जनसचतेक पत्रिका के पच्चीस वर्ष
डॉ. सुनील कुमार अग्रवाल
पर्यावरण पर प्रथम राष्ट्रीय हिन्दी मासिक पत्रिका का गौरव प्राप्त् है पर्यावरण डाइजेस्ट को । संवेदनशील पर्यावरणविद् एवं पत्रकार डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित के निर्देशन एवं सम्पादन में रतलाम (म.प्र.) से सन् १९८७ से निरन्तर उत्साहपूर्वक प्रकाशित हो रही है यह उत्कृष्ट पत्रिका । और यह भी सुखद है कि दिसम्बर २०११ में अपने प्रकाशन के पच्चीस वर्ष पूर्ण कर लिये है। अपने अथक प्रयास से देश-विदेश के पर्यावरण चिंतको, विचारको एवं लेखको को विस्तृत एवं बहुआयामी फलक प्रदान किया हुआ है इस प्रकृति-सचेतक पत्रिका ने ।
आज दुनिया भर में पर्यावरण ध्वंस को लेकर गहरी चिंता है । ऐसे में जन मानस में पर्यावरण के प्रति समझ विकसित करने में पत्रिका ने अपना दायित्व बखूबी निभाया है तथा जन चेतना का सशक्त माध्यम सिद्ध हुई है ।
विगत पच्चीस वर्षो से पत्रिका का हर अंक सुरूचिपूर्ण एवं सधा हुआ रहा है । सरल बोधगम्य सुगठित शैली में लिखे गये आलेख केवल सूचनापरक एवं गुणवत्ता पूर्ण रहे है वरन् पूर्ण संवेदनशीलता के साथ झकझोरते भी रहे हैं । प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति जन-जन में आस्था जगाने का काम पत्रिका ने किया है तथा मानवीय मूल्यों को रचनात्मक प्रस्तुति दी है ।
पत्रिका की अपनी मौलिक पहचान है जिसमें ज्ञान-विज्ञान, समाचार, विचार और दृष्टिकोण, विमर्श पूर्ण आलेख तो शामिल हैं ही साथ ही साथ सामाजिक सरोकारों, विकास एवं आर्थिक पहलुआें पर भी चर्चा होती है। जन स्वास्थ्य एवं रहन-सहन के तौर तरीकों पर भी ध्यान रहता है । वन एवं वन्य जीवन, प्रदूषण जन संख्या एवं भूख जैसे ज्वलंत मुद्दों पर भी चिंता रहती हैं।
पत्रिका ने प्रकृति एवं मानवीय सम्बन्धों को भी प्रभाव पूर्ण अभिव्यक्ति दी है । पत्रिका ने समय-समय पर सत्य अहिंसा प्रेम की भावना को उकेरा है और यही मूल भाव हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेष्ट करता है । पत्रिका के माध्यम से हम पर्यावरण के धर्म-मर्म को भी समझ सके हैं ।
पर्यावरण चिंतन एवं समकालीन सोच के साथ कदमताल करते हुए पत्रिका ने पच्चीस वर्ष की प्रकाशन यात्रा तय कर ली है । इस यात्रा में पूर्ण मनस्विता एवं निष्ठा के साथ अनेक पर्यावरणविद् एवं लेखक जुड़े है । पत्रिका ने सभी को गौरवान्वित किया है तथा गौरव पाया भी है जिससे हिन्दी में पर्यावरण पर प्रकाशित पत्रिकाआें में प्रतिष्ठा के शीर्ष पर है यह लघुपत्रिका ।
पत्रिका कहीं भी अनर्गल प्रलाप नहीं करती है । पत्रिका जन-गण-मन को जागरूक तो करती है किन्तु किसी को आहत करने वाला या पीड़ा पहुँचाने वाला कटाक्ष नहीं करती । यही कारण है कि पर्यावरण डाइजेस्ट निरन्तर निर्विवादित रही है तथा स्वस्थ्य मानसिकता की द्योतक है और लोक चेतना का सशक्त माध्यम है ।
पत्रिका का मुख पृष्ठ सुरूचिपूर्ण होता है । यह सम्पादक की विषयगत सूझबूझ एवं भाव प्रवणता का परिचायक है । मन-मस्तिष्क को झंकृत करने वाले चित्र हमारे चिंतन को भी उत्स प्रदान करते हैं । पत्रिका में कविता को भी स्थान है । कविता की संप्रेषणीयता मन को गहराई तक स्पर्श करती है ।
पत्रिका प्रयोजन मूलक है जो विशेष जागरूकता दिवसों एवं पर्वोत्सव अवसरों पर विशेष सामग्री भी देने का प्रयास करती है तथा ताकीद करती हैं कि हम स्वस्थ्य परम्पराएं निभाएं । अपने पर्यावरण के प्रति बेखबर न हो जायें । पत्रिका विभिन्न विद्रूपताआें पर प्रमाणिक ढंग से हमारा ध्यान आकृष्ट करती हुए सम्यक दिशा देती है ।
कहा जाता है कि शब्द ब्रहृा रूप हैं । ब्रहृम विवर्तित संसार के सृजन में यदि हमारा किचिंत भी रचनात्मक सहयोग हुआ तो यह परम सौभाग्य की बात होती है । शायद यही संबल है कि बिना किसी बड़ी साधन सुविधा के पर्यावरण डाइजेस्ट का रचनात्मक प्रयास जीवटता के साथ जारी है । हमें भी पत्रिका के सृजनात्मक प्रयास के प्रति अपनी आस्था बनाये रखनी है ।
पत्रिका सदैव वस्तु स्थिति का समाकलन करती है । पत्रिका सभी से निरपेक्ष भाव रखती है । किसी सरकारी या संस्थान की पिछलग्गू नहीं है और न ही किसी आन्दोलन का हिस्सा । पत्रिका तथ्यपूर्ण एवं तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात ओजस्विता के साथ रखती है । इसी निर्भिकता तथा मौलिकता ने पत्रिका को अग्रणी बनाया है । पत्रिका में कभी भी अपने कसाव को ढीला नहीं पड़ने दिया और पत्रिका का कलेवर निरन्तर निखार पर है ।
यह पर्यावरण डाइजेस्ट सरीखी पत्रिकाआें का ही श्रमसाध्य प्रयास है कि जन-जन की जुबान पर पर्यावरण की चर्चा रहने लगी है । यह पत्रिकाएं ही तो सहज, सरल, सुबोध रूप में पर्यावरण जैसे जटिल विषय के गूढ तथ्यों को हमारे सामने लाती है । जब कोई विचार जन्मता है तो वह वाणी और शब्द बनता है जो कलम की सहायता से कागज पर उतर कर प्रसार पाता है । चिंतन से चिंतन जुड़कर व्यापक चर्चा का विषय बन जाता है और देखते ही देखते हमारे लिए हितकारी एवं श्रेयसकारी आन्दोलन खड़ा हो जाता है। अत: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमें लघुपत्रिकाआें की भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्हें जीवंत बनाये रखने में कुछ नकुछ सहयोग अवश्य करना चाहिए ।
पर्यावरण संचेतना की ध्वज वाहक बनी है पर्यावरण डाइजेस्ट । विगत पच्चीस वर्षो से पत्रिका ने न केवल पर्यावरण सरोकारो को हमारे मानस से जोड़ा है वरन समाज की जड़ता को भी तोड़ा है तथा प्रकृति के साथ मैत्री पूर्ण प्रेम सम्बन्ध कायम करने में महती भूमिका निभाई है । ऐसी अनन्य पत्रिका के उज्जवल भविष्य की कामना करना हमारा पुनीत कर्तव्य है ।
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