परमाणु जोखिम में दिल्ली भी दूर नहीं
सौम्य दत्ता
करीब २ करोड़ की आबादी वाले दिल्ली महानगर से महज १५० कि.मी. की दूरी पर किसी परमाणु संयंत्र की स्थापना की कल्पना ही सिरहन पैदा कर देती है । लेकिन अब तो यह योजना जमीनी हकीकत की शक्ल अख्तियार करती जा रही है । अभी भी समय है कि इस खतरे से बचा जा सकता है ।
यूक्रेन के चेरनोबिल शहर में हुए विश्व के सबसे खतरनाक परमाणु विध्वंस की २५वीं बरसी और इस वर्ष के प्रारंभ में जापान के परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना, परमाणु संकट की निरन्तरता की गवाह हैं । दोनों घटनाएं हालांकि अलग-अलग समय में हुई हैं लेकिन ये दुनिया को बता रही हैं कि हमें इस क्रूर तकनीक पर रोक लगानी ही पड़ेगी । वास्तविकता यह है कि तकनीकी दृष्टि से पिछड़े या जापान जैसे तकनीकी दृष्टि से विकसित देश दोनों ही इन दुष्ट रिएक्टरों से निपटने का प्रयास में इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रकृति के क्रोध के आगे सभी मनुष्य विवश हैं । सामने मंडराते संकट के मद्देनजर अनेक देशों ने अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पर रोक लगा दी है ।
जर्मनी ने अपने सात रिएक्टरों को बंद करते हुए अपना निर्णय दोहराया है कि वह भविष्य में परमाणु ऊर्जा से दूरी बना लेगा । चीन, जहां पर विश्व का सबसे विशाल परमाणु रिएक्टर निर्माण कार्यक्रम चल रहा था उसने भी अभी सभी निर्माणों पर रोक लगा दी है और कठोरता से सुरक्षा समीक्षा का आदेश दिया है । अन्य अनेक देशों ने भी ऐसा ही किया है, सिवाए भारत के, जहां पर हमारे प्रधानमंत्री ने जापान में हुई फुकुशिमा दुर्घटना के दो दिन के भीतर ही संसद में बहुत ही लापरवाही से यह घोषणा कर दी कि भारत के सभी परमाणु संयंत्र सुरक्षित है । गौरतलब है कि भारत में परिचालित हो रहे २० रिएक्टरों (जिसमें से २ फुकुशिमा जितने ही पुराने हैं और उनका डिजाइन भी अमेरिका के जी.ई. द्वारा आपूर्ति किए गए रिएक्टरों जैसा ही है) और उससे संबंधित अन्य सुविधाआें की समीक्षा क्या मात्र दो दिन में संभव है ? हम लोग हमारे देश के ऐसे निर्दयी परमाणु संस्थानों पर भरोसा कैसे करें ? हमें इस पृष्ठभूमि में भारत सरकार द्वारा तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए शुद्ध ऊर्जा की आवश्यकता की गुहार को समझना जरूरी है ।
हरियाणा के गोरखपुर गांव में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र इस बात का उदाहरण है कि किस तरह हमारे नीति निर्माता स्थानीय आबादी को खतरे में डालकर और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा कर अपनी नीतियां या कार्यक्रम लागू करना चाहते हैं ।
गोरखपुर गांव हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित है और यह दिल्ली से २१० कि.मी. (सीधी रेखा में १५० कि.मी.) की दूरी पर स्थित हैं । प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना में ७०० मेगावाट क्षमता के ४ रिएक्टर होगें जो कि भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (एनपीसीआईएल) द्वारा विकसित देशी डिजाइन पर आधारित होगें । अब तक भारत में इतना बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्मित नहीं हुआ है । वैसे महाराष्ट्र स्थित जैतापुर में प्रस्तावित संयंत्र इससे भी विशाल है । परमाणु संयंत्र हेतु कुल१५०० एकड़ जमीन का अधिग्रहण होगा । इसमें से १३१३ एकड़ गोरखपुर गांव से, बडोपाल से १८५ एकड़ और काजल हेरी गांव से ३-५ एकड़ भूमि का अधिग्रहण होना है ।
वैसे भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम ने स्थान चयन हेतु वर्श २०१० के आरंभ में क्षेत्र का भ्रमण किया था । लेकिन सैद्धांतिक तौर पर इसकी सहमति अक्टूबर २००९ में दी जा चुकी थी । शुरूआत में कुछ ग्र्रामीणें ने इस आशा के साथ इस परियोजना का समर्थन किया था कि इससे उनकी जमीनों के भाव बढ़ जाएंगे । लेकिन अगस्त २०१० के बाद उन्होनें इसका तीव्र विरोध प्रारंभ कर दिया । ऐसे लोगों को धीरे-धीरे परमाणु ऊर्जा संयंत्र के खतरे मालूम पड़ने के बाद हुआ । परिणामस्वरूप एक किसान संघर्ष समिति का गठन किया गया जो कि १७ अगस्त २०१० से लगातार फतेहाबाद जिला मुख्यालय स्थित लघु सचिवालय के समक्ष धरने पर बैठी है । फतेहाबाद जिले के करीब ३० गांव परियोजना के विरोध में प्रस्ताव भी पारित कर चुके है ।
प्रस्तावित विद्युत संयंत्र की रहवासी बस्ती बड़ोपाल गांव जिसकी आबादी करीब २०००० है, में निर्मित की जाएगी । यह परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के मानको की घोर अवहेलना है जिसके अनुसार किसी भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सीमा से ६.६ किलोमीटर के भीतर १०००० लोगों से अधिक की बसाहट नहीं होना चाहिए । पास ही स्थित नगर फतेहाबाद, रातिया और तोहाना में इससे कहीं अधिक जनसंख्या है । यहां से महज ३० कि.मी. दूर स्थित हिसार की जनसंख्या तो २ लाख से भी अधिक है ।
चूंकि प्रस्तावित स्थल दिल्ली से महज १५० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ऐसे में किसी भी बड़े परमाणु रिसाव की स्थिति में हवा की प्रवृत्ति से ये रेडियोधर्मिता आसानी से दिल्ली के मुहाने पर पहुंच सकती है । यह कहना ही बेमानी है कि इससे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और भयानक हादसे का डर लगातार बना रहेगा । फतेहाबाद जिले की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है एवं कृषि आधारित अनेक उद्योग इसकी समृद्धि में योगदान करते हैं । गेहूं, सरसों, चावल एवं कपास यहां के मूल कृषि उत्पाद हैं । कम वर्षा वाला क्षेत्र (औसतन ४०० मि.मी. जबकि दिल्ली में ६१५ मि.मी. बारिश होती है) होने के बावजूद भाखड़ा नहर की वजह से यहां वर्ष में तीन फसलें ली जाती है ।
जैसा कि फुकुशिमा परमाणु विध्वंस में हमें नाटकीय तौर पर दिखाया जाता रहा है कि परमाणु रिएक्टर को लगातार ठंडा रखना आवश्यक है । चंूकि फतेहाबाद क्षेत्र में न तो कोई बारहमासी नदी है और न ही कोई बड़ी झील है, अतएव प्रस्तावित परमाणु संयंत्र पूर्णतया नहर के पानी पर ही निर्भर रहेगा । राज्य सरकार ने पूर्व में ही परमाणु संयंत्र को ३२० क्यूसेक पानी की उपलब्धता की गारंटी दे दी है । इससे क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और कृषि पर निर्भर हजारों लोग भी प्रभावित होंगे ।
हमसे बार-बार यह प्रश्न पूछा जाता है कि हमें बिजली की आवश्यकता तो है लेकिन वह कहां से आएगी । यह एक वैध प्रश्न है परंतु इसके परमाणु ऊर्जा के अलावा अन्य वैध एवं गैर विध्वंसकारी जवाब दिए जा सकते हैं । वर्तमान में हरियाणा में बड़ी मात्रा में, करीब ५००० मेगावट की स्थापित क्षमता है और अगले दो वर्षोंा में २५०० मेगावाट अतितिक्त बढ़ने की संभावना भी है । किसी भी अतिरिक्त आवश्यकता को पुर्नचक्रित या बायोमास (कृषि अपशिष्ट) आधारित अतिरिक्त विद्युत उत्सर्जन से पूरा किया जा सकता है । हरियाणा रिन्यूबल ऊर्जा विकास एजेंसी जो कि एक सरकारी उद्यम है, का अनुमान है कि प्रदेश कृषि के बचे हुए भाग एवं घरोंमें उपलब्ध बायोमास से ११०० मेगावाट बिजली तैयार कर सकता है । घरों एवं गन्ने से बचा हुआ बायोमास ८४१६.४७ हजार टन के करीब बैठता है जिससे कि १०१९ मेगावाट विद्युत तैयार की जा सकती है ।
जब ऐसे विकल्प मौजूद हैं तो हरियाणा को खतरनाक परमाणु संयंत्र जैसे विकल्पों पर विचार करने की आवश्यकता ही क्या है ? लाभ केंद्रित विद्युत उत्सर्जन की अंधी दौड़ हमें केवलविध्वंस की ओर ही ले जाएगी । हमें ऊर्जा के न्यायोचित उपयोग की ओर ध्यान देने के साथ ऊर्जा समता और ऊर्जा सुरक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए, बजाए ऊर्जा के अनैतिक उपयोग के ।
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