नमक बेचने वाले अब गला रहे हैं दाल
डॉ. कृष्णस्वरूप आनन्दीर
देश का नमक बेचने वाला टाटा केमिकल्स अब ब्राण्डेड दालों का पहला कॉरपोरेट कारोबारी बन चुका है । उसने सोचा कि जब नमक हर व्यंजन में पड़ता है, तब क्यों न हर व्यंजन का देश व्यापाी खुदरा कारोबार किया जाए । इसके लिए वह किसान संसार नाम से देशभर में अपने आउटलेट या स्टोर खोल रहा है ।
टाटा नमक का एक ब्राण्ड है - आई- शक्ति इसी ब्राण्ड से उसकी दालें बाजार में दस्तक दे चुकी है । पहले ये तमिनाडु, महराष्ट्र, और गुजरात में गलेगी, फिर उसके बाद शेष सारे देश में । चना, तुअर, उड़द और मूँग की दालों के एक - एक किलोग्राम ५००-५०० ग्राम तथा २५०-२५० ग्राम वजन वाले आई- शिक्त मार्का पैकेट बेचने की पुरजोर तैयारी चल रही है । ये पैकेट न केवल किसान संसार नामधारी स्टोरों पर मिला करेंगे, बल्कि टाटा नमक के मौजूदा देशव्यापी वितरण - नेटवर्क के जरिये इनकी बिक्री हुआ करेगी ं ताजातरीन फार्मेट वाले खूबसूरत स्टो, हाइपर/सुपर मार्केट,बिग बाजार, शॉपिंग मॉल, रिटेल चेन आदि इनके पसन्दीदा स्थल रहेंगे ही, इसके साथ - साथ खुदरा या फुटकर बिक्री करने वाले परचूनियों या पंसारियों की दुकानों (जिन्हे मजाकिया लहजे में मॉम एण्ड पॉप स्टोर कहा जाता है ।) से भी उन्हें खरीदा जा सकेगा ।
टाटा समूह की दो कम्पनियाँ टाटा केमिकल्स और रैलीस इण्डिया मिलकर आई-शक्ति ब्राण्ड वाली दालें लाँच कर रही है । उत्तरी एवं पूर्वी भारत में टाटा केमिकल्स का प्रभावी तानाबाना या नेटवर्क फैला हुआ है , जबकि दक्षिणी एवं पश्चिमी भारत में रैलीस इण्डिया की पकड़ मजबूत है । पंजाब में टाटा केमिकल्स सार्वजनिक - निजी भागीदारी (पी पी पी) के अन्तर्गत दलहन का उत्पादन कर रहा है । उसके इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का नाम है फार्म टू फोर्क (खेत से छुरी कॉँटा तक ) यानी फसल से थाली प्लेट तक । इसी तरह रैलीस इण्डिया भी तमिलनाडु में जी.एम.पी (ग्रो मोर पल्सेज) यानी दालें अधिक उपजाआें नाम से दलहन के उत्पादन की परियोजना चला रहा है । ये दोनों परियोजनाएँ ठेके पर खेती (कॉण्ट्रैक्ट फॉर्मिंग) को बढ़ावा दे रही है ।
ठेके पर खेती का मतलब है एक इकरारनाने पर दस्तखत करके किसी कॉरपोरेट घराने के लिए उसके द्वारा तय की गयी शर्तो पर उसके लिए ही अपनी जमीन पर खेती बाड़ी करेगा किसान । कॉरपोरेट घराना किसान को जो बीज बतायेगा, किसान उसे ही बोयेगा। जिस उर्वरक या कीटनाशी रसायन को कॉरपोरेट घराना सुझायेगा, किसान उसका ही इस्तेमाल करेगा । खेती के जिस तौर तरीके (मॉडल), नुस्खे या फार्मूले की इबारत कॉरपोरेट घराना लिखेगा, किसान एक आज्ञाकारी विद्यार्थी या प्रशिक्षु की तरह उसे घोटने के लिए विवश होगा और उस पर बिना किसी ननुच के अमल करता रहेगा । समय - समय पर कॉरपोरेट घराने के इंस्पेक्टर उसकी फसल की गुणवत्ता की जाँच -परख करते रहेंगे । अगर पैदावार निर्दिष्ट मानकों पर खरी उतरती है, तभी कॉरपोरेट घराना उसे अपने द्वारा तय की गयी कीमतों पर ही खरीदेगा , अन्यथा कतई नहीं । इसका नतीजा यह होगा कि किसानी अपनी जमीन पर मालिक की तरह नहीं, बल्कि गुलाम या बंधुआ की तरह खेती करने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी । कॉण्ट्रेक्ट फार्मिंग की अन्तिम परिणति होगी कॉरपोरेट फार्मिंग यानी किसान द्वारा खेती के स्थान पर कॉरपोरेट समूह द्वारा बड़े - बड़े फार्मोपर यान्त्रिक ढंग से औद्योगिक मॉडल पर खेती ।
किसान आज जितने भी निवेश्य पदार्थो का इस्तेमाल खेतीबाड़ी में कर रहे है, वे सब -के -सब कॉरपोरेट घरानों के उत्पाद है । अत: उन्हें प्राप्त् करने के लिए किसान प्राय: कर्ज का सहारा लिया करते है, क्योंकि बेहताशा महँगे होने के नाते वे किसानों की पहूँच से बाहर है । कृषि में प्रयुक्त होने वाले निवेश्य पदार्थो के लगातार महँगे होते जाने, उन्हें पाने के लिए कर्ज - पर-कर्ज लेते जाने तथा खेतिहर उत्पादों की वाजिब कीमतें न मिल पाने की वजह से किसान के लिए खेती प्राय: घाटे का व्यवसाय है । इसलिए किसान खेतीबाड़ी छोडने के लिए विवश हो रहे है । और यहां तक कि वे आत्महताएँ तक कर रहे है । ठेके पर खेती के चलन के साथ ही खेती से किसानों का विस्थापन तेज होता जायेगा । टाटा जैसे कॉरपोरेट घरानों के लिए यह मुँहमाँगा वरदान सिद्ध होगा ।
नमक के बाद दाल का नम्बर आना स्वाभाविक है, चँूूकि कहावत है - दाल में नमक पैकेटबंद नमक के बाद पैकेटबंद दालें बाजार में दस्तक देने लगी है । टाटा ने इस पुनीत कार्य का श्री गणेश कर दिया है । पैकेटबंद या डिब्बाबंद चीजें जब कॉरपोरेट ब्राण्डों के रूप में बाजार में हावी होने लगती है, तब उनका कारोबार खुला हुआ, माप, तौल, लूज या बन्धन मुक्त नहीं रह जाता । वहाँ सब कुछ तौला हुआ निश्चित भारों वाले आकर्षक, टिकाऊ और उम्दा पैकेट में बन्द हो, वहाँ तराजू, बाट और पलड़े का क्या काम ? लेकिन गाड़ी यहीं तक नहीं रूकती, बल्कि बगैर पैकेजिंग किया हुआ माल बेचना कानूनन जुर्म हो जाता है ।
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