मोबाइल टॉवर और वन्य जीवन
मोबाइल कंपनियों द्वारा स्थापित संचार टॉवर्स इंसानों और अन्य जंतुआें पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं मगर अभी तक इन टॉवर्स से निकलने वाले विकिरण और वन्य जीवों पर असर के बीच सही-सही सम्बन्ध स्थापित नहीं हुआ है । भारत सरकार के पर्यावरण व वन मंत्रालय ने ३१ अगस्त २०१० को एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था जिसे पक्षियों व मधुमक्खियों सहित विभिन्न वन्य जीवों पर संचार टॉवर्स के प्रभावों का अध्ययन करने को कहा गया था । इस समिति की रिपोर्ट हाल ही में प्रकाशित हुई है ।समिति के मुताबिक, जंतु जीवन पर विद्युत चुंबकीय विकिरण के प्रभावों का अध्ययन न के बराबर हुआ है ओर इस तरह के विकिरण से होने वाला प्रदूषण भारत में अपेक्षाकृत नया मुद्दा है । वन्य जीवों पर विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव के अध्ययन व निगरानी हेतु मानक प्रक्रियाआें या प्रोटोकॉल्स का अभाव है, जिसके चलते विभिन्न अध्ययनों की परस्पर तुलना करना कठिन होता है । अनुसंधान में छूटे हुए क्षेत्र तो है ही, देश में नियामक नीतियां उनका क्रियान्वयन मोबाइल टेलीफोन्स के विकास के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पाए हैं ।
लिहाजा, यह जरूरी है कि वर्तमान में विद्युत चुंबकीय क्षेत्र से संपर्क की जो अधिकतम सीमा निर्धारित की गई है उसमें सुधार किया जाए क्योंकि भारत जिन अंतर्राष्ट्रीय गैर-आयनीकाकर विकिरण सुरक्षा मानकों का पालन करता है वे फिलहाल रेडियो आवृत्ति के सिर्फ ऊष्मीय प्रभावों पर आधारित है । इनमें रोग प्रसार विज्ञान संबंधी उन प्रमाणों पर ध्यान नहीं दिया गया है जो एकाधिक टॉवर्स के गैर-ऊष्मीय प्रभावों को उजागर करते है । और, एक महत्व की बात यह है कि इस मामले में ऐहतियाती सिद्धांत लागू किया जाना चाहिए ताकि विद्युत चुंबकीय क्षेत्र संबंधी सर्वोत्तम मानक विकिसति किए जा सकें ।
विद्युत चुंबकीय विकिरण के संपर्क के कारण जैविक तंत्रों पर होने वाले मूलत: ऊष्मीय प्रभाव के अधिकांश अध्ययनों में न तो सांख्यिकीय रूप से उल्लेखनीय परिवर्तन पहचाने गए हैं और न ही जंतु स्वास्थ्य पर तत्काल प्रभाव साबित हुए है । इसके विपरीत दीर्घावधि अध्ययनों में चौंकाने वाले अवलोकन हुए हैं, इनमें प्रतिरक्षा तंत्र, स्वास्थ्य, प्रजनन, सफलता, व्यवहार, सम्प्रेषण, समन्वय तथा प्रजातियों व समुदायों के प्राकृतवास के विस्तार संबंधी नकारात्मक परिणाम देखे गए हैं ।
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