमाणु संयंत्रों के खतरे को लेकर चीख पुकार मची हुई है और जर्मनी जैसे देशों ने तो परमाणु संयंत्रों की स्थापना को लेकर अपने कान पकड़ लिए है । इस पृष्ठभूमि में नई खोज एक वरदान की तरह सामने आई है । कोयले के भंडारों के कम होने और जल विद्युत के उत्पादन से होनेवाले नुकसान, बल्कि पर्यावरणीय खतरे को ध्यान में रखते हुए दुनिया परमाणु ऊर्जा के विकल्प की ओर गई है, जो अपेक्षया स्वच्छ मानी जाती है, लेकिन इसका खतरा सभी तरह से ऊर्जा के मुकाबले कही ज्यादा है । ऐसे में सौर ऊर्जा ओर पवन ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्त्रोतों पर दुनिया भर में ध्यान दिया जा रहा है । कृत्रिम पत्ती के जरिए इस तरह वैकल्पिक ऊर्जा तैयार करने से दुनिया की किस्मत बदल जाएगी और तेज गति से आर्थिक विकास कर रहे भारत और चीन को तो सुदूर बसे अपने गाँवों को आत्म निर्भर बनाने की दृष्टि से खास फायदा होगा । तब गाँव - कस्बे के हर घर का अपना पावर - हाउस होगा । आकाश में बिजली के तड़कने से ही इतनी बिजली पैदा होती है कि दुनिया को उसका संरक्षण करना आ जाए तो वर्षो तक बिजली की कमी नहीं रहे ।

शहरों के कारण ७० फीसदी प्रदूषण

संयुक्त राष्ट्र की संस्था `यूएन हैबीटैट के आकलन के अनुसार धरती के महज दो फीसदी हिस्से पर काबिज शहर पृथ्वी पर ७० प्रतिशत प्रदूषण के जनक है । संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि शहरी क्षेत्र पर्यावरण बचाने के लिए नए जंग के मैदान होंगे ।
इस नए अध्ययन का कहना है कि शहरों की बेहतर बसाहट और सटीक योजनाएँ बहुत बड़ी मात्रा में बचत कर सकती है । शोधकर्ताआें का कहना है कि अगर कोई कदम नहीं उठाया गया तो पर्यावरण में हो रहे बदलावों और शहरों के बीच में एक घातक टकराव हो सकता है । मानव बसाहटें, शहर, और जलवायु परिवर्तन के दिशा-निर्देशों पर अंतराष्ट्रीय रिपोर्ट २०११ का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य इस बारे में जागरूकता लाना है कि शहर किस तरह से जलवायु परिवर्तन को बढ़ा रहे हैं । साथ ही इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है ।
यूएन हैबीटैट के कार्यकारी निदेशक जोआन क्लॉस का कहना है कि दुनिया मेंशहरीकरण का बढ़ता चलन प्रदूषण के बढ़ते उत्सर्जन को काबू करने के नजरिए से गंभीर चिंता का विषय है । उन्होनें कहा कि हम शहरीकरण को बढ़ता हुआ देख रहे है । दुनिया की पचास फीसद आबादी शहरों में रहती है और इस बढ़ते चलन का पहिया कहीं थमता हुआ नहीं दिख रहा । जोआन क्लॉस का कहना है कि बढ़ते शहरीकरण का सीधा मतलब है ऊर्जा का इस्तेमाल का बढ़ना ।
संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार साल २०३० तक दुनिया की ५९ फीसदी आबादी शहरों में रह रही होगी । हर साल शहरों की आबादी करीब छ: करोड़ सत्तर लाख बढ़ रहे है। इस संख्या में सबसे ज्यादा इजाफा विकासशील देशों में हो रहा है । शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा के ज्यादा इस्तेमाल के कारण बताते हुए क्लॉस ने कहा कि शहरों में ज्यादतर ऊर्जा यातायात में, इमारतों को गर्म या ठंडा रखने में और आर्थिक गतिविधियों से पैसा कमाने में खर्च होती है । इन्हीं कारणों से शहरों की जलवायु परिवर्तन के संभावित नतीजों का पहले सामना करना पड़ सकता है ।
संभावित नतीजों को गिनाते हुए इस रिपोर्ट में कहा गय है कि इनमें मुख्य है गर्म औ शीतलहरों को बढ़ना, बहुत ज्यादा बारिश और सूखे क्षेत्रों की संख्या में बढ़ोतरी। दुनिया के कई इलाकों में समुद्र का जलस्तर बहुत ज्यादा बढ़ सकता है । दक्षिण अफ्रीका उन इलाकों में से एक है जो जलवायु परिवर्तन के नतीजों का सबसे ज्यादा सामना कर सकता है ।
डॉ. क्लॉस ने कहा कि यॅूं तो सारी दुनिया को जलवायु परितर्वन को रोकने की लड़ाई लड़नी है, लेकिन शहर इस लड़ाई में बहुत खास भूमिका अदा कर सकते है । इस रिपोर्ट का कहना है कि ऊर्जा का इस्तेमाल व्यक्तिगत स्तर पर होता है, यहीं पर शहर और स्थानीय निकाय बड़ा परिवर्तन ला सकते है । फिर चाहे उनकी राष्ट्रीय सरकारें इस समस्ता से निपटने के लिए कोई कदम उठाएँ या नहीं इस रिपोर्ट में स्थानीय निकायों से आग्रह किया गया है कि वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने स्तर पर योजनाएँ बनाएँ । स्थानीय निकायों को न केवल ऊर्जा की खपत को कम करना होगा, बल्कि बाढ़ जैसी आपदाआें से निपटने के लिए भी तैयारी करनी होगी । यूएन हैबीटैट का मानना है कि स्थानीय निकायों को इस काम में अंतराष्ट्रीय ओर राष्ट्रीय निति निर्धारकों की मदद भी की दरकार होगी ।
शोधकर्ताआें का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से शहरी इलाकों को मूलभूत सुविधाएँ जैसे पानी, बिजली, यातायात तक मिलना मुश्किल हो सकता है । क्लॉस का कहना है कि बहुत जगहों पर स्थानीय अर्थव्यवस्था ओर आम लोग अपनी कमाई और रोजी रोटी से महरूम हो सकते है । जिन इलाकों को सबसे ज्यादा खतरा हो सकता है उनमें दक्षिण एशिया प्रमुख है । इसके अलावा दक्षिण - पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका का पूर्वी तट और अमेरिका का पश्चिमी तट जलवायु परिवर्तन की आग से जल सकते है । इन इलाकों को सूखे, बाढ़, भूकम्प जैसी आपदाआें का सामना करना पड़ सकता है ।
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