रविवार, 14 अक्तूबर 2012

प्रसंगवश
बालिकाआें की संख्या में कमी चिंता का विषय
     वर्ष २००१ से २०११ के दशक में भारत जन्मदर में कमी तो आई है, परन्तु कुछ जन्म लेने वाले बच्चें में बालकों की अपेक्षा बालिकाआें की संख्या काफी कम रही है । इस दौरान बालकों की संख्या में करीब २० लाख की कमी आई, जबकि बालिकाआें की संख्या करीब ३० लाख घट गई । इसकी वजह से बालक बालिकाआें का लिंगानुपात बिगड़ गया है । केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन ने यह बात कही है ।
    संगठन ने चिल्ड्रन इन इंडिया २०१२- अ स्टैटिस्किल अप्रेजल नामक अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि २००१-२०११ के दशक में कुल जनसंख्या में ० से ६ वर्ष आयु समूह के बच्चें का प्रतिशत घटा है । हालांकि इसमें बालकों की तुलना में बालिकाआें की संख्या में काफी ज्यादा कमी दर्ज की गई है ।
    बालिकाआें की संख्या ३० लाख घटी : वर्ष २००१ में ० से ६ वर्ष आयु समूह में बालिकाआें की संख्या ७.८८३ करोड़ थी, जो कि २०११ में घटकर ७.५८४ करोड़ रह गई । अर्थात् दशक में इनकी संख्या में २९.९ लाख की कमी आई । वर्ष २००१ में महिलाआें की कुल जनसंख्या (४९.६५ करोड़) में इस आयु समूह की बालिकाआें का हिस्सा १५.८८ प्रतिशत था, जो कि २०११ की जनसंख्या (५८.६४ करोड़) में १२.९ प्रतिशत ही रह गया ।
    बालकों की संख्या मे २० लाख की कमी : वर्ष २००१ में ०-६ साल के बालकों की संख्या ८.५०१ करोड़ थी, जो कि २०११ में घटकर ८.२९५ करोड़ रह गई । इनकी संख्या में २०.६ लाख की कमी आई । २००१ में कुल पुरूष जनसंख्या में बालकों की हिस्सेदारी १५.९७ प्रतिशत थी, जो कि २०११ में घटकर १३.३ प्रतिशत रही ।
    संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि दशक के दौरान कुल लिंगानुपात में सुधार आया है परन्तु बच्चें के लिंगानुपात की स्थिति अभी भी खराब है । यह चिंता का विषय है । वर्ष २०११ में प्रति १,००० बालकों पर बालिकाआें की संख्या (बाल लिंगानुपात) मात्र ९१४ रही है । इसमें से भी शहरी क्षेत्रों की हालत ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा खराब रही । प्रति १,००० बालकों पर गा्रमीण क्षेत्र में बालिकाएं ९१९ रहीं, जो कि शहरी क्षेत्र से १७ अधिक है ।

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