रविवार, 14 अक्तूबर 2012

ऊर्जा जगत 
पवन ऊर्जा क्षेत्र की निकली हवा
अंकुर पालीवाल
    पवन ऊर्जा क्षेत्र में इस तिमाही में स्थापित क्षमता में आई कमी को नवीन एवं नवीकृत ऊर्जा मंत्रालय सामान्य घटना मान रहा है और परोक्ष रूप से यह भी स्वीकार कर रहा है कि अवांछित प्रोत्साहन की वजह से चलताऊ किस्म के उद्यमियोंने महज आर्थिक लाभ के लिए इस क्षेत्र मेंप्रवेश कर पवन ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्थलोंको हथिया लिया है ।
    पिछले वर्ष की पहली तिमाही के मुकाबले इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) मेंपवन ऊर्जा क्षेत्र में धीमी वृद्धि दर्ज की गई है । पिछले वर्ष इसी अवधि के मुकाबले इस वर्ष क्षेत्र में १०० मेगावट कम क्षमता वृद्धि हुई है । अधिक चिंता की बात यह है कि वर्ष २०१२ की पहली तिमाही में तमिलनाडु में जहां सर्वाधिक पवन ऊर्जा का उत्पादन होता है, वहां क्षमता संवर्द्धन में आधे से अधिक की और राजस्थान में भी जबरदस्त कमी आई है । वहीं केन्द्रीय नवीन एवं नवीकृत ऊर्जा मंत्रालय इन आंकड़ों से संतुष्ट है और उसका कहना है कि समय के साथ क्षमता मेंसुधार हो जाएगा ।
    इस वर्ष अप्रैल से जून की अवधि में कुल २९१.७ मेगावाट क्षमता वृद्धि हुई जबकि इसकी तुलना में पिछले वर्ष यह वृद्धि ३९४.७ मेगावाट थी । भारतीय पवन ऊर्जा एसोसिएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वी. सुब्रमण्यम का कहना है कि इस वर्ष कुल १२०० मेगावाट से अधिक क्षमता स्थापित हो पाने की संभावना नहींहै । गतवर्ष स्थापित क्षमता ३२०० मेगावाट थी जबकि वर्ष २०१०-११ में यह २३५० मेगावाट थी ।
    उद्योेग पिछले काफी समय से इस अशुभ या डरावनी स्थिति के बारे में अपनी चिंता से अवगत कराते रहे हैं । इसी वजह से मंत्रालय ने एक अगस्त को एक सभा का आयोजन किया था । उद्योग ने इसमें क्षमता में वृद्धि में गिरावट के कईकारण गिनाए थे, जिसमें उत्सर्जन आधारित प्रोत्साहन (जी.बी.आई.) और त्वरित मूल्य हृास या, घटाव (ए.डी.) का वापस लिया जाना मुख्य था ।
    नवीन एवं नवीकृत ऊर्जा मंत्रालय ने जीबीआई योजना वर्ष २००९ में प्रांरभ की थी, जिसमें पवन चक्की (विंड मिल) से ग्रिड को दी जाने वाली विद्युत की प्रत्येक यूनिट पर ५० पैसे का भुगतान होना था और इसके अलावा साफ ऊर्जा की आपूर्ति हेतु विकासकर्ता को उच्च् दर पर शुल्क की भरपाई (फीड इन टेरिफ) का प्रावधान शामिल था । जीबीआई परियोजना सरकार की अन्य प्रोत्साहन योजनाआें के अतिरिक्त थी । ए.डी. को सन् १९९० के दशक में लागू किया गया था । ए.डी. के अन्तर्गत ऐसी कंपनियां जो कि पवन ऊर्जा संयंत्रों में निवेश करेगी, उन्हें पहले वर्ष में निवेश की गई पूंजी पर ८० प्रतिशत तब बचत की अनुमति थी ।
    जीबीआई की अवधि मार्च २०१२ में समाप्त् हो गई और इसे पुन: प्रारंभ नहीं किया गया । मंत्रालय के अधिकारी ने अपना नाम गुप्त् रखते हुए कहा कि ए.डी. की वजह से इस क्षेत्र में पवन चक्कियां लग रही थी और ७० प्रतिशत ऊर्जा संवर्द्धन भी इसी योजना के माध्यम से हो रहा था । लेकिन इसकी वजह से घटिया गुणवत्ता वाली पवन चक्कियां स्थापित हुई और इसी वजह से हमें देश के बेहतरीन पवन ऊर्जा स्थलोंसे भी हाथ धोना पड़ा ।
    स्थापित क्षमता में कमी के अन्य कारण विशिष्ट राज्यों से संबंधित है । तमिलनाडु में राज्य के स्वामित्व वाली इकाई ने पवन ऊर्जा उत्पादकोंका पिछले एक वर्ष से उनके बकाया का भुगतान नहींकिया है । तमिलनाडु राज्य विद्युत बोर्ड ने हाल ही में बकाया का भुगतान प्रारंभ किया है । तमिलनाडु डिस्काम के निदेशक (वित्त) जी. राजगोपाल का कहना है कि कुल १५०० करोड़ रूपए के बकाया में से ७०० करोड़ रूपए दिए गए है । राजस्थान में भी भुगतान में देरी हो रही है क्योंकि वहां भी राज्य स्वामित्व वाली इकाई पर पैतालिस हजार करोड़ का कर्जा है । उद्योग के स्त्रोत का कहना है इसी अनिश्चितता की वजह से बैंके पवन ऊर्जा परियोजनाआें को ऋण देने से हिचकिचा रही है ।
    वहीं मंत्रालय इस स्थिति से कतई विचलित नहीं है । एक अधिकारी का कहना है हम यह स्वीकार करते हैं कि इस वर्ष का क्षमता संवर्द्धन पिछले वर्ष से कम होगा । लेकिन ए.डी. के समाप्त् होने से केवल गंभीर प्रतिस्पर्धी ही इस क्षेत्र में प्रवेश करेंगे । इस वर्ष की पहली तिमाही के भले ही २९१.७ मेगावाट की ही वृद्धि हुई हो लेकिन हमें प्रसन्नता है कि केवलगंभीर उद्यमियों ने ही इस क्षेत्र में प्रवेश किया है । उनका यह भी कहना था कि वर्ष २०१०-११ के असाधारण क्षमता वृद्धि के पीछे का कारण यह था कि इसी वर्ष मार्च में ए.डी. का समय समाप्त् हो रहा था इसलिए उद्योग में पवन चक्कियां स्थापित करने की होड़ मच गई । गंभीर उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए हम शीघ्र ही जीबीआई पुन: लागू करने के लिए चर्चा कर रहे हैं । मंत्रालय के सूत्रोंका कहना है विकासकर्ताआें के पास ग्रिड को आपूर्ति के लिए १५० मेगावाट क्षमता तैयार पड़ी है लेकिन वे जीबीआई के पुन: प्रारंभ होने की रास्ता देख रही है ।
    वहींदूसरी ओर मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है इस कथन में सत्यता नहीं है कि क्षमता के गिरने में ए.डी. के वापस लिए जाने का योगदान है । अगर यही मामला था तो वर्ष २०१०-११ की पहली तिमाही में स्थापित क्षमता केवल२०३ मेगावाट ही क्यों थी ?

कोई टिप्पणी नहीं: