रविवार, 24 अप्रैल 2011

खास खबर


बाघों की जनसंख्या बढ़ी
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)

देश में बाघों की लगातार घटती संख्या से सभी चिंतित थे । इनके संरक्षण के किए जा रहे प्रयासों के कारगर न होने से लगने लगा था कि यह प्रजाति अब खत्म होेने के कगार पर है, लेकिन ताजा आँकड़ों ने बाघों की चिंता करने वालों को खुश कर दिया । देश में बाघों की संख्या १४११ थी, अब नई गणना में बाघों की संख्या १७०६ पाई गई है ।
भारत में बाघों की घटती जनसंख्या की जाँच करने के लिए अप्रैल १९७३ में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया था । ताजा गणना के मुताबिक देश में अब १५७१ से १८७५ के बीच बाघ है । अनुमानित आँकड़ा १७०६ लिया गया है । बाघों की पिछली गणना वर्ष २००६ में हुई थी । उसमें खुलासा हुआ था कि देश में महज १४११ बाघ ही शेष रह गए है । ताजा गणना में संुदरवन को पहली बार शामिल किया गया है । बाघ गणना-२०१० को विश्व का अब तक का सबसे व्यापक, अत्याधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से हुआ आकलन करार दिया गया है । बाघों के पर्यावास वाले क्षेत्रफल मेेंकमी देखी गई है । कुल अनुमानित संख्या में से ३० फीसद बाघ ३९ संरक्षित क्षेत्रों से बाहर आ रहे है ।
बाघों को खनन और भू-माफिया से खतरा है । कोयला खनन और सिंचाई परियोजनाएँ भी बाघों के संरक्षण के नजरिए से प्रतिकूल है । पर्यावरण और वन मंत्रालय तथा देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा ९ करोड़ रूपए खर्च कर ३९ बाघ संरक्षित क्षेत्रों में यह गणना की गई । इसमें ४ लाख ७६ हजार वनकर्मियों ने भाग लिया ।
बाघों की गिनती पहले उनके पंजो के निशान के आधार पर होती थी, लेकिन २००७ की गणना में नई पद्धति का इस्तेमाल किया गया । गिनती के इस तरीके को ज्यादा विश्वसनीय माना गया । इस पद्धति में बाघों की उपस्थिति वाले इलाके में अति संवेदनशील कैमरे लगाये जाते है । किसी भी जानवर के सामने से गुजरते ही कैमरा तस्वीर लेता है । आदमी के फिंगरपिं्रट की तरह हर बाघ के चेहरे की काली धारियाँ अलग होती है । तस्वीर लेने के बाद प्रत्येक बाघ की काली धारियोंको अलग - अलग करके देखा जाता है और इससे बाघों की गणना हो जाती है । कुछ लोगों ने कैमरा ट्रैप पद्धति पर यह कहकर सवाल उठाया कि इसमें कैमरे जमीन से डैढ़ फुट ऊपर लगे होते है, इस कारण शावक उसकी रेंज में नहीं आ पाते । इसके पूर्व बाघोंके पंजे के निशान पर प्लास्टर ऑफ पेरिस लगाकर आकार तैयार किया जाता था । एक ही बाघ को कई बार गिन लिए जाने की आशंका के कारण इस पद्धति पर अब कम ही विश्वास किया जाता है । इसके अलावा बाघों के मल के माध्यम से भी गणना की जाती है । इसमें बाघों के मल में मौजूद टिशु अलग कर उसकी डीएनए जाँच की जाती है । सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी) हैदराबाद और डब्ल्यूआईआई की देहरादून स्थित फोरेंसिक लैब में इस तरह की जाँच की सुविधा है ।
बाघ गणना के मुताबिक शिवालिक-गंगा के मैदानी इलाकों में ५३५, मध्य भारत तथा ब्रह्मपुत्र के बाढ़ प्रभावित मैदानी इलाकों में १४८ और सुंदरवन में ७० बाघ है । उत्तराखंड, महाराष्ट्र, असम, तमिलनाडु और कर्नाटक में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है । महाराष्ट्र और तराई के क्षेत्रों में बाघों की संख्या में जबदस्त इजाफा हुआ है । मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश में बाघ कम हो गए है । बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उड़ीसा, मिजोरम, पश्चिम बंगाल , उत्तर बंगाल और केरल में बाघों की संख्या स्थिर है । मध्यप्रदेश के होशंगाबाद, बैतूल, नर्मदा नदी के उत्तरी घाट और कान्हा- किसली में बाघों की संख्या में काफी गिरावट पाई गई है । वृद्धि के लिहाज से पश्चिमी घाट आगे है । वहीं पिछली गणना में बाघों की संख्या ४१२ पाई गई थी, जो अब बढ़कर ५३४ हो गई ।

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